New

होम -> स्पोर्ट्स

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 12 अक्टूबर, 2015 05:56 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
  • Total Shares

रांची और झारखंड का नाम पूरी दुनिया में चर्चित करने का श्रेय काफी हद तक महेंद्र सिंह धोनी को भी जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि टीम इंडिया के लिए डेब्यू करने से कुछ समय पहले तक धोनी बिहार के लिए क्रिकेट खेलते थे. जी हां, 2004 में झारखंड क्रिकेट असोसिएशन के बनने और बिहार क्रिकेट असोसिएशन की बीसीसीआई सदस्यता खत्म होने तक धोनी बिहार की रणजी टीम से खेलते थे.

झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद न सिर्फ धोनी का बिहार क्रिकेट से नाता टूटा बल्कि एक तरह से क्रिकेट का रिश्ता ही इस राज्य से टूट गया. इसके बाद से पिछले 11 साल में बिहार का कोई भी क्रिकेटर टीम इंडिया में जगह नहीं बना पाया है. बिहार के क्रिकेट मैदानों में पसीना बहा रहे हजारों युवाओं के दूसरा धोनी बनने के सपने पर क्रिकेट से जुड़ी यहां की घटिया राजनीति पानी फेर रही है. ऐसे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि अगर बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी जीती तो उसका असर राज्य में क्रिकेट पर भी पड़ेगा. मौजूदा हालात में बदलाव न सिर्फ बिहार क्रिकेट के लिए अच्छे दिन ला सकता है युवा क्रिकेटरों के लिए नई संभावनाएं पैदा कर सकता है. 

नेताओं ने डुबाई बिहारी क्रिकेट की लुटियाः

बिहार क्रिकेट की दुर्दशा के लिए लालू प्रसाद यादव जैसे नेता जिम्मेदार हैं. इन नेताओं ने बिहार क्रिकेट असोसिएशन (बीसीए) पर कब्जा तो जमा लिया लेकिन ये इसे बीसीसीआई का सदस्य तक नहीं बनवा पाए. नतीजा ये हुआ कि राज्य के पास अपनी एक रणजी टीम तक नहीं है. जाहिर सी बात है कि यहां के युवा क्रिकेटरों के पास टीम इंडिया में पहुंचने के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड या किसी और राज्य की क्रिकेट टीम से खेलने के अलावा और कोई चारा नहीं है. वर्ष 2000 में जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार को बांटकर तीन नए राज्यों उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड का गठन किया गया तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश क्रिकेट असोसिएशंस तो बीसीसीआई में अपनी जगह बचा ले गईं लेकिन बिहार क्रिकेट असोसिएशन को यह अधिकार नवगठित झारखंड क्रिकेट असोसिएशन के हाथों गंवाना पड़ा.

इसके बाद जहां झारखंड क्रिकेट असोसिएशन आगे बढ़ा वहीं केंद्र में प्रभावसाली मंत्री होने के बावजूद लालू यादव की अध्यक्षता में बिहार क्रिकेट असोसिएशन डूबता चला गया. इतना ही नहीं बिहार के बाद पूर्व क्रिकेटर और बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद ने 2010 में राज्य में एक सामानांतर क्रिकेट संचालन संस्था, असोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट (एबीसी) बना डाला. बाद में बीसीए से अलग होकर क्रिकेट असोसिएशन ऑफ बिहार (सीएबी) का भी गठन किया गया. फिलहाल इनमें से सिर्फ बिहार क्रिकेट असोसिएशन (बीसीए) ही बीसीसीआई का असोसिएट सदस्य है. फिर भी बिहार क्रिकेट असोसिएशन ने राज्य में क्रिकेट की भलाई या युवा क्रिकेटरों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया. लालू जैसे नेताओं ने अपने फ्लॉप क्रिकेटर बेटे तेजस्वी यादव को टीम इंडिया में एंट्री दिलाने में जितनी जुगत भिड़ाई और ऊर्जा खर्च की अगर उसकी आधी भी बिहार में क्रिकेट की भलाई के लिए की होती तो बिहार क्रिकेट इतनी बदहाल स्थिति में न होता.

बीजेपी जीती तो बदल जाएगा बिहार क्रिकेट का नक्शाः राज्य में बीजेपी की जीत क्रिकेट के अच्छे दिन ला सकती है. इसकी वजह केंद्र में भी बीजेपी की सरकार होना और बीसीसीआई में बीजेपी की मजबूत पकड़ है. इससे बिहार क्रिकेट की बीसीसीआई में वापसी की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी और राज्य की रणजी टीम की बहाली भी हो पाएगी. इसका सबसे ज्यादा फायदा राज्य की उभरती क्रिकेट प्रतिभाओं को मिलेगा जिन्हें अब तक सिर्फ इस वजह से बिहार का प्रतिनिधित्व करने का अवसर नहीं मिल पाता रहा है क्योंकि राज्य की अपनी क्रिकेट टीम ही नहीं है.

क्या बीजेपी उम्मीदें पूरी कर पाएगीः

ये बड़ा सवाल है? कई लोगों का मानना है कि अगर बीजेपी जीत भी गई तब भी बिहार में क्रिकेट की स्थिति में शायद की कोई सुधार हो. कीर्ति आजाद का कहना है कि 2004 में भी लालू केंद्र में ताकतवर मंत्री थे और शरद पवार बीसीसीआई के अध्यक्ष थे लेकिन तब भी कुछ नहीं हुआ. कीर्ति आजाद की मानें तो कोई बिहार क्रिकेट को बीसीसीआई में देखना ही नहीं चाहता. भले ही राज्य की एक बड़ी आबादी इस खेल के लिए दीवानी है लेकिन नेताओं को इस बात की कोई परवाह ही नहीं है. एन. श्रीनिवासन के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोर्ट जाने वाले बिहार क्रिकेट असोसिएशन के सचिव आदित्य वर्मा को सिर्फ लोढ़ा कमेटी से उम्मीदें हैं. दिसंबर में लोढ़ा कमेटी बीसीसीआई की कार्यप्रणाली को लेकर जो सिफारिशें भेजने जा रही है उससे बिहार क्रिकेट के लिए नई उम्मीद जग सकती है.

बिहार के लगभग 6.50 करोड़ वोटर्स में से 31 फीसदी युवा जरूर चाहेंगे कि राज्य का क्रिकेट गौरव वापस लौटे और एक बार फिर से यह राज्य धोनी जैसा क्रिकेटर देश को दे सके. कौन जाने एक और युवा धोनी बिहार के मैदानों पर पसीना बहा रहा हो और बिहार क्रिकेट को मौका मिलते ही दुनिया पर छा जाए!

#बिहार क्रिकेट, #धोनी, #भाजपा, बिहार क्रिकेट, धोनी, बीजेपी

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय