क्यों दीपा कर्माकर के प्रोडूनोवा को 'मौत का वॉल्ट' कहते हैं?
रियो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनने वाली दीपा कर्माकर जिस प्रोडूनोवा वॉल्ट की वजह से पूरी दुनिया में चर्चित हुई हैं, उसे मौत का वाल्ट कहा जाता है, जानिए क्यों?
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दीपा कर्माकर ने जब रियो ओलंपिक के जिमनास्टिक के फाइनल में छलांग लगाई और सफलतापूर्वक जमीन पर लैडिंग की तो उन्होंने न सिर्फ करोड़ों भारतीयों बल्कि पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. न सिर्फ इसलिए क्योंकि वह ओलंपिक में जिमनास्टिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने जिस 'प्रोडूनोवा वॉल्ट' को सफलतापूर्वक किया था जिसे उनसे पहले दुनिया में सिर्फ चार और महिलाएं ही कर सकी हैं.
प्रोडूनवा वॉल्ट कितना मुश्किल होता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे 'मौत का वॉल्ट' कहा जाता है. दुनिया की बड़ी से बड़ी जिमनास्ट भी प्रोडूनोवा वॉल्ट को करने से कतराती हैं. इसमें जान जाने का खतरा रहता है और जरा सी चूक पदक छोड़िए जिंदगी से भी महरूम कर सकती हैं.
लेकिन दीपा कर्माकर का कहना है कि उन्हें प्रोडूनोवा वॉल्ट की मुश्किल चुनौती से निपटने में कोई डर नहीं लगता है. न ही वह इस खतरनाक वॉल्ट को करने से कभी डरी हैं. दीपा ने प्रोडूनोवा वॉल्ट को करके ही दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर प्रोडूनोवा वॉल्ट क्या होता है और क्यों होता है खतरनाक.
प्रोडूनोवा वॉल्ट करने वाली दीपा कर्माकर दुनिया की पांचवीं एथलीट हैं |
क्या है प्रोडूनोवा और क्यों होता है खतरनाकः
इस वाल्ट का नाम रूस की महान एथलीट येलेना प्रोडूनोवा के नाम पर पड़ा है. येलेना के बाद से दीपा कर्माकर तक अब तक सिर्फ पांच एथलीट ही सफलतापूर्वक प्रोडूनोवा वाल्ट को कर सकी हैं. वर्तमान में प्रोडूनोवा का 7.0 D स्कोर है.
प्रोडूनोवा आर्टिस्टिक जिमनास्टिक वॉल्ट है जिसमें आगे के हाथ की कलाबाजी से वाल्टिंग हार्स पर लैंडिग के बाद सामने की तरफ दो बार और कलाबाजियां (फ्रंट समरसॉल्ट) करके जमीन पर लैंडिग करनी होती है. यही चीज प्रोडूनोवा वॉल्ट को खतरनाक बनाती है. इसमें कलाबाजी के बाद लैंडिंग के दौरान इस बात का खतरा रहता है कि अगर आपके शरीर का भार गर्दन पर गिरा तो तुरंत ही जीवन का अंत समझिए.
दीपा इस खतरे के बारे में अच्छी तरह जानती हैं और कहती हैं कि अगर समरसॉल्ट (हवा में कलाबाजियों के बाद) आपकी लैंडिंग पैरों की जगह गर्दन पर हुई तो मरना तय हैं, अगर आप सिर के बल गिरे तो भी मौत हो सकती है. वह कहती हैं कि ये खतरनाक है, मुझे पता है. लेकिन मुझे पता था कि कुछ जीतने के लिए मुझे खतरा उठाना ही होगा.
दीपा कर्माकर तमाम खतरोंं के बावजूद प्रोडूनोवा वॉल्ट करना जारी रखेंगी |
दीपा को इस वॉल्ट की ट्रेनिंग 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स से तीन पहले उनके दो कोचों ने दिलानी शुरू की थी. दीपा का कहना है कि जब पुरुष जिम्ननास्ट ये कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. इस वॉल्ट के खतरे के बारे में वह कहती हैं कि जब आप हवा में दो बार कलाबाजियां खाते हैं तो आपके पैरों पर आने वाला आपके शरीर का वजन दो गुना हो जाता है. जैसे वह 45 किलो की हैं लेकिन प्रोडूनोवा वॉल्ट करने के बाद लैंडिंग के समय उनके पैरों पर करीब 80-90 किलो का वजन होता है.
ऐसे में जरा सोचिए अगर यह वजन पैरों के बजाय उनकी गर्दन पर गिरे तो क्या होगा, ये कितना भयावह है सोचकर ही रूह कांप जाती है. शायद यही वजह है कि प्रोडूनोवा वाल्ट करने वाली दीपा पहली भारतीय महिला हैं. लेकिन इसी वॉल्ट की बदौलत उन्होंने दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है और पहले ओलंपिक में और फिर उसके फाइनल में क्वॉलिफाई करने में इसी प्रोडूनोवा ने उनकी मदद की. यही वजह है कि वह तमाम खतरों के बावजूद भविष्य में भी प्रोडूनोवा वॉल्ट को करना जारी रखेंगी.
दीपा प्रोडूनोवा की बदौलत कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं. इसके बाद इंचन एशियाई खेलों में उन्होंने चौथा और वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने पांचवां स्थान हासिल किया. रियो ओलंपिक में भी फाइनल में भी उन्होंने फाइनल में चौथे स्थान पर रहकर चारों तरफ अपने नाम का डंका बजा दिया है. दीपा को ये सबकुछ मौत का वाल्ट कहे जाने वाले प्रोडूनोवा से ही मिला है.
ऐसा भी नहीं है कि प्रोडूनोवा करना असंभव ही है. पहले येलेना ने और अब दीपा कर्माकर ने ये दिखा दिया है कि इंसानी हौंसलों से बढ़कर कुछ भी नहीं है, प्रोडूनोवा वॉल्ट भी नहीं!
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