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Updated: 22 जून, 2015 05:14 PM
हेमंत कौशि‍क
हेमंत कौशि‍क
  @hemantmadhav.kaushik
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सर आइज़ैक न्यूटन को बरसों पहले पेड़ से गिरते सेब ने बता दिया था कि ऊपर से कोई भी चीज़ नीचे ही गिरती है. अब ऐसा ही एक सेब टीम इंडिया के पूर्व टेस्ट कप्तान और वन-डे में अब तक कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भी गिरते हुए दिखाई दे रहा है. लेकिन इस सेब को गिरते देखने वाले धोनी टीम इंडिया के पहले कप्तान नहीं हैं, उनसे पहले भी कई कप्तान ये नज़ारा देख चुके हैं. कपिल देव से लेकर सौरव गांगुली तक एक लंबी फेहरिस्त है.

भारतीय क्रिकेट में अब ये एक रवायत सी बन गई है कि एक नया कप्तान आता है तो पुराने का योगदान शून्य हो जाता है. ज्यादा पीछे ना जाते हुए सौरव गांगुली का ही उदाहरण ले लें. राहुल द्रविड़ कप्तान बने तो सौरव की टीम से ही छुट्टी हो गई, इसकी वजह सौरव का आउट ऑफ फॉर्म होना ही नहीं थी बल्कि उस समय के कोच ग्रेग चैपल से सौरव का टकराव भी था. द्रविड़ के बाद कुंबले टेस्ट में और धोनी वन-डे में कप्तान बने, टी-20 में धोनी पहले से ही कप्तान थे. सौरव की अपेक्षा द्रविड़ थोड़े भाग्यशाली इसलिए रहे क्योंकि टीम में उनकी जगह कम से कम बची रही. कुंबले ने अचानक संन्यास लिया तो टेस्ट की कमान भी धोनी के ही हाथ आ गई.

अब धोनी टेस्ट के स्टार तो कभी नहीं थे लेकिन टेस्ट में उनकी इक्का-दुक्का पारियां ऐसी हैं जो टीम इंडिया के किसी विकेटकीपर बल्लेबाज़ ने लंबे समय से नहीं खेली थीं. धोनी ने अपनी कप्तानी में टीम को नंबर 1 तक पहुंचाया तो हर तरफ़ उनका डंका था, 2011 की वर्ल्डकप जीत ने तो उनके करियर में चार चांद लगा दिए. लेकिन सेब पेड़ पर कब तक रहता. धीरे-धीरे टीम हारने लगी. टेस्ट में तो धोनी हार-हार कर हार गए लेकिन बदकिस्मती ने पीछे ना छोड़ा.

आईपीएल में मैचफिक्सिंग कांड ने रही-सही कसर पूरी कर दी. मामले में भले ही धोनी का नाम सीधे तौर पर नहीं था लेकिन टीम इंडिया के कप्तान का नाम जब कोर्ट में बार-बार उछला तो बीसीसीआई ने भी कप्तान की तरफ टेढ़ी नज़रों से ही देखा. धोनी की प्लेयर मैनेजमेंट कंपनी रिती स्पोर्ट्स भी इस दौरान निशाने पर आ गई जो टीम इंडिया में खेल रहे ज़्यादातर खिलाड़ियों को मैनेज कर रही थी. धोनी पर अपने व्यावसायिक हितों को तरजीह देने के आरोप भी लगे. कप्तान चौतरफा दबाव में आखिरकार बिखर ही गए.

ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज़ के बीच में ही संन्यास ले लिया और वन-डे में खेलते रहने का ऐलान कर दिया. वर्ल्डकप फिर आया और धोनी ने टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया, ऐसा लगा कि वन-डे में धोनी का मैजिक कायम है. लेकिन बांग्लादेश की जमीन पर खेली जा रही वन-डे सीरीज़ ने फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं. अब तक खेले गए दोनों वन-डे में धोनी एक निराश और हताश खिलाड़ी ही दिखाई दिए. पहले मैच में एक बांग्लादेशी खिलाड़ी को धक्का देना हो या फिर एक मैच की हार के बाद ही दूसरे में तीन बड़े बदलाव, धोनी जो भी कर रहे हैं उसकी बस आलोचना ही हो रही है.

बांग्लादेश से सीरीज़ हारने के बाद तो उन्होंने यहां तक कह दिया है कि वो टीम की खुशी के लिए कप्तानी छोड़ने को भी तैयार हैं. संभवत: ऐसा जल्दी ही हो क्योंकि बीसीसीआई को विराट कोहली के रूप में विकल्प मिल गया है लेकिन अगर ऐसा होता है तो ये एक और कप्तान की बदकिस्मती ही कही जाएगी. कई खिलाड़ी कप्तानी के बलबूते ही बिना रन बनाए बरसों खेल जाते हैं लेकिन ऐसा तब होता है जब टीम जीत रही हो. अफसोस, धोनी के साथ अब ऐसा नहीं हो रहा है.

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लेखक

हेमंत कौशि‍क हेमंत कौशि‍क @hemantmadhav.kaushik

लेखक टीवी टुडे में प्रमुख संवाददाता हैं.

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