सॉफ्ट सिग्नल का नियम अंपायर्स को 'धृतराष्ट्र' क्यों बना देता है?
सॉफ्ट सिग्नल को लेकर उठ रहे तमाम सवालों का सीधा और सरल जवाब ये हो सकता है कि सॉफ्ट सिग्नल को मैदानी अंपायर के 'निर्णय' (Decision) नहीं, बल्कि 'राय' (Opinion) के तौर पर देखा जाना चाहिए. थर्ड अंपायर को मैदानी अंपायर की उस राय पर अपने स्तर से ठोस नतीजे तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए.
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भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए चौथे टी20 मैच में टीम इंडिया ने जीत हासिल कर 5 मैचों की सीरीज में 2-2 से बराबरी कर ली है. मैच भारत के पक्ष में रहा, लेकिन, इस दौरान थर्ड अंपायर के 'दो' फैसले टीम इंडिया के खिलाफ रहे. इन फैसलों पर तकरीबन हर भारतीय क्रिकेटप्रेमी ने अपना असंतोष जाहिर किया. लोगों ने थर्ड अंपायर की तुलना 'धृतराष्ट्र' तक से कर डाली. टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने इन फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अंपायर के पास 'मुझे नहीं पता' का फैसला सुनाने का ऑप्शन क्यों नहीं होता है. दरअसल, 'सॉफ्ट सिग्नल' की वजह से थर्ड अंपायर ने दो खराब फैसले लिए थे और अब इसी पर विवाद खड़ा हो रहा है. सॉफ्ट सिग्नल और इस विवाद पर जाने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर सॉफ्ट सिग्नल होता क्या है?
'सॉफ्ट सिग्नल' नियम क्या है?
2014 में आईसीसी (ICC) ने सॉफ्ट सिग्नल नियम को लागू किया था. सॉफ्ट सिग्नल पर आईसीसी के नियम के अनुसार, अगर बॉलर्स एंड पर खड़ा अंपायर किसी फैसले को लेकर असमंजस की स्थिति में होता है, तो वह थर्ड अंपायर की ओर रुख कर सकते हैं. लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें आउट या नॉट आउट में से एक सॉफ्ट सिग्नल देना होता है. सॉफ्ट सिग्नल नियम के मुताबिक, अगर थर्ड अंपायर किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाते हैं, तो वह ऑन फील्ड अंपायर का लिया गया सॉफ्ट सिग्नल का फैसला ही बरकरार रहता है. डीआरएस (DRS) में भी ऑन फील्ड कॉल का ऐसा ही एक नियम लागू होता है.
आईसीसी को सॉफ्ट सिग्नल में बदलाव करना चाहिए और 'मुझे नही पता' या 'मेरी नजर से दूर था' वाला विकल्प जोड़ना चाहिए.
कहां से शुरु हुआ विवाद?
विवाद डेब्यू कर रहे सूर्यकुमार यादव के विकेट से शुरू हुआ था. सूर्यकुमार यादव के शॉट को डेविड मलान ने बाउंड्री पर कैच किया. रीप्ले में साफ लग रहा था कि गेंद ने जमीन को छुआ है. थर्ड अंपायर ने इसे कई एंगल से देखा और किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके और सॉफ्ट सिग्नल पर बने रहने का फैसला दिया. भारतीय इनिंग्स के आखिरी ओवर में बाउंड्री के पास आदिल राशिद ने वॉशिंगटन सुंदर का कैच लिया. इस दौरान कैमरे में दिखाई दे रहा था कि उनका पैर बाउंड्री से छू गया था. यहां भी थर्ड अंपायर ने सॉफ्ट सिग्नल को ही बरकरार रखा.
