मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ कॉमेंट्री बॉक्स से
पिछली बार अमिताभ बच्चन ने क्रिकेट को अपनी आवाज तब दी थी, जब चंपानेर में भुवन की ग्रामीण टीम "तीन गुना लगान" देने से बच गई थी.
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पिछली बार अमिताभ बच्चन ने क्रिकेट को अपनी आवाज तब दी थी, जब चंपानेर में भुवन की ग्रामीण टीम "तीन गुना लगान" देने से बच गई थी. उस वक्त तो लगान ऑस्कर को लगभग चूमने की स्थिति तक पहुंच गई थी.
कल, बिग बी के पास एक माइक था. उसी आवाज के लिए जिसे विश्वास करें या ना करें, पर साठ के दशक में आल इंडिया रेडियो ने ऑडिशन में फेल कर दिया था. वही आवाज कल क्रिकेट विश्व कप में भारत-पाकिस्तान के बीच हो रहे मैच की कॉमेंट्री कर रही थी. भारतीय सिनेमा की इस मशहूर आवाज़ का साथ निभाने के लिए वहां कपिल देव, राहुल द्रविड़, शोएब अख्तर और आकाश चोपड़ा भी मौजूद थे.
विशेषज्ञ आकाश चोपड़ा ने कहा कि "अगर आप कॉमेंट्री में आ जाएंगे तो हमारी छुट्टी हो जाएगी" और बच्चन ने इस पर हमेशा की तरह अपनी विनम्रता का परिचय दिया. सोचिए अगर वो कहते "हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है".
कॉमेंट्री के जरिए बच्चन ने कोई चमत्कार नहीं दिखाया, लेकिन ज्यादातर मौकों पर वे "पिडली सी बातें" करते नजर आए. उन्होंने स्टार नेटवर्क के लिए कहा कि आज वो यहां जो कर रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं किया. इस मौके पर वे दुनियाभर में मौजूद अपने करोड़ों प्रशंसकों से कह सकते थे "खुश तो बहुत होंगे आज तुम. जो आज तक कॉमेंट्री बॉक्स की सीढ़िया नहीं चढ़ा, वो आज तुम्हारे सामने माइक पकड़ कर बैठा है".
अमिताभ बच्चन की हिंदी कॉमेंट्री के दौरान फेंस उनकी आवाज़ की लय पर झूमते. लेकिन इसी बीच पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण ने हिंदी को हैदराबादी टच दिया. "क्या शॉट मारे". लक्ष्मण पूरी तरह हिंदी भाषी नहीं हैं, लेकिन इससे पता चलता है कि हिंदी विभिन्न राज्यों और भारत के शहरों में यह कैसी विविधता के साथ बोली जाती है.
क्रिकेट में हिन्दी कमेंटरी के साथ यह समस्या है कि इस खेल में उतनी गति नहीं है, जितनी कि हिंदी में सही भाव लाने के लिए चाहिए. हॉकी जैसे खेल में हिन्दी कमेंट्री अब भी सरताज है. गति और ऊर्जा जिसके साथ कुछ ऐसे बताया जाता है कि "गेंद जो राइट हॉफ ने सेंटर फॉरवर्ड को पास किया, अर्जेंटीना की कोशिश बॉल को ट्रेप करने की, उसमें वह चुके और संदीप सिंह तेज़ी से अर्जेंटीना की रक्षापंक्ति को मात देते हुए डी में पंहुच गए हैं और उन्होने ये शॉट मारा और ये गोल"
अगर तुलना करें तो क्रिकेट कॉमेंट्री में एक ठहराव है जो हिंदी भाषियों को पंसद नहीं. जब तक कि कोई शिखर धवन या शाहिद अफरीदी कहर बरपा रहे हों.
भले ही हिन्दी कमेंट्री अंग्रेजी टिप्पणीकारों के लिए क्रिकेट से बाहर की ज़बान हो लेकिन उसके उलट हिंदी में कॉमेंट्री अपनी मिट्टी की खुश्बु की तरह होती है. जो भारत और पाकिस्तान के बीच मैच में बेहतर काम करती है. कमेंट्री बॉक्स के बाहर लोगों तक क्रिकेट की बात हिंदुस्तानी तरीके से पंहुचाने के लिए रवि शास्त्री जैसे लोग क्रिकेट की सेवा करने के लिए एक व्यावहारिक विकल्प हैं. यह और भी मनोरंजक हो जाता है कि जब कपिल देव उम्मीद से ज्यादा बेहतर तरीके से कहते हैं कि "अब ये मैच कमजोर दिलों के लिए नहीं है" या फिर कहते हैं कि "गेंद ने टप्पा खाया और बॉउंड्री के बाहर, चार रनों के लिए".
पहली बार इस विश्व कप में तमिलनाडु और केरल में दर्शकों को दो क्षेत्रीय चैनलों पर तमिल और मलयालम में कॉमेंट्री सुनने को मिल रही है. और मलयालम में गेंद को 'पैंद' कहा जाना सुनने में प्यारा लगता है. जाने-माने पूर्व क्रिकेटरों या क्रिकेट प्रेमी फिल्मी सितारों का दोनों भाषाओं में कमेंटरी करना क्रिकेट प्रेमियों के लिए दो ग्लैमर भरे विकल्प बन जाते हैं.
और तब हिन्दी दर्शक भी कह सकते हैं "मेरे पास अमिताभ बच्चन है".
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