क्या एथलीट शांति सौंदाराजन को 10 साल बाद मिल पाएगा न्याय?
2006 में दोहा एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने के बाद शांति सौंदाराजन पर बैन लगा दिया गया था, वजह थी जेंडर टेस्ट में फेल होना, क्या अब 10 साल बाद शांति को न्याय मिल पाएगा?
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पहले इस एथलीट की कहानी-
'तमिलनाडु के छोटे से गांव में जन्मी. दौड़ने का शौक दीवानगी में बदला. और मेहनत से सर्वोच्च मुकाम पाया और देश को सम्मान दिलाया. फिर एक दिन अचानक निर्वस्त्र कर दी गईं. जेंडर टेस्ट हुआ. और फिर यह नेशनल टेलिविजन पर चर्चा का विषय बन गया. अपने को दुनिया के सामने नग्न महसूस किया. शर्मिंदा हुई. इतने नैराश्य में डूब गईं कि जान देेने की सोचने लगीं. उन्हें बताया गया कि वे एंड्रोजन इंसेंसिटिव सिंड्रोम की शिकार हैं. और इसीलिए वे जेंडर टेस्ट में फेल हुई हैं. अब वे मुफलिसी के दौर में पहुंच गई है. घर में बिजली, पानी जैसी सुविधा का अभाव. कभी कभी खाना भी नहीं होता.'
ये कहानी है शांति सौंदाराजन की. अपने करियर में देश के लिए 12 अंतर्राष्ट्रीय खिताब और अपने राज्य तमिलनाडु के लिए 64 राष्ट्रीय मेडल जीते. इतना ही नहीं 2006 के एशियन गेम्स में एथलेटिक्स में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता. लेकिन यह मेडल जीतने के बाद सम्मान मिलने के बजाय हमेशा के लिए उनका करियर खत्म हो गया. कामयाबी हासिल करने के बावजूद गुमनामी और असफलता के अंधेरे में धकेल दिया गया. 2006 में जेंडर टेस्ट में फेल होने के बाद उन पर बैन लगा दिया गया.
जेंडर टेस्ट के विवादों में घिरने वालीं शांति पहली एथलीट नहीं थी. रियो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करने वाली भारत की दुत्ती चंद और दक्