MS Dhoni: बड़े शहर के मठाधीशों को चुनौती देने वाली छोटे शहर की आंधी
महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) ने 15 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट सफर को रिटायरमेंट ( Dhoni Retirement) से विराम दे दिया है. धोनी छोटे शहरों के टैलेंट के लिए प्रेरणा की सबसे बड़ी वजह हैं, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के महानगरों के मठाधीशों को न सिर्फ चुनौती दी, बल्कि अथक मेहनत और जज्बे के बल पर ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसे दुनिया कभी नहीं भूल सकती.
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भारतीय क्रिकेट के सबसे महानतम युग के सबसे बड़े खिलाड़ी के करियर ने 15 अगस्त 2020 को बड़ी शांति से करवट ले ली और दुनिया भर के लाखों-करोड़ों फैंस को यादों में समुंदर में डुबो दिया, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां हैं और उनकी सबसे बड़ी वजह- माही. एक ऐसा नाम, जिसकी शाब्दिक व्याख्या करें तो इसका अर्थ ‘सबसे प्यारा’ होता है. महेंद्र सिंह धोनी वाकई सबके प्यारे हैं. बीते शनिवार को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. अब दुनिया उन्हें कभी भी नीली जर्सी में देख नहीं पाएगी. टेस्ट क्रिकेट से पहले ही संन्यास ले चुके धोनी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन खुद को भारतीय क्रिकेट टीम से स्वतंत्र कर दिया. लंबे समय से उनके रिटायरमेंट के कयास लग रहे थे और माही ने बड़ी शांति से रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए अपने करोड़ों फैंस से बस इतना कहा- आपके साथ और प्यार के लिए शुक्रिया. महेंद्र सिंह धोनी जैसा खिलाड़ी सदियों में होता है, जो करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खड़ा उतरना के साथ ही अपने साथ के खिलाड़ियों के लिए न सिर्फ प्रेरणास्रोत बनता है, बल्कि छोटे शहरों के लाखों-करोड़ों लोगों को सपना देखने लायक बनाता है और कड़ी मेहनत से चुनौतियों से पार पाने का हौसला भरता नजर आता है. रांची के लाडले धोनी ऐसे ही खिलाड़ी थे, जिन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को न सिर्फ क्रिकेट के माध्यम से अनगिनत खुशियां और यादें दीं, बल्कि लाखों लोगों के सपने देखने की वजह बने.
रांची जैसे टीयर 2 सिटी या छोटे शहर से निकले धोनी की कहानी तो आप साल 2016 में आई सुशांत सिंह राजपूत की प्रमुख भूमिका वाली फ़िल्म M.S. Dhoni: The Untold Story में देख ही चुके हैं. लेकिन धोनी ऐसे शख्स थे, जिन्होंने क्रिकेट समेत अन्य स्पोर्ट्स हो, एक्टिंग हो, बिजनेस हो या पैसा या शोहरत कमाने की अन्य विधाएं, हर फील्ड के लोगों को मेहनत करना और चुनौतियों से पार पाते हुए अपने फील्ड में ऊंचा करने का हौसला दिया. उन्होंने साबित किया कि अगर मौका मिले तो छोटे शहर में पले-बढ़े और सीमित संशाधनों में भी बच्चे इतना कुछ कर सकते हैं कि दुनिया उन्हें वर्षों याद करने के लिए मजबूर हो जाए. छोटे शहरों के टैलेंट के सबसे बड़े प्रतिनिधि और हर चुनौतियों को निर्भयता से पार कर दुनिया को अपने कदमों में झुकाने की काबिलियत किसी में थी, तो वह धोनी थे. धोनी का प्रभाव ऐसा था कि चाहे बिजनेस हो, स्टार्टअप्स हो, फिल्म इंडस्ट्री हो अन्य विधाएं, छोटे शहरों के काबिल लोगों की फेहरिस्त में धोनी सबसे ऊंचे पायदान पर दिखते हैं और वह छोटे शहरों के लोगों के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं.
