काश, पीवी सिंधू के लिए भिड़े राज्य बाकी खिलाड़ियों की भी सुध लेते!
रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा करने वाली पीवी सिंधू को अपना बताने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच होड़ लगी है, क्या ये राज्य अन्य खिलाड़ियों की भी सुध लेंगे?
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ओलंपिक में मेडल जीतना भारत के लिए कितना मुश्किल है इसका अंदाजा पदक तालिका देखकर आसानी से हो जाता है. ऐसे में अगर कोई एथलीट भारत को ओलंपिक में पदक दिला दे तो उसका सम्मान तो बनता है. लेकिन तब क्या हो जब उस एथलीट की मेहनत से जीते गए मेडल का श्रेय लेने की होड़ मच जाए और उसे अपना बताने के लिए दो राज्यों के बीच प्रतिद्वंद्वंदिता छिड़ जाए. ऐसा ही कुछ हुआ है ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला पीवी सिंधू के साथ.
रियो ओलंपिक में स्टार खिलाड़ी पीवी सिंधू ने सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. इसके बाद तो पूरे देश ने सिंधू की इस उपलब्धि का जश्न मनाया लेकिन उनके गृह राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच सिंधू को अपना बताने की होड़ मच गई. सिंधू किसकी हैं, ये साबित करने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने इनामों की बौछार से लेकर जमीन आवंटन तक के मामले में एकदूसरे को मात देने की कोशिश की.
पहले तेलंगाना आंध्र प्रदेश का ही हिस्सा था, लेकिन वर्ष 2014 मं उसे अलग राज्य बनाकर देश के 29वें राज्य के तौर पर मान्यता दी गई थी. आइए जानें कैसे एक स्टार खिलाड़ी की मेहनत से कमाई गई सफलता का श्रेय लेने की मची है होड़.
सिंधू किसकी हैं? आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच मची होड़ः
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक रियो में सिंधू के पदक जीतते ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने 20 अगस्त को कैबिनेट की बैठक बुलाई और सिंधू को 3 करोड़ रुपये का इनाम देने की घोषणा की, इतना ही नहीं नायडू ने आंध्र प्रदेश की प्रस्तावित राजधानी अमरावती में 1000 एकड़ का आवासीय प्लॉट देने की भी घोषणा की.
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रियो में पदक जीतने के बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच सिंधू को अपना बताने के लिए मची होड़ |
साथ ही उन्होंने सिंधू को आंध्र प्रदेश सरकार में डेप्युटी कलेक्टर के स्पेशल ग्रेड पोस्ट में ग्रुप-1 का ऑफिसर पोस्ट भी ऑफर किया. मंगलवार को उनकी नियुक्ति का आदेश तैयार रखा गया था लेकिन सिंधू ने इस ऑफर को स्वीकार करने से मना कर दिया.
न सिर्फ सिंधू बल्कि उनके कोच पुलेला गोपीचंद के लिए भी अमरावती में एक वर्ल्ड क्लास बैडमिंटन एकेडमी खोलने के लिए 15 एकड़ जमीन देने का ऐलान आंध्र प्रदेश सरकार ने किया. मुख्यमंत्री नायडू ने सिंधू को आंध्र प्रदेश के मुकुट का नगीना करार दिया.
सिंधू को सम्मानित करने और उन्हें अपना बताने की होड़ में तेलंगाना सरकार भी पीछे नहीं रही और नायडू द्वारा सिंधू को 3 करोड़ रुपये देने के ऐलान के बाद तेलंगाना सरकार ने अपने पहले से घोषित 1 करोड़ की इनामी राशि को बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव की बेटी और निजामाबाद की सांसद के कविता ने कहा था, अगर सिंधू गोल्ड जीतती हैं तो हम उन्हें असली तेलंगाना स्टाइल में सोने का बोनम (मां महानकली को चढ़ाया जाने वाला आभूषण) देंगे. कुल मिलाकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने सिंधू को अपना बताने की कोशिशों में एकदूसरे से जमकर होड़ लगाई. इतना ही नहीं सिंधू को अपना बताने की होड़ सोशल मीडिया पर भा जारी रही.
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किसी की नहीं, भारत की हैं सिंधू:
इन दोनों राज्यों के बीच मची होड़ के बीच सिंधू के कोच और पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ने एकदम सटीक बात कही, 'सिंधू भारत की हैं.' सिंधू की मां सुब्बारावम्मा ने भी गोपीचंद की बात दोहराई. दरअसल इस विवाद का समाधान भी यही है कि सिंधू किसी राज्य या क्षेत्र विशेष की नहीं बल्कि इस देश की हैं.
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उनकी सफलता का श्रेय लेने की होड़ में लगे लोग उन्हें तब अपना-अपना बताने की कोशिशों में जुटे हैं जब उन्होंने अपनी प्रतिभा, लगन और वर्षों की मेहनत से ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने का कारनामा कर दिखाया है. क्या ओलंपिक में पदक न जीतने पर भी ये राज्य सिंधू को अपना बताने के लिए इसी तरह लालयित रहते, जाहिर सी बात है कि नहीं.
इसी सोच का नतीजा है कि भारत को एक ही सिंधू मिल पाती है और भारत को ओलंपिक जैसे मंचों पर पदक जीतने के लिए तरसना पड़ता है. ओलंपिक से महज कुछ महीने पहले सिंधू पर इनामों की बारिश करने और उन्हें अपना बताने के लिए न आंध्र प्रदेश आगे आया और न ही तेलंगाना. तो फिर अपनी मेहनत से जीती गईं सिंधू के पदक का श्रेय लेने के लिए इन राज्यों की कोशिशें निश्चित तौर पर शर्मनाक हैं.
इन राज्यों द्वारा पदक जीतने के बाद सिंधू को दिए जा रहे ढेरों इनामों से इस देश में खेलों की स्थिति का शायद ही कोई भला हो. अच्छा तो ये होता कि ओलंपिक पदक विजेता की जीत का श्रेय लेने के बजाय ये लोग ओलंपिक से पहले देश के लिए मेडल जीतने वाले चैंपियन खिलाड़ी तैयार करने की कोशिशों में करोड़ों रुपये लगाते तो शायद रियो में देश को और भी पदक मिल गए होते.
सिंधू खुद भी इन लोगों से यही उम्मीद करती होंगी कि इनामी राशि की होड़ छोड़कर ये राज्य सच में खेलों और खिलाड़ियों की भलाई के लिए कार्यक्रम चलाएं और पैसे खर्च करें, शायद तभी एक खिलाड़ी का असली सम्मान होगा और देश के लिए पदक जीतने वाले ढेरों और खिलाड़ी पैदा होंगे.
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