ऋषभ पंत की कामयाबी के संकेत और संदेश समझिए...
क्रिकेटर ऋषभ पंत की अभूतपूर्व सफलता एक सार्थक संकेत और संदेश है कि देश के छोटे शहरों के नौजवानों ने सफलता का मीठा स्वाद चख लिया है.ये जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं. छोटे शहरों की बड़ी कामयाबी कई मायनों में आश्चर्य में डालने वाली है.
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देखिए कोई खिलाड़ी अपने चाहने वालों के दिलों पर राज तब करता है जब वह विपरीत हालातों में या खास मैचों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है. इस तरह के खिलाड़ियों को कहते हैं बिग मैच प्लेयर. डिएगो माराडोना, पेले, लारा, राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर बिग मैच प्लेयर रहे हैं. अपने छोटे से करियर में ऋषभ पंत ने इस बात को बार-बार सिद्ध किया है कि वह बिग मैच प्लेयर है. देवभूमि उत्तराखंड के रूड़की शहर के पंत अब देश के सुपरस्टार हैं. उसकी सफलता को इस रूप में भी देखना होगा कि अब छोटे शहरों के नौजवान भी अपने आकाश छूने लगे हैं. भारत ने अभी कुछ समय के अंतराल में आस्ट्रेलिया को आस्ट्रेलिया में ही और फिर इंग्लैंड को क्रिकेट टेस्ट सीरिज में हराया. इन दोनों ही सीरिज में पंत का प्रदर्शन शानदार रहा. वे बेखौफ अंदाज से खेलते हैं. उन्हें तेज गेंदबाज या स्पिनर बांध नहीं पाता है. पंत अपनी धमाकेदार बैटिंग से सबको प्रभावित कर चुके हैं. अब पंत को सारी क्रिकेट की दुनिया जानती है. पर मुझे उसकी चमत्कारी प्रतिभा के बारे में तब मालूम चल गया था जब वह अपने गृह नगर रूड़की में ही रहता था. वह तब प्राथमिक स्कूल में था. तब मैंने उसे अपने विद्यालय दि इंडियन पब्लिक स्कूल में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले एसपी सिन्हा टूर्नामेंट में खेलने को बुलाया.
तमाम कारण हैं जो बताते हैं कि ऋषभ पंत में भविष्य का कप्तान है
मैंने जब उसकी अदभुत क्षमताओं को खेल के मैदान में देखा तब मैंने उसे तुरंत अपने देहरादून स्थित पूर्णतः आवासीय दि इंडियन पब्लिक स्कूल में 100 प्रतिशत स्कालरशिप पर दाखिला दिलवा दिया. वहां उसे कायदे से तराशा गया. अपनी गौशाला के दूध-दही ने उसकी शारीरिक क्षमता का विकास किया. उसे श्रेष्ठ कोचिंग भी मिली. एक क्रिकेट कोच को खासकर उसी के लिये रखा गया. ऋषभ के पिता एक प्राइमरी स्कूल टीचर थे. उन्हें तो विश्वास ही नहीं हुआ कि देहरादून के एक बड़े आवासीय विद्यालय में उनके बच्चे का एडमिशन 100 प्रतिशत स्कालरशिप पर हो गया है.
खब्बू पंत और महेन्द्र सिंह धोनी में कई समानताएं नजर आती हैं. दोनों मूल रूप से देवभूमि उत्तराखंड से हैं. हालांकि धोनी का परिवार रांची में बसा हुआ है. दोनों स्टारडम मिलने के बाद भी विनम्र है. धोनी और पंत अब भी अपने बड़ों का आदर करते हुए चरण स्पर्श करते हैं. यह कोई छोटी बात नहीं है. भारत की क्रिकेट लगभग दस वर्षों तक धोनी के इर्द-गिर्द घूमी. वे हरेक आड़े वक्त में चट्टान की तरह से विकेट पर खड़े हो जाते थे. पंत आस्ट्रेलिया से लेकर अहमदाबाद में विकेट पर किसी योद्धा कि तरह से डटे रहे.
उन्होंने दोनों सीरिज में भारत की विजय को सुनिश्चित किया. हालांकि उन्हें क्रिकेट का ज्ञान देने वालों की कोई कमी नहीं है, पर वे खेलते रहे अपने मन से. वे गैर-जिम्मेदार नहीं है. पर ताबड़तोड़ खेलना उनका स्टाइल है. वे भविष्य के टीम इंडिया के कप्तान हैं. उन्हें अभी कम से कम 12-14 साल और खेलना है.
