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Updated: 29 अगस्त, 2015 10:12 AM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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पुरस्कारों पर विरोध अब कोई नई बात नहीं रह गई है. क्षेत्र कोई भी हो, हर साल पुरस्कारों पर कोई न कोई बवाल सामने आ ही जाता है. फिर मामला चाहे भारत रत्न जुड़ा हो या राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से. पता नहीं, इन विवादों से कुछ हासिल होता है या नहीं लेकिन इसने पुरस्कारों की इमेज पर बट्टा जरूर लगा दिया है. अब सानिया मिर्जा को खेल रत्न दिए जाने के फैसले को ही ले लीजिए.

पैरालंपिक एथलीट एच. एन. गिरीश की याचिका पर कोर्ट ने सानिया को अवॉर्ड दिए जाने के फैसले पर स्टे लगा दिया है. मतलब, पुरस्कारों की थोड़ी-बहुत साख भी अगर बची है, तो उसका भी 'सत्यानाश' होना अब तय समझिए. बात सानिया मिर्जा की चली है तो ज्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि वह आज भारतीय टेनिस में एक स्टार का रूतबा रखती हैं. लेकिन यहां विवाद इस साल के खेल रत्न पुरस्कार के चयन को लेकर है.

कौन हैं एच. एन गिरीश

एच. एन. गिरीश पैरालंपिक एथलीट हैं. उन्होंने 2012 में लंदन पैरालंपिक्स में सिल्वर मेडल जीता था. ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय हैं. गिरीश की कामयाबी की चर्चा यहीं खत्म नहीं होती. पिछले साल एशियाई पैरा गेम्स में भी गिरीश हाई जंप में ब्रॉन्ज मेडल जीतने में कामयाब रहे थे. गिरीश के खाते में पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार और एकलव्य अवॉर्ड भी हैं.

उनका दावा है कि जिस प्वाइंट सिस्टम के आधार पर खिलाड़ियों का चयन होता है, उसमें वह सानिया मिर्जा से कहीं आगे हैं. गिरीश ने सानिया को तरजीह देने का आरोप लगाते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. अब कोर्ट ने सानिया और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर दो हफ्तों में जवाब मांगा है.

खेल पुरस्कार 29 अगस्त को दिए जाने हैं. कोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं कि इस मामले में उसका फैसला अवॉर्ड देने के बाद भी मान्य होगा. मतलब यह कि फैसला अगर गिरीश के पक्ष में जाता है सानिया को अवॉर्ड लौटाना होगा. और फिर खेल मंत्रालय की जो छीछालेदर होगी उसे बताने की जरूरत नहीं.

गिरीश का विरोध क्या जायज है?

एच. एन. गिरीश ने खुद के साथ पक्षपात किए जाने की दलील मजबूत तरीके से अदालत के सामने रखी है. कोर्ट को भी उनकी बातों में दम नजर आया और तभी वह सुनवाई के लिए तैयार भी हुई. कोर्ट का फैसला आने में अभी वक्त है. लेकिन सवाल है कि इससे गिरीश और खेल जगत को क्या हासिल होगा? क्या हर बार विवाद को खड़ा कर आप उस पुरस्कार की गरिमा को खत्म नहीं कर रहे? आप पुरस्कार पर सवाल भी खड़े करते हैं फिर उसे हासिल भी करना है? विवाद और विरोध के बीच अगर वह गिरीश को मिल भी जाए तो क्या उनके लिए उसकी वही अहमियत रह सकेगी?

पुरस्कारों में राजनीति और कई बार विवादित नामों का चयन नई बात नहीं है. पिछले साल भी बॉक्सर मनोज कुमार खुद का नाम अर्जुन पुरस्कार के लिए नहीं चुने जाने पर खेल मंत्रालय को कोर्ट में घसीटा था. कोर्ट का फैसला मनोज के पक्ष में रहा. बाद में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा भी गया. कुछ दिन पहले बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने भी पद्म भूषण के लिए उनका नाम नहीं भेजे जाने पर नाराजगी जताई थी. बाद में खेल मंत्रालय ने सायना के विरोध को देखते हुए उनका नाम भी प्रस्तावित कर दिया था.

पुरस्कार के लिए खिलाड़ियों के चयन के संबंध में बहुत स्पष्ट दिशानिर्देश हैं. लेकिन कई बार इन्हें नजरअंदाज किया जाता है. बस, यहीं से विवादों को मौका मिल जाता है. पिछले एक-दो वर्षों में कई मामले आए हैं. इसलिए, जरूरी है कि अब यह सुनिश्चित किया जाए कि कम से कम इन पुरस्कारों की गरिमा बची रहे.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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