छोटे शहरों का सबसे बड़ा नाम
महेंद्र सिंह धोनी ने एक तरह से छोटे शहरों के टैलेंट का प्रतिनिधित्व किया और बाकी लोगों को अपने सपने के पीछे भागने का हौसला दिया. साल 2006-07 के दौर में जब इंटरनेट का आगमन हो चुका था और दुनिया तेजी से बदल रही थी. उस समय हर फील्ड में छोटे शहरों के लोगों की भूमिका बढ़ रही थी. फ़िल्मों में इरफान, अनुराग कश्यप, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत ढेरों नए चेहरे स्थापित हो रहे थे, वहीं टाटा, बिरला जैसी स्थापित कंपनियों की भीड़ में कई नए स्टार्टअप्स अपनी जगह बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे. उस दौर में हर किसी की जुबान पर था कि देखो, धोनी जब मेहनत से इतना ऊंचा मुकाम हासिल कर सकता है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते. जिस तरह 80 के दशक में पैदा हुए हर खिलाड़ी के आदर्श सचिन थे, उसी तरह 90 के दशक में पैदा हर खिलाड़ी और जीवन में कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशों के गुलाम हर शख्स की जुबां पर धोनी एक उदाहरण और सच के तौर पर थे.
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फर्श से अर्श तक के सफर का नायाब उदाहरण
7 जुलाई 1981 को तत्कालीन बिहार के रांची जिले में एक पंप ऑपरेटर के घर पैदा हुए महेंद्र सिंह धोनी को फुटबॉल खेलना और खासकर गोलकीपिंग बेहद पसंद था, लेकिन किस्मत में उन्हें क्रिकेट खेलना था. एक दिन अचानक उन्हें स्कूल क्रिकेट टीम में विकेटकीपिंग का मौका मिला और फिर धोनी ने उसमें इतना अच्छा कर दिया कि क्रिकेट उनके जीवन का हिस्सा बन गया. सचिन तेंदुलकर को खेलते देख धोनी भी क्रिकेटर बनने का सपना देखने लेगे और अपनी अथक मेहनत के साथ ही ढेरों चुनौतियों को पार करते वह आगे बढ़ते गए. धोनी के क्रिकेट जीवन का शुरुआती सफर कितना मुश्किल भरा था, ये आप उनकी बायोपिक में देख चुके हैं, लेकिन जो आपने नहीं देखा, वो है धोनी का जुनून और जज्बा. ऐसा जज्बा, जो उन्हें किसी भी परिस्थिति में हारने नहीं देता. बेहद शांत और सौम्य दिखने वाले धोनी को अपनी मेहनत, किस्मत और फैसले पर इतना भरोसा है कि वह दुनिया जीत लें. इसी जुनून और जज्बे के साथ धोनी जिला स्तर और फिर राज्य स्तर पर अपनी बेमिशाल बैटिंग और विकेट कीपिंग का जलवा दिखाते रहे और फिर वह दिन आया, जब धोनी को दुनिया ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच में क्रिकेट ग्राउंड पर देखा. बड़े बालों वाला धोनी पिच पर बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेता था.
ऐसे छाए इंडियन क्रिकेट टीम में...
1999-2000 के दौरान बिहार रणजी क्रिकेट टीम और फिर 2002-03 में झारखंड क्रिकेट टीम के अभिन्न अंग के रूप में अपनी प्रतिभा साबित करने के बाद धोनी का चयन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम में होता है. साल 2004 का 23 दिसंबर, चटगांव में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे मैच में डेब्यू करने वाले धोनी कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन उनकी प्रतिभा से चयनकर्ता और दर्शक दोनों वाकिफ थे, ऐसे में उन्हें मौका मिलता रहा और फिर धोनी ने ऐसा जादू चलाया कि पूरी दुनिया उनकी विकेटकीपिंग और बैटिंग की काबिल हो गई. ठीक एक साल बाद यानी दिसंबर 2005 में धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट मैच में पर्दापण किया और फिर क्रिकेट के दोनों शीर्ष फॉर्मेट यानी टेस्ट और वनडे में धोनी ने अपने शानदार परफॉर्मेंस से जगह पक्की कर ली.
बड़े नामों के बीच ऐसे बनी धोनी की अलग पहचान
यह वो दौर था, जब भारतीय क्रिकेट टीम पर दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक, कोलकाता, हैदराबाद जैसे महानगरों के खिलाड़ी मठाधीश बनकर बैठे हुए थे और ये सारे खिलाड़ी उम्र की ऐसी दहलीज पर थे, जहां उनके परफॉर्मेंस पर दर्शक जरूर सवाल उठाने लगे थे. ऐसे दौर में रांची जैसे एक छोटे शहर के खिलाड़ी ने भारतीय क्रिकेट टीम में अपने धांसू परफॉर्मेंस से ऐसा तूफान खड़ा किया कि सारे मठाधीशों की कुर्सियां हिलने लगीं. चाहे मुंबई के सचिन तेंदुलकर हो, कोलकाता के सौरभ गांगुली हो, दिल्ली के वीरेंद्र सहवाग हो, हैदराबाद के वीवीएस लक्ष्मण हो या कर्नाटक के राहुल द्रविड़, इन सारे बड़े खिलाड़ियों के बीच महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी ऐसी पहचान बनाई कि बाकी सारे खिलाड़ी उनके सामने कम पड़ने लगे. धोनी यंग थे, अच्छा खेलते थे और उनमें जोखिम उठाने का साहस था. हालांकि, साल 2007 के विश्व कप में टीम इंडिया के खराब प्रदर्शन के बाद धोनी भी फैंस के निशाने पर आए और रांची में उनके घर में तोड़फोड़ की गई. लेकिन धोनी पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपना खेल दिनानुदिन सुधारते रहे.