गुण नेतृत्व के
पंत चाहें तो धोनी से बहुत कुछ सीख सकते हैं. खासतौर पर नेतृत्व के गुण. धोनी विजय और पराजय में किसी साधु की तरह निर्विकार भाव से रहते थे. इसलिए ही धोनी बाकी से अलग माने गए. भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने कोई अच्छे कर्म किए थे कि उन्हें इतना बेहतरीन कप्तान और बल्लेबाज मिला था. पंत और धोनी का सफलता की नई-नई इबारतें लिखना सिद्ध करता है कि अब देश के छोटे शहर भी किसी से कम नहीं हैं. गुजरे कुछ सालों से देखने में आ रहा है कि देश के महानगरों या बड़े शहरों से हटकर छोटे शहरों के युवा भी शिखर को छू रहे हैं.
पिछले साल हरियाणा के प्रदीप सिंह ने यूपीएससी की परीक्षा में देशभर में टॉप किया था. सोनीपत जिले के प्रदीप सिंह किसान परिवार से हैं. पिता खेती करते हैं. प्रदीप सिंह ने 2016 में यूपीएससी के लिए पेपर दिया था, लेकिन सफल नहीं हुए. 2017 में भी निराशा हाथ लगी. फिर उन्होंने इनकम टैक्स इंस्पेक्टर की नौकरी कर ली. 2018 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा क्लियर कर ली. उन्हें कस्टम एंड एक्साइज डिपार्टमेंट में तैनाती मिली. वे तब ट्रेनिंग पर थे.
रैंक में सुधार करने के लिए 2019 में फिर से परीक्षा दी थी. हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में एक जगह है शाहबाद मारकंडा. भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल शाहबाद मारकंडा से ही है. रानी रामपाल भी बेहद साधारण परिवार से हैं. वह रेलवे में नौकरी करती है. उसके पिता मजदूरी करके घर चलाते हैं.
किसकी बपौती बड़ी सफलता
मतलब यह है कि अब बड़ी सफलता बड़े शहरों की बपौती नहीं रही. बड़े शहरों में बड़े स्टेडियम और दूसरी आधुनिक सुविधाएं होगी. पर जज्बा तो छोटे शहर वालों में भी कम नहीं है. ये अवरोधों को पार करके सफल हो रहे हैं. इनमें अर्जुन दृष्टि है. ये जो भी करते हैं, उसमें फिर पूरी ताकत झोंक देते हैं. ये सोशल मीडिया पर बिजी नहीं रहते. यह बहुत पुरानी बातें नहीं हैं जब दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू और कुछ दूसरे बड़े शहरों के चंदेक एलिट स्कूलों तथा कॉलेजों के ही स्टुडेंट्स यूपीएससी तथा दूसरी खास परीक्षाओं में टॉप करते थे.
इन्हीं के बच्चे एक्टर, खिलाड़ी वगैरह बनते थे. नए भारत में सफलता का स्वाद सभी राज्यों के छोटे शहरों के बच्चों को लग गया है. दरअसल अब एक तालमेल बैठ रहा है. सफलता छोटे–बड़े शहरों और महानगरों के नौजवानों को मिल रही हैं. पहले यह स्थिति नहीं थी. यह बात आप भी मानेंगे. देखिए कोई देश की लाख बुराई कर ले पर उसे भी इतना तो मानना होगा कि अब दूर-दराज के इलाकों में भी स़ड़कें बन गई हैं.
अब बिजली की कटौती से किसी का जीवन नरक नहीं हो रहा है. इंटरनेट से दुनिया एक मुट्ठी में आ गई है. सूचनाओं और ज्ञान की सुनामी आ चुकी है. दरभंगा, बरेली, ग्वालियर का नौजवान भी विश्वास से लबरेज है. वह कायदे से अपनी बात रखता है. आप उसे खारिज नहीं कर सकते है. वह अपने लिए खुद की सही जगह बना रहा है.
आपको गुरुग्राम, नोएडा, बैंगलुरू, मोहाली जैसे बड़े आईटी केन्द्रों में हजारों मेरठ, देवास, आजमगढ़ वगैरह के आईटी पेशेवर दिन-रात काम करते हुए मिलेंगे. ये सम्मानजनक सैलरी कमा रहे हैं. अगर यहां पर छोटे शहरों से संबंध रखने वाले बच्चों के अभिभावकों की कुर्बानी की बात नहीं होगी तो बात अधूरी ही रहेगी. बेशक, ये अभिभावक अपने सीमित साधनों और संसाधनों के बावजूद अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा और कोचिंग दिलवाने के लिए हर तरह के कष्ट खुशी-खुशी झेलते हैं. क्या कोई इनके योगदान को नजरअंदाज कर सकता है?
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