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Updated: 28 मई, 2018 11:00 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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27 मई, 2018 की तारीख इतिहास में दर्ज हो चुकी है, जब आईपीएल 2018 का फाइनल चेन्नई सुपर किंग्स और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच संपन्न हुआ, जिसमें दो वर्षों के बाद आईपीएल में लौटी चेन्नई ने हैदराबाद को आठ विकेट से हराकर तीसरी बार आईपीएल का खिताब अपने नाम कर लिया. 178 रन जैसे ठीक-ठाक बड़े लक्ष्य का पीछा करने उतरी चेन्नई की तरफ से शेन वाटसन के शानदार-धुआंधार शतक ने इस लक्ष्य को बेहद छोटा साबित कर दिया. आठ विकेट और नौ गेंदें शेष रहते हुए ही चेन्नई ने जीत पर कब्जा कर लिया था.

कहां था सेनापति?

19वें ओवर की शुरुआत में जीत जब पक्की हो गयी थी, तब चेन्नई की पूरी टीम पिच पर दौड़ पड़ने के लिए खड़ी थी. तमाम खिलाड़ी नजर आ रहे थे, सिवाय एक खिलाड़ी के, वो थे चेन्नई की सेना के सेनापति कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी. मेरी नजरें लगातार उन्हें खोज रही थीं. ध्यान से देखा तो पाया कि वे संभावित जीत के जोश से भरे कतारबद्ध खिलाड़ियों के पीछे चुपचाप खड़े थे. चेहरे पर एकदम ‘शांत’-सा भाव था. विजय का कोई उन्माद नहीं और न ही प्रसन्नता का कोई अतिरेक.

अगले ही क्षण ओवर की तीसरी गेंद में पर चौका लगा और चेन्नई आईपीएल-2018 के फाइनल की विजेता बन गयी. कतारबद्ध खिलाड़ी शोर मचाते हुए दौड़ पड़े. पिच पर पहुंचकर सभी जीत के नायक वाटसन को शाबासी देने लगे. हो-हल्ला करने लगे. सबके चेहरे पर ख़ुशी उछल-उछलकर आ रही थी. मगर इस भीड़ से भी कैप्टन कूल नदारद थे.

महेंद्र सिंह धोनी, आईपीएल 2018, क्रिकेट, खेल, चेन्नई सुपर किंग्स

मगर मुझे मालूम था कि वे कहां होंगे. मेरी उम्मीद के अनुरूप वे धीरे-धीरे, बिना किसी उन्माद के, चले आ रहे थे. शायद कुछ क्षण उन्होंने अपनी टीम को दिए और फिर खेल के अंत में होने वाली औपचारिकताओं के निर्वाह में लग गए. इसके बाद समापन समारोह हुआ, आईपीएल ट्राफी के साथ फोटो समारोह हुआ और पुरस्कार आदि बांटे गए. मगर इस सबके दौरान कभी भी धोनी में जीत का उन्माद या कोई अतिरेक नहीं दिखाई दिया. कभी खिलाड़ियों और पत्नी आदि के साथ फोटो खिंचवाते हुए, तो कभी अपनी चंचल बिटिया के साथ खेलते हुए वे अत्यंत सहज और सरल ही दिखते रहे. वे ऐसे थे कि अगर सारी तस्वीरों से काटकर उन्हें अकेले कोई अनजान व्यक्ति देखे तो चेहरे के भावों से शायद अंदाजा भी न लगा पाए कि इस आदमी ने अपनी कप्तानी में तीसरी बार अपनी टीम को विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों से भरे एक टूर्नामेंट में विजयी बनाया है.

क्या हार में क्या जीत में?

ख़ास बात यह है कि धोनी सिर्फ जीत ही नहीं, हार में भी इतने ही और ऐसे ही सहज-शांत बने रहते हैं. बड़ी से बड़ी जीत हो या बड़े से बड़े टूर्नामेंट की हार, आप धोनी को कभी विजय के उन्माद में पागल या पराजय के विषाद में पस्त नहीं पाएंगे. जरा शर्मीला-सा ये खिलाड़ी अंदर-से जैसा होता हो, ऊपर से हमेशा एक सा रहता है.

जीवन के खेल का भी विजेता

मैच में ही नहीं, जीवन के खेल में भी धोनी हर क्षण में शांत-सहज बने रहते हैं. सम-विषम कोई भी परिस्थिति हो, कैप्टन कूल अपनी कूलनेस के साथ उसका न सिर्फ सामना करते हैं, बल्कि उसे पटखनी भी देते हैं. पिछले दिनों उनकी कप्तानी पर सवाल उठाया जाने लगा. न्यूज़ रूम के क्रिकेट एक्सपर्ट कोहली से उनकी तुलना करते हुए कहने लगे कि धोनी में अब वो बात नहीं रही. कुछ ने तो उन्हें संन्यास लेने तक की सलाह दे डाली. ये धोनी के साथ कुछ नया नहीं हो रहा था, भारत में ये तमाम सफल खिलाड़ियों के साथ उनके गर्दिश के दिनों में होता ही रहा है. गांगुली-द्रविड़-सहवाग-लक्ष्मण जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों को हमने ऐसी आलोचनाओं के दबाव की भेंट चढ़कर समय से पहले ही संन्यास लेते देखा है. यहाँ तक कि क्रिकेट के भगवान् सचिन तेंदुलकर भी ऐसी आलोचनाओं से नहीं बचे, मगर भगवान् तो भगवान् होते हैं, इन आलोचनाओं का दबाव उन्हें तोड़ नहीं पाया बल्कि अपने प्रदर्शन से जब-तब वे आलोचकों का मुंह बंद कर देते थे.

आलोचकों को जवाब

खैर, आशंका जताई जाने लगी थी कि धोनी का हश्र भी कहीं गांगुली-द्रविड़ जैसा जैसा न हो जाए. मगर क्रिकेट का ये कुशल रणनीतिकार इन परिस्थितियों के आगे आसानी से घुटने टेकने वाला कहाँ था! कभी सचिन की अनुशंसा पर टी-20 टीम के कप्तान बनाए जाने वाले धोनी ने इस विषम परिस्थिति का जवाब अपने प्रदर्शन से देने का मार्ग चुन लिया. टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का ऐलान कर दिया और सभी प्रारूपों की कप्तानी छोड़कर कोहली के लिए जगह खाली कर दी. लेकिन, ‘एकदिवसीय क्रिकेट खेलते रहूंगा’ ऐसा ऐलान भी उन्होंने कर दिया.

इसके बाद एकदिवसीय क्रिकेट में धोनी ने बल्लेबाजी के जो जौहर दिखाने आरम्भ किए कि सारी आलोचनाएं हवा हो गयीं. आलोचक सन्नाटा मार गए. गत वर्ष सितम्बर तक के आंकड़े के अनुसार, कप्तानी छोड़ने के बाद एकदिवसीय क्रिकेट में उनका बल्लेबाजी औसत 89.75 का रहा है. कप्तान भी वे बस कहने भर को नहीं हैं, वर्ना कोहली का पिच पर लिया जाने वाला हर महत्वपूर्ण निर्णय उनकी सलाह से ही होता है. और अब आईपीएल जीतकर एकबार फिर उन्होंने साबित कर दिया कि न तो उनकी कप्तानी की धार कम हुई है और न बल्लेबाजी की.

महानता की कसौटी

होते हैं कुछ कप्तान ऐसे भी, जो जीत में भी सहज रह लेते हैं, मगर भारत में धोनी पहले ही ऐसे कप्तान दिखते हैं. धोनी के अलावा कपिल देव, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ भारतीय टीम के इन तीन कप्तानों को कमोबेश सफल माना जाता है. गौर करें तो इनमें शुरूआती दो जोशीले और जीत के उन्माद में डूब जाने वाले थे, जबकि तीसरे यानी द्रविड़ हर समय बेहद शुष्क और ढीले-ढाले से ही लगते थे. द्रविड़ की कप्तानी ऐसी ढीली और सुस्त थी कि भारतीय टीम विदेशी खिलाड़ियों की स्लेजिंग भी सहती और उल्टे दण्डित भी हो आती थी.

महान खिलाड़ी वही नहीं होता जो रिकार्ड्स बना दे, महान बनने की कसौटियां वही होती हैं, जिन बातों की हमने ऊपर चर्चा की है. उपर्युक्त बातें धोनी को भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तान, सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर और सर्वश्रेष्ठ हिटर के रिकार्ड्स से बढ़कर एक महान खिलाड़ी और बेहतरीन इंसान बनाती हैं.

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लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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