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Updated: 26 सितम्बर, 2015 07:30 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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जगमोहन डालमिया के निधन से न सिर्फ बीसीसीआई बल्कि बंगाल क्रिकेट में भी पिछले हफ्ते कुर्सी के लिए काफी माथापच्ची देखने को मिली. जगमोहन डालमिया के निधन से खाली हुई क्रिकेट असोसिएशन ऑफ बंगाल (सीएबी) के अध्यक्ष पद के लिए टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की नियुक्ति को मिले ममता के समर्थन ने सबका ध्यान खींचा. एक महान क्रिकेटर के तौर पर सौरव गांगुली की ख्याति और क्रिकेट की उनकी समझ को देखते हुए सीएबी के अध्यक्ष पद के लिए उनसे बेहतर शायद ही कोई हो लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी ने आगे बढ़कर सौरव को अध्यक्ष बनाने में भूमिका निभाई उससे हैरान होना बनता है, तो क्या ममता ने सौरव का समर्थन सिर्फ बंगाल क्रिकेट की भलाई के लिए किया था या इसके राजनीतिक मायने भी हैं, आइए जानें.

सौरव का समर्थन सोची-समझी रणनीतिः ममता बनर्जी की राजनीतिक समझ पर शायद ही किसी को शक हो. हाल ही में नेताजी से संबंधित 64 फाइलों को सार्वजनिक करने का उनका मास्टरस्ट्रोक तो इसका उदाहरण भर है. सौरव गांगुली के मामले में भी भले ही ममता ने कहा हो कि वह चाहती हैं कि सीएबी के अध्यक्ष पद पर कोई ऐसा व्यक्ति बैठे जोकि जगमोहन डालमिया की विरासत को आगे बढ़ा सके और सौरव से बेहतर इस पद के लिए कौन हो सकता है लेकिन यह सिर्फ डालमिया की विरासत को आगे बढ़ाने या बंगाल की क्रिकेट से जुड़ा सवाल नहीं है, बल्कि इसके पीछे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की भी अहम भूमिका है. दरअसल सौरव गांगुली की बंगाल में जबर्दस्त लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है और ऐसे में इस अहम पद के लिए सौरव का समर्थन करके ममता ने एक और बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. इससे उन्हें सौरव के समर्थकों का दिल जीतने में मदद मिलेगी.

बंगाली गौरव के नाम पर मिलेगा वोट! ममता बनर्जी ने सीएबी अध्यक्ष पद के लिए सौरभ गांगुली के नाम का समर्थन करके बंगाली गौरव के नाम पर वोटर्स को अपने पक्ष में करने की उसी तरह की कोशिश की है जैसे उन्होंने नेताजी की फाइलें सार्वजनिक करके किया था. इस समय बंगाल में पढ़ा-लिखा मध्यम वर्गीय बंगाली समाज ही एक ऐसा तबका है जोकि ममता और उनकी पार्टी के कामों से नाखुश है, ऐसे में पहले नेताजी और अब बंगाल में हर तबके के बीच जबर्दस्त लोकप्रिय सौरव गांगुली के समर्थन से ममता ने इस वर्ग को भी अपने पाले में करने की कोशिशि की है. इन कदमों से ममता ने खुद को बंगाली गौरव के संरक्षण का सबसे बड़ा पैरोकार भी साबित करने कोशिश की है.

कभी लेफ्ट के करीबी सौरव अब ममता के साथः दरअसल कभी सौरव और ममता के बीच काफी दूरी थी क्योंकि कुछ सालों पहले तक सौरव को लेफ्ट फ्रंट का करीबी माना जाता था. कुछ समय पहले ममता सरकार में शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने लेफ्ट फ्रंट का करीबी होने के लिए सौरव की कड़ी आलोचना की थी. दो साल पहले सौरव-ममता के रिश्तों की तल्खी तब घटनी शुरू हुई जब ममता ने राजरहाट में सौरव के स्कूल के लिए 2 एकड़ जमीन आवंटित की. हालांकि उससे पहले लेफ्ट फ्रंट सरकार ने भी सौरव को साल्टलेक में स्कूल के लिए 2 एकड़ जमीन आंवटित की थी लेकिन स्थानीय सीपीएम नेताओं द्वारा इस मामले में कोर्ट में जाने के बाद सौरव को यह जमीन गंवानी पड़ी थी.  

बढ़ता राजनीतिक दखल सीएबी के लिए शुभ नहींः सौरव की नियुक्ति में किसी भी तरह के राजनीतिक दखल से ममता के इंकार के बावजूद लोगों का कहना है कि इससे आने वाले समय में सीएबी में राजनीतिक दखल बढ़ सकता है. आखिर जिस तरह ममता ने सीएबी के जॉइंट सेक्रेटरी सुबीर गांगुली और ट्रेजरर विस्वरूप डे के साथ मीटिंग कर सौरव के नाम पर मुहर लगवाई, वह भविष्य की तस्वीर दिखाता है. इनमें से विस्वरूप डे का समर्थन हासिल करना खासतौर पर जरूरी था क्योंकि वह सीएबी अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे थे और लगभग दो दशक से भी ज्यादा समय से सीएबी से जुड़े होने के कारण उनके पास सबसे ज्यादा सदस्यों का समर्थन है.

सौरव की साफ-सुथरी छवि और क्रिकेट की उनकी समझ को देखते हुए सीएबी अध्यक्ष पद के लिए उनसे बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता लेकिन अच्छा हो अगर सीएबी को क्रिकेट की भलाई के लिए ही काम करने दिया जाए और इसका इस्तेमाल राजनीति के लिए न हो. 

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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