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Updated: 11 जुलाई, 2015 04:07 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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दुनिया भर के और खेलों में न सही, लेकिन क्रिकेट में हम खुद को जरूर तुर्रम खां समझते हैं. सही भी है. हमने कई शानदार क्रिकेटर दुनिया को दिए हैं. दुनिया की सबसे महंगी और लोकप्रिय क्रिकेट लीग हम आयोजित करते हैं. दो बार विश्व कप जीत चुके हैं. आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में भी शीर्ष पर रह चुके हैं. लेकिन हमारी बेंच स्ट्रेंथ कितनी कमजोर है, यह आईसीसी रैंकिंग की 11वें नंबर की टीम जिम्बाब्वे ने साबित कर दिया. पहले वनडे मैच में चार रनों की जीत के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा, यह टीवी पर सबने देखा. बांग्लादेश से हाल में मिली हार क्या कम थी जो जिम्बाब्वे भी हमारे नाक में दम करने पर उतारू है.

कहने वाले कह सकते हैं कि हर जीत अपने आप में खास होती है. लेकिन साहब, आप यह भी देखिए हम आईसीसी वनडे रैंकिंग में ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर हैं. हमारे सामने जो टीम थी उसके मौजूदा दो खिलाड़ियों के नाम अगर मुझे बताने को कहा जाए, तो मैं सोच में पड़ जाऊंगा. मैं क्या, कई और लोग मेरे जैसै ही होंगे. ऐसी टीम के खिलाफ अगर हमारा प्रदर्शन ऐसा है तो भैया इससे अच्छा है कि आप अपने स्टार खिलाड़ियों को ही वहां ले जाते. सीनियर खिलाड़ियों को फिर ऑस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों के खिलाफ किसी बड़े सीरीज में आराम दे देते. इज्जत बढ़ जाती फिर सर. दुनिया वाले भी कहते कि क्या जिगरा है हमारे पास. जहां तक ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका से हारने की बात है, तो उस हार को तो ऐसे ही माफी मिल जाती.

कैसी है हमारी बेंच स्ट्रेंथ
जो भी हो, सवाल यही है कि हर साल हम इस बात का दंभ भरते तो हैं कि इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) से हमें कई स्टार खिलाड़ी मिलते हैं. लेकिन क्या वाकई सचमुच ऐसा है. असल में इस मामले में हम आज भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ सके हैं. एक समय सचिन तेंदुलकर पर टीम इंडिया कैसे निर्भर रहती थी, याद है न. सचिन के आउट होने के साथ ही टीवी बंद. इस लिहाज से थोड़ा आगे हम बढ़े हैं. लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों की बराबरी करने के लिए और मेहनत करनी पड़ेगी.

वनडे या टी-20 में हमारी गाड़ी फिर भी खिंचखांच के या धक्का लगा के आगे बढ़ जाती है. लेकिन टेस्ट में हमारे पास ऐसे पांच नाम भी नहीं हैं जो सीनियर खिलाड़ियों की गैरमौजूदगी में टीम को संभाल सकें. जिम्बाब्वे दौरे के लिए भी केवल दो नए चेहरे मनीष पांडे और संदीप शर्मा ही शामिल किए गए. ऐसे में यह बात साफ हो जाती है कि हमारे पास नए खिलाड़ियों की कितनी बड़ी फौज है!

IPL से क्या सच में मजबूत हुई हमारी क्रिकेट
IPL के बाद से ही ऐसी बातें कही जाती रही है कि इस टूर्नामेंट ने कई अच्छे खिलाड़ी भारतीय टीम को दिए हैं. पहले तो यह बात ही थोड़ी अजीब लगती है. IPL के ज्यादातर खिलाड़ियों का चुनाव उनके रणजी ट्रॉफी या अन्य घरेलू टूर्नामेंट में प्रदर्शन को देखते हुए ही किया जाता है. फिर यह कैसे कहा जा सकता है सभी प्रतिभाएं आईपीएल से ही मिलती हैं. हां! बड़े प्रचार-प्रसार और करोड़ो पैसे वाले इस टूर्नामेंट के जरिए नए खिलाड़ियों को स्टारडम सा अहसास जरूर दिला दिया जाता है. IPL के शुरू हुए आठ साल हो चुके हैं लेकिन दो-तीन खिलाड़ियों के भी नाम आपके जहन में आते हैं, जिनके बारे में आप यह कह सके कि वह IPL की ही देन हैं. और जिनके नाम आप लेंगे, उनके घरेलू प्रदर्शन पर भी नजर दौड़ा लीजिएगा. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

रोटेशन पॉलिसी से बन सकती है बात
क्रिकेट आस्ट्रेलिया (सीए) को इसमें महारत हासिल है. दुनिया की बड़ी टीमें एक ही साथ छह-छह खिलाड़ियों को आराम नहीं देती. वे हर सीरीज में एक या दो बदलाव करती रहती हैं. नए खिलाड़ियों को मौका देती हैं. इससे टीम में आने वाले नए खिलाड़ियों को भी सीनियर प्लेयरों से सीखने का मौका मिलता है. ऐसे ही एक बेहतर खिलाड़ी तैयार किया जाता है. यही सही तरीका भी है. लेकिन ऐसा हमारे यहां क्यों देखने को नहीं मिलता? उम्मीद है सिलेक्टर्स भी जिम्बाब्वे का मैच देखे होंगे.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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