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Updated: 07 अक्टूबर, 2015 08:01 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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जिस कप्तान ने टीम इंडिया को दो वर्ल्ड कप जिताए, टेस्ट और वनडे रैंकिंग में नंबर एक बनाया, भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया वह खुद ही डूबने की कगार पर खड़ा है. आपने बिल्कुल ठीक समझा,ये चर्चा उस महेंद्र सिंह धोनी की है जिसकी कप्तानी ने भारतीय क्रिकेट का नक्शा ही बदल कर रख दिया. लेकिन अब इस कप्तान की सल्तनत ढह रही है. धोनी के साथ वही हो रहा है जो अक्सर महान भारतीय कप्तानों के साथ होता है, इस मामले में सौरव गांगुली से बड़ा उदाहरण किसका हो सकता है. आइए जानें कैसे धोनी भारतीय कप्तानों के दुखद अंत की कहानी दोहरा रहे हैं.

धोनी युग ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचायाः 
2007 के टी20 वर्ल्ड कप में लंबे बालों वाले महेद्र सिंह धोनी का नाम कप्तान के तौर पर हर भारतीय की जुबान पर तब आया, जब उन्होंने पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड कप जीता. न सिर्फ अपने स्टाइल बल्कि अपने दमदार शॉट्स और कप्तानी की अनोखी शैली ने उन्हें जल्द ही हर घर में पहचाना जाने वाला चेहरा बना दिया. सौरव गांगुली की आक्रामक कप्तानी का दौर देख चुके लोगों के लिए धोनी की कूल अंदाज में कप्तानी किसी ताजी हवा का झोंका बनकर आई. लोगों ने उनके इस अंदाज को सराहा और उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया. अपने इसी अंदाज के कारण उन्हें कैप्टन कूल की उपाधि मिली. उनका यह अंदाज इसलिए भी लोकप्रिय हुआ क्योंकि टीम इंडिया को एक के बाद लगातार दूसरी सफलताएं मिलती गईं. 

धोनी की ताकत ही उनकी कमजोरी बन गईः
जब तक सफलताएं मिलती गईं तब तक तो धोनी के कूल रवैये की तारीफ होती रही और सबकुछ ठीक रहा लेकिन वर्ष 2011 से खासकर विदेशों में धोनी के इस कूल रवैये के फेल होने की शुरुआत हो गई. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की धरती पर उनकी कप्तानी में टीम को लगातार 8 टेस्ट मैचों में हार झेलनी पड़ी. इसके बाद घरेलू जमीन पर तो धोनी की कप्तानी में टीम ने और कई सफलताएं हासिल की लेकिन विदेशी धरती पर टीम की नाकामी का सिलसिला फिर थमा नहीं. उनकी ताकत ही विदेशी धरती पर विदेशी टीमों के खिलाफ आक्रामक रवैया न अख्तियार कर पाने की कमजोरी के रूप में उभरा. जब टीम को आक्रामक खेल दिखाकर मैच जीतने की जरूरत होती थी तो वह ड्रॉ खेलकर ही संतुष्ट होने लगी. आक्रामकता की कमी की वजह से जल्द ही टीम इंडिया विदेशी धरती पर उस मजबूत जज्बे को गंवा बैठी जो उसने सौरव गांगुली की कप्तानी में सीखी थी. 

धोनी कप्तानों के दुखद अंत के इतिहास को दोहरा रहे हैं: 
धोनी युग के अंत की झलक पिछले एक साल से साफ देखी जा सकती है. पहले टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में श्रीलंका के हाथों मिली हार, फिर ऑस्ट्रेलिया की धरती पर टीम इंडिया को मिली करारी हार, फिर वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में हार और सबसे ज्यादा जिस हार ने इस बात पर मोहर लगाई वह थी इसी साल जून में बांग्लादेश के हाथों वनडे सीरीज में मिली हार. हार का सिलसिला थमा नहीं है, भारत के दौरे पर आई साउथ अफ्रीका के खिलाफ टीम इंडिया पहले दो टी20 गंवा चुकी है और यह सीरीज उसके लिए बेहद मुश्किल होने जा रही है. यह कप्तान के तौर पर धोनी के दुखद अंत का संकेत है. धोनी भी महान भारतीय कप्तानों के दुखद अंत का इतिहास दोहराता दिख रहे हैं. इससे पहले भारतीय क्रिकेट टीम को टीम इंडिया बनाने वाले महान कप्तान सौरव गांगुली को भी उनके कप्तानी के आखिरी दिनों में काफी असफलता झेलनी पड़ी थी. 2004 में ऑस्ट्रेलिया के हाथों अपनी ही धरती पर टेस्ट सीरीज गंवाना गांगुली की कप्तानी के बुरे दौर की शुरुआत थी, इसके बाद वह खुद भी आउट ऑफ फॉर्म रहे और फिर कोच ग्रेग चैपल के साथ विवाद ने आखिरकार 2005 में इस महान कप्तान को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया. खैर इसके बाद गांगुली ने फिर टीम में वापसी की लेकिन उनका पुराना दौर फिर कभी वापस नहीं आ पाया. अब धोनी के साथ भी कुछ वैसा ही होता दिख रहा है. बैटिंग में भी वह बहुत अच्छी फॉर्म में नहीं है टीम भी लगातार हार रही है, ऐसे में टीम इंडिया में धोनी के भविष्य और कप्तानी का भगवान ही मालिक है !

धोनी की नजरें भले ही 2016 टी20 वर्ल्ड कप पर हों पर उनके हालिया प्रदर्शन को देखते हुए कहा जा सकता है कि अब अपनी कप्तानी को और लंबा खींचकर वह अपने शानदार अतीत की उपलब्धियों पर कमतर करने का ही काम कर रहे हैं. क्रिकेट को हमेशा तब अलविदा कहना अच्छा होता है जब लोग कहें कि अभी क्यों जा रहे हैं तब नहीं जब लोग पूछने लगें कि आप जा क्यो नहीं रहे हैं. इससे बड़ा संकेत और क्या हो सकता है, इतने समझदार तो धोनी हैं ही !

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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