क्या मेसी के लिए देश से बड़ा क्लब है? कभी नहीं...
ज्यादातर अर्जेंटीनियाई मेसी पर आरोप लगाते रहे हैं कि वे देश से ज्यादा अपने क्लब बार्सीलोना के लिए बेहतर खेलते हैं.
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लियोनल मेसी विश्व फुटबॉल का सबसे चमकता सितारा, अर्जेंटीना के लिए सबसे अधिक गोल करने वाला प्लेयर, बॉर्सीलोना फुटबॉल क्लब की रीड़ कहे जाने वाला फुटबॉलर, भारत ही नहीं दुनिया में माराडोना की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला फुटबॉलर. दुनिया भर के स्पॉन्सरों की आंखों का तारा. देश हो या विदेश हर व्यक्ति जो फुटबॉल को देखता, समझता है वो मेसी का दीवाना है और अर्जेंटीना की आसमानी जर्सी दुनियाभर के फैंस को इसीलिए भाती है, लेकिन अब इस आसमानी जर्सी में नहीं दिखेगा 29 बरस का ये अद्भुत फुटबॉल खिलाड़ी.
हमारे जैसे देसी फुटबॉल फैंस के लिए इमोशनल घड़ी है, वो मेसी की जर्सी किसके लिए पहनेंगे? उससे भी बड़ा सवाल है अब उन स्पॉन्सर्स का क्या होगा, जो मेसी के नाम पर अरबों का कारोबार करते हैं? 2018 में रूस में होने वाले विश्वकप में मेसी की गैरमौजूदगी का असर प्रायोजकों और आयोजकों पर कितना पड़ेगा? ये कई सवाल है जो मेसी के सन्यास की घोषणा के साथ फुटबॉल जगत में उठ खड़े हुए हैं?
अर्जेंटीना को मेसी का अलविदा |
अगर सिर्फ अपने देश की बात की जाए तो मेरे जैसे लाखों फुटबॉल फैन जो 2 बजे रात तक यूरो कप देखने के बाद आज सुबह 6 बजे सिर्फ इसलिए जग गए कि उन्हें मेसी को कोपा अमेरिका के फाइनल में खेलते हुए देखना था. कोपा अमेरिका के प्रति भविष्य में ऐसा कमिटमेंट दिखाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि अब उसमें लियोनल मेसी नहीं होंगे. निजी तौर पर मैं चाहता था कि अर्जेंटीना मेसी के लिए जीत जाए लेकिन मेसी खुद पेनल्टी मिस कर गए और मेसी ने मुकाबले के बाद अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल को अलविदा कह दिया.
2014 विश्व कप फाइनल में जर्मनी के हाथों हार, कोपा अमेरिका फाइनल में चिली के हाथों लगातार दूसरी हार, जी हां, बीते 2 बरस में हार की इस हैट्रिक ने मेसी को हतोत्साहित कर दिया. वैसे मेसी और अर्जेंटीना के फुटबॉल फैंस के बीच वो रिश्ता कभी बन ही नहीं पाया जो माराडोना या गैबरियल बटिस्टूता के साथ था. बीते एक दशक में अर्जेंटीना के फैंस ने हर बड़ी हार पर टीम नहीं मेसी को जिम्मेदार ठहराया और शायद फैंस का यही दबाव आज मेसी पर भारी पड़ गया.
ज्यादातर अर्जेंटीनियाई मेसी पर बार्सीलोना के लिए बेहतर खेल खेलने का आरोप लगाते रहे. कई तो उन्हें बार्सीलोना ब्वॉय बोलते थे लेकिन उन फैंस ने शायद कभी ये नहीं सोचा कि मेसी ने साल 2004 में स्पेन से खेलने का मिला ऑफर ठुकरा दिया था. अब उन फैंस की बारी है कि वो मेसी के बगैर अर्जेटीनियाई को किस नज़रिए से देखते है. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि अब उन्हें इस महान फुटबॉलर की अहमियत समझ आएगी क्योंकि मेसी को अगर माइनस कर दें तो अर्जेंटीना का हाल काफी कुछ भारतीय हॉकी जैसा ही है.
1993 के बाद से अर्जेंटीना ने कोई बड़ा खिताब नहीं जीता है और अब इसमें कोई संदेह नहीं कि लियोनल मेसी का सन्यास ट्राफियों के इस सूखे से और लंबा खीचेंगा. अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में मेसी-रोनाल्डो की प्रतिस्पर्धा बीते दशक से चली आ रही है. दोनों की फुटबॉल शैली अलग है लेकिन इनका जुझारूपन फुटबॉल विश्वजगत को वो ऊर्जा आनंद देता था जैसा टेनिस में कभी फेडरर-नडाल की राइवैलरी देती थी. मैसी और रोनाल्डो के बीच ये प्रतिस्पर्धा ला लीगा (स्पैनिश लीग) में तो जारी रहेगी लेकिन अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में आज उसका भी अंत हो गया.
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