रंगीन होने से बचेगा टेस्ट क्रिकेट या मर जाएगी इसकी आत्मा
27 नवंबर को एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच क्रिकेट इतिहास का पहला डे-नाइट टेस्ट मैच खेला जाएगा, टेस्ट क्रिकेट को 138 वर्ष बाद यह आधुनिक बनाने की सबसे बड़ी कोशिश है. क्या कामयाब होगी यह कोशिशि?
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अपने जन्म के 138 वर्ष बाद टेस्ट क्रिकेट पारंपरिकता का दामन थामे आधुनिकता की ओर बढ़ चला है. जी हां, 27 नवंबर को एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच क्रिकेट इतिहास का पहला डे-नाइट टेस्ट मैच खेला जाएगा. इतना ही नहीं क्रिकेट में पहली बार गुलाबी गेंद का प्रयोग किया जाएगा. इसे क्रिकेट इतिहास के सबसे बड़े बदलावों के तौर देखा जा रहा है. दरअसल यह कोशिश वनडे और टी20 जैसे छोटे फॉर्मेट्स की बढ़ती लोकप्रियता के कारण टेस्ट क्रिकेट पर छाए संकट के बादलों को देखते हुए किया जा रहा है. क्रिकेट के सबसे पारंपरिक रूप रहे टेस्ट क्रिकेट को 138 वर्ष बाद यह आधुनिक बनाने की सबसे बड़ी कोशिश है. आइए जानें क्या यह बदलाव टेस्ट क्रिकेट को बचा पाएगा.
पहले डे नाइट टेस्ट मैच से टेस्ट को बदलने की शुरुआतः
27 नवंबर को जब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की टीमें पहला डे-नाइट टेस्ट मैच खेलने के लिए एडिलेड में उतरेंगी तो एक नया इतिहास लिखा जाएगा. हमेशा दिन में खेला जाने वाला टेस्ट क्रिकेट पहली बार दूधिया रोशनी में खेला जाएगा और इसके साथ ही वह टी20 और वनडे को टक्कर देने की कतार में खड़ा हो जाएगा. इस टेस्ट मैच में पहली बार गुलाबी गेंद का प्रयोग किया जाएगा, जिसे ऑस्ट्रेलिया की कूकाबुरा कंपनी ने तैयार किया है, जो पहले भी छोटे फॉर्मेट्स के लिए सफेद गेंद बनाती रही है. गुलाबी गेंद का ऑस्ट्रेलिया की घरेलू क्रिकेट में कई बार प्रयोग करके परीक्षण किया जा चुका है. इस टेस्ट से पहले इस गेंद का परीक्षण करने के लिए न्यू साउथ वेल्स और साउथ ऑस्ट्रेलिया के बीच एक मैच खेला गया था. साथ ही टेस्ट मैच से पहले न्यूजीलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया इलेवन के बीच दो दिवसीय अभ्यास मैच से इस गेंद को परखने की कोशिश की गई. यह टेस्ट मैच जिस एडिलेड में खेला जाएगा, वहां पहला टेस्ट मैच 1884 में खेला गया था और अब तक वहां 146 टेस्ट मैच खेले जा चुके हैं. 27 नवंबर को ही पिछले साल सिडनी में बाउंसर लगने से असमय दुनिया को अलविदा कहने वाले ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फिल ह्यूज की पहली बरसी है. टेस्ट मैच शुरू होने से पहले ह्यूज को एडिलेड में श्रद्धांजलि दी जाएगी.
टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए आधुनिक बनाने की कोशिशः
यह कोशिश टेस्ट क्रिकेट की घटती हुई लोकप्रियता को देखते हुई की गई है. इस प्रयोग के समर्थकों का तर्क है कि टेस्ट क्रिकेट दिन में खेला जाता है और पांच दिन तक चलने के कारण लोगों के पास अपना काम छोड़कर इसे देखने आने का विकल्प नहीं रह जाता. लेकिन इसका आयोजन शाम को होने से लोग काम के बाद इसे देखने आ पाएंगे और दर्शकों की संख्या में इजाफा होगा. साथ ही टी20 और वनडे की चमक-दमक के आदी हो चुके टीवी दर्शकों के लिए भी डे-नाइट टेस्ट कहीं ज्यादा बेहतर अनुभव होगा. इन बदलावों की बदौलत टेस्ट क्रिकेट आने वाले वर्षों में टी20 और वनडे के मुकाबले टिका रह पाएगा. इनका यह मानना भी है कि टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक रूप को बरकरार रखकर अगर इसकी भलाई के लिए इसमें थोड़ा बदलाव किया जाए तो इसमें गलत क्या है?
कुछ लोग बदलाव के पक्ष में नहीं:
हाल ही में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लेने वाले ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज मिशेल जॉनसन भी टेस्ट क्रिकेट को डे नाइट बनाने के पक्ष में नहीं थे. कहा तो ये भी जाता है कि इसीलिए जॉनसन ने पर्थ टेस्ट के बाद ही संन्यास की घोषणा कर दी ताकि उन्हें कुछ ही दिन बाद एडिलेड में होने वाले ऐतिहासिक डे-नाइट टेस्ट का हिस्सा न बनना पड़े. यही हाल इस टेस्ट की मेहमान टीम न्यूजीलैंड का भी है, जो खुद इस बदलाव के ज्यादा समर्थन में नहीं है. दरअसल कई क्रिकेट जानकार इस बदलाव से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका मानना है कि टेस्ट क्रिकेट में यह बदलाव उसकी मूल पहचान छीन लेगा और क्रिकेट की परंपरा को संजोने के लिए पहचाना जाने वाला क्रिकेट का यह प्रारूप कहीं का नहीं रह जाएगा. यानी कि न तो पारंपरिक और न ही आधुनिक. इन लोगों का कहना है कि अगर टी20 और वनडे के होने के बावजूद आज भी ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच देखने के लिए 80 हजार से ज्यादा दर्शक जुटते हैं तो आखिर टेस्ट क्रिकेट मर कहां रहा हैं? यानी दर्शक आज भी टेस्ट क्रिकेट देखना चाहते हैं, बशर्ते वह अच्छी टीमों के बीच हो और उन्हें बेहतरीन खेल देखने को मिले. इसलिए बेहतर होता अगर आईसीसी इन बदलावों की जगह टेस्ट के पारंपरिक स्वरूप को ही मजबूत बनाने की कोशिश करता.
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