कप्तानी के साथ ही बड़ी जिम्मेदारी भी आई
धोनी ने साल 2004 में डेब्यू करने के बाद लगभग हर वनडे और टेस्ट सीरीज में बेहतरीन प्रदर्शन किया और इसका उन्हें रिवॉर्ड भी मिला. जून 2007 में उन्हें क्रिकेट के नए और उभरते फॉर्मेट टी20 के लिए भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बना दिया गया. वहीं सितंबर 2007 में धोनी को एकदिवसीय मैचों के लिए भी भारतीय टीम को लीड करने का जिम्मा दे दिया गया. धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण के महज 3 साल के अंदर वनडे और टी20 फॉर्मेट में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बन गए. अब दौर था धोनी का, जो भारतीय टीम की बेहतरी के लिए बड़े से बड़ा फैसला लेने से चूकता नहीं था. कप्तान बनने के बाद धोनी ने इंडियन टीम को यंग बनाने का फैसला किया और चयनकर्ताओं को साफ-साफ कह दिया कि वह अपनी टीम में कुछ नए चेहरे को शामिल करना चाहते हैं, जिसके लिए पुराने चेहरे को टीम से बाहर निकालना होगा. ऐसे समय में टी20 फॉर्मेट में सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले और सौरभ गांगुली जैसे खिलाड़ियों को विश्राम दिया गया. धोनी के इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई, लेकिन जब धोनी ने रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, जोगिंदर शर्मा, दिनेश कार्तिक, इरफान पठान, आरपी सिंह, एस श्रीसंत, रॉबिन उथप्पा और युवराज सिंह जैसे यंग खिलाड़ियों के साथ टी-20 वर्ल्ड कप का मुकाबला जीत लिया तो दुनिया ने धोनी के कड़े फैसले की हकीकत जानी और लोग लोहा मान बैठे कि धोनी जो फैसला करता है, वह टीम के साथ ही देश हित में होता है.
धोनी के साहसिक फैसले के बदली फिजा
धोनी ने भारतीय टीम की पहले से स्थापित व्यवस्था को कड़ी चुनौती देते हुए महानगरों के मठाधीशों को चैलेंज किया और फिर अपनी यंग टीम के बुते ऐसा कर दिखाया कि बड़े-बड़े खिलाड़ियों को उनकी हकीकत और भविष्य में क्रिकेट के स्वरूप का अंदाजा हो गया. ऐसी स्थिति में वह खुद ही या तो संन्यास लेने लगे या चयनकर्ताओं के साथ ही धोनी के फैसले का सम्मान करने लगे. सितंबर 2007 विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम के खराब प्रदर्शन के बाद जब टीम की कप्तानी राहुल द्रविड़ से महेंद्र सिंह धोनी को सौंपी गई, तभी धोनी ने फैसला कर लिया कि साल 2011 के आईसीसी वनडे विश्व कप के लिए वह ऐसी टीम बनाएंगे, जो हर मुश्किल में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों पर ले जाने से साथ ही भारत को दोबारा विश्व कर दिला सकती है. धोनी ने इसी रणनीति के तरह एक ऐसी टीम बनाई, जिसमें छोटे शहर के स्टार्स प्लेयर थे. धोनी ये मानते थे कि छोटे शहर के युवाओं में भी उतना ही आत्मविश्वास और हौसला होता है, जितना दूसरों में होता है. बस मौका मिलना चाहिए, उसके बाद वो कुछ भी कर सकते हैं.
यंग धोनी की यंग टीम
धोनी की यंग टीम में लखनऊ के तेज गेंदबाज आरपी सिंह जुड़े. मेरठ के ऑलराउंडर सुरेश रैना जुड़े, शामली के प्रवीण कुमार, अलीगढ़ के पीयूष चावला, पंजाब की शान युवराज सिंह और हरभजन सिंह तो थे ही, वरोदड़ा के पठान ब्रदर्स, दिल्ली के विराट कोहली, गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग और आशीष नेहरा, गुजरात के इखार के मुनाफ पटेल, मुंबई के सचिन तेंदुलकर और अन्य लोग थे. साल 2011 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में धोनी ने सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों का ऐसा ताना-बाना बुना कि सभी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और भारतीय टीम 28 साल बाद विश्व कप जीतने में कामयाब रही. यही धोनी की विरासत और कामयाबी है. उन्होंने भारतीय टीम के हित में कड़ै फैसले लिए और महानगरों की मठाधीशी खत्म कर छोटे-मोटे शहरों के उम्दा खिलाड़ियों के बल पर इतिहास रच दिया. वह वो दौर था, जब हर किसी की जुबां पर धोनी का ही नाम था और लोग धोनी के नाम की दुआएं लेते थे.
उपलब्धियों की कायनात समेटे माही इकलौते हैं
धोनी अपने 15 साल के क्रिकेट करियर के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम की रीढ़ की हड्डी बने रहे, जिनके बिना भारतीय टीम अधूरी लगती थी. धोनी ने इन वर्षों में भारतीय क्रिकेट टीम को आईसीसी की तीनों ट्रॉफी- 2007 टी-20 वर्ल्ड कप, 2011 वनडे वर्ल्ड कप और 2013 में चैम्पियंस ट्रॉफी में जीत दिलाई. ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले धोनी दुनिया के इकलौते कप्तान हैं. अपने साथी खिलाड़ियों के प्रेरणास्रोत और एक नई टीम तैयार करने का श्रेय हमेशा धोनी को जाता है. नवंबर 2008 में टेस्ट टीम का कप्तान बनने के बाद धोनी ने एक साल के अंदर भारत को टेस्ट रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुंचा दिया. यही नहीं, धोनी ने लगातार चेज करके भारतीय टीम को जिताने का भी रेकॉर्ड बनाया. धोनी हर मुश्किल वक्त में धैर्य के साथ काम लेते रहे और अपने हर मुश्किल फैसले को सच साबित करते हुए भारतीय टीम तो बुलंदियों पर पहुंचाते रहे. उनकी इस कोशिश में उनकी टीम के सदस्यों ने हरसंभव साथ दिया और कहते हैं कि टीम स्पिरिट अच्छी हो तो कुछ भी असंभव नहीं, धोनी भी सभी को साथ लेकर चलते रहे और दर्शकों को हर पल खुशियों का पिटारा सौंपते रहे.
जरा धोनी के रिकॉर्ड पर एक नजर डाल लें...
महेंद्र सिंह धोनी ने भारतीय क्रिकेट का नाम ऊंचा करने के साथ ही व्यक्तिगत तौर पर भी इतने रिकॉर्ड बनाए कि गिनते-गिनते लोगों की सांसे थम जाए. सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी का रिकॉर्ड धोनी के नाम है. साथ ही विकेटकीपर के रूप में धोनी के नाम सबसे ज्यादा स्टंपिंग और धक्के जड़ने का भी रिकॉर्ड है. धोनी सबसे ज्यादा टेस्ट मैच में कप्तानी करने वाले विकेटकीपर हैं. एकदिवसीय मैचों में एक पारी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले विकेटकीपर के रूप में धोनी ही सबसे आगे हैं. इसके साथ ही टी20 फॉर्मेट में भी सबसे ज्यादा मैचों में कप्तानी का रिकॉर्ड एमएस धोनी के ही नाम है. कप्तानी छोड़ने के बाद विराट कोहली के नेतृत्व में भी ऑन फील्ड टीम संयोजन में धोनी की सबसे बड़ी भूमिका रहती थी. विकेट के पीछे से ही वह गेंदबाजों और फील्डर्स का हौसला आफजाई करते थे और उनका मनोबल बढ़ाने के साथ ही मैच में अच्छा करने की हरसंभव टिप्स देते थे, जिसकी कायल दुनिया के साथ ही बीते 10 सालों के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम से जुड़ा खिलाड़ी है. दुनिया धोनी को एक ऐसी हकीकत के रूप में देखती है, जो पहले सपने के रूप में आया और अथक मेहनत से उसने वो सब किया, जो शायद फरिश्ता ही किसी के लिए करता है.
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