IPL-8: जब कोच के रूप में वापस आए खिलाड़ी
आईपीएल में इस बार केवल खिलाडी ही सुर्खियों में नहीं रहेंगे, बल्कि फोकस उन हाई प्रोफाइल पूर्व स्टार खिलाडियों पर भी होगा, जो फ्रेंचाइजी टीमों के साथ कोच के तौर पर नजर आएंगे.
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आईपीएल-8 का आगाज़ होने वाला है. इस बार केवल खिलाडी ही सुर्खियों में नहीं रहेंगे, बल्कि चकाचौंध कर देने वाली रोशनी का फोकस उन हाई प्रोफाइल पूर्व स्टार खिलाडियों पर भी होगा, जो फ्रेन्चाइजी टीमों के साथ कोच के तौर पर नजर आएंगे.
महान क्रिकेट खिलाड़ी रिकी पोंटिंग ने मुंबई के साथ एक नई पारी शुरू की है. पोंटिंग कोचिंग टीम के प्रमुख होंगे. इस टीम में जोंटी रोड्स, शेन बांड, अनिल कुंबले, पारस म्हांब्रे, रॉबिन सिंह और कई अन्य खिलाड़ी शामिल हैं. पोंटिंग ने रिटायर होने के बाद कॉमेंट्री बॉक्स में जगह बना ली थी. और अब उनके पास मौका है कि वे लंबे अनुभव का फायदा उठाते हुए एक नए क्षेत्र में अपने हुनर को विकसित करें.
डेनियल विटोरी का मामला भी कम रोचक नहीं है. दस दिन पहले मेलबर्न में वर्ल्डकप फाइनल में न्यूजीलैंड टीम का हिस्सा रहे विटोरी रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के मुख्य कोच होने जा रहे हैं. यादगार विश्व कप के बाद क्रिकेट से संन्यास लेने वाले विटोरी ने इसे एक बेहतर विकल्प माना और बिग बैश में भी कोचिंग की भूमिका स्वीकार की है. पोंटिंग और विटोरी आईपीएल में स्टीफन फ्लेमिंग (चेन्नई) और गैरी कर्स्टन (दिल्ली) की श्रेणी में शामिल हो गए हैं.
भारतीय क्रिकेट सितारे भी कुछ हद तक ऐसे मुकाम पर रहे हैं. लेकिन अब तक उन्होंने इस दिशा में छोटे कदम उठाए हैं. रवि शास्त्री कोच नहीं हैं. वे भारतीय टीम के साथ टीम निदेशक के तौर पर जुड़े हैं. अब इसका कुछ भी मतलब हो सकता है. राहुल द्रविड़ एक बार फिर रॉयल्स टीम संरक्षक हैं मगर कोच नहीं. टाइटल से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन्होंने शुरूआत तो कर दी है. अब कोई दूरदराज के सलाहकार नहीं हैं. द्रविड़ अभ्यास सत्र में आते हैं. खिलाड़ियों के साथ मिलकर काम करते हैं. चयन और टीम की रणनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है.
इसकी तुलना करना सही नहीं मगर मुंबई इंडियंस के साथ तेंदुलकर और सनराइज हैदराबाद के साथ लक्ष्मण कम सक्रिय भूमिका निभाते हैं. सही मायने में वे कोच या संरक्षक नहीं हैं. हकीकत में उन्हें बोर्ड में विश्वसनीयता और गरिमा बढ़ाने के लिए गैर सरकारी निदेशकों के तौर पर जोड़ा गया है.
आईपीएल की शुरूआत में सभी फ्रेंचाइजी टीमों ने विदेशियों को कोच बनाया था. उस वक्त सुनील गावस्कर ने इसकी आलोचना करते हुए इसे औपनिवेशिक सोच और गोरी चमड़ी के प्रति हमारा जुनून बताया था. 'मास्टर' ने बड़ा सपोर्ट स्टाफ रखने पर भी असहमति जताई थी. उन्होंने तथाकथित विशेषज्ञों की नियुक्ित पर सवाल उठाते हुए अनावश्यक बताया था. सपोर्ट स्टाफ के बारे में उन्होंने कहा था कि वे केवल इस तरह का माहौल बनाते हैं जिससे उनके अस्तित्व का अहसास होता रहे! आठ साल बाद भी सर्पोट स्टाफ जस का तस कायम है. और बजाय कम होने के कुछ टीमों ने उनकी संख्या और बढ़ी है.
हालांकि, कोच के रूप में भारत के कुछ पूर्व खिलाड़ी भी उभरे हैं. इस श्रेणी में किंग्स इलेवन पंजाब के प्रमुख संजय बांगड़ का नाम आता है, जिन्हें यह पद डैरेन लेहमन से विरासत में मिला है. संजय एक कुशल और समझदार कोच हैं. प्रोफेशनल के रूप में उनका सम्मान होता है. वे संतुलित रहते हैं और उनके पास स्पष्ट आइडिया हैं.
कुछ और खिलाड़ी जूनियर लेवल पर हैं. लेकिन तेजी से ऊपर आ रहे हैं. विजय दहिया कई वर्षों से केकेआर के साथ हैं. वे अपनी गहरी समझ के लिए जाने जाते हैं. प्रवीण आमरे पहले पुणे के साथ थे, अब वे दिल्ली के साथ हैं. रणजी में मुंबई की वापसी कराने में उन्होंने काफी अहम भूमिका निभाई थी. वे रॉबिन उथप्पा, अजिंक्य रहाणे और सुरेश रैना के निजी कोच/संरक्षक हैं.
हो सकता है कि भारतीय कोच टीम की बैठकों में अच्छे पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन न दे पाएं या मैनेजमेंट के जुमले उनकी जुबान पर न हों. लेकिन बांगड़, दहिया, आमरे और अन्य अपने काम को अच्छी तरह जानते हैं. खासकर बात यदि भारतीय खिलाड़ियों की समझ और स्थानीय परिस्थितियों की हो तो.
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