अंपायर को 'सुपरमैन' मत समझिए
पिच के पास खड़ा एक अंपायर फाइन लेग या थर्ड मैन या बाउंड्री लाइन पर ली गई कैच या बाउंड्री (Six) पर अपना फैसला सॉफ्ट सिग्नल से कैसे दे सकते हैं. अंपायर की भी आम इंसानों की तरह ही दो ही आंखें होती हैं. खुद से इतनी दूरी पर वह 'बम कैच' या 'क्लियर कैच' का निर्णय कैसे दे सकता है. अंपायरों के पास 'चील की आंख' या सुपरमैन वाली नजर तो है नहीं, जो एक छोटी से छोटी चीज भी आसानी से देख लें. आईसीसी को सॉफ्ट सिग्नल में बदलाव करना चाहिए और 'मुझे नही पता' या 'मेरी नजर से दूर था' वाला विकल्प जोड़ना चाहिए.
सॉफ्ट सिग्नल को फील्ड अंपायर की 'राय' मानें 'निर्णय' नहीं
सॉफ्ट सिग्नल को लेकर उठ रहे तमाम सवालों का सीधा और सरल जवाब ये हो सकता है कि सॉफ्ट सिग्नल को मैदानी अंपायर के 'निर्णय' (Decision) नहीं, बल्कि 'राय' (Opinion) के तौर पर देखा जाना चाहिए. थर्ड अंपायर को मैदानी अंपायर की उस राय पर अपने स्तर से ठोस नतीजे तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए. अगर थर्ड अंपायर को तमाम कोशिशों के बावजूद भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाता है, तो बल्लेबाज को 'बेनिफिट ऑफ डाउट' मिलना चाहिए. आईसीसी को इस मामले में अपने नियमों में थोड़ा बदलाव करना चाहिए.
सॉफ्ट सिग्नल को मैदानी अंपायर का अंतिम निर्णय नहीं घोषित करना चाहिए. ऑन फील्ड अंपायर्स निर्णय लेने में मदद के लिए ही थर्ड अंपायर के पास जाते हैं. मेरा मानना है कि ऐसी परिस्थितियों में जब थर्ड अंपायर खुद ही असमंजस में हो, तो उसे 'बेनिफिट ऑफ डाउट' का अपना फैसला देना चाहिए. ना कि, फील्ड अंपायर के निर्णय के साथ जाना चाहिए.
I thought the ball touched the ground & said so on air. This tweet was to explain why a soft signal was introduced in the first place & why technology is not yet ready to give conclusive answers in most cases. This time I felt there was enough evidence but most times there isn't https://t.co/kOR3DXzvYW
— Harsha Bhogle (@bhogleharsha) March 18, 2021
अंपायर्स के बीच की बातचीत को खत्म न करें, तकनीक को दें बढ़ावा
ऐसे समय में जब तकनीक की वजह से क्रिकेट एक बेहतरीन खेल होता जा रहा है. थर्ड अंपायर के पास बातचीत के लिए जाने से पहले सॉफ्ट सिग्नल देने का नियम थोड़ा अटपटा लगता है. ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए अंपायर्स के बीच बातचीत को इस तरह से दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए. आईसीसी को मैदान में तकनीक को और प्रभावी तरीके से अपनाना चाहिए. आईसीसी को मैचों के दौरान थ्रीडी कैमरों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वह इन बची-खुची कमियों को भी दूर कर सके.
Third umpire while making that decision. #INDvENGt20 #suryakumar pic.twitter.com/JJp2NldcI8
— Virender Sehwag (@virendersehwag) March 18, 2021
खराब फैसलों पर अंपायर ही दोषी
किसी भी मैच में एक भी विकेट बहुत कीमती होता है. सॉफ्ट सिग्नल की वजह से किसी भी मैच का रुख आसानी से बदल सकता है. आईसीसी को अपने नियम में बदलाव के साथ ही तकनीक पर और ज्यादा जोर देना चाहिए. हालांकि, भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए चौथे टी20 मैच में खराब और गलत फैसलों का दोष थर्ड अंपायर के सिर ही जाएगा. रीप्ले में साफ तौर से दिखाई दे रहा था कि गेंद जमीन से टकरा रही थी. ये कहना गलत नहीं होगा कि सॉफ्ट सिग्नल के नियम ने अंपायर्स को 'धृतराष्ट्र' बना दिया है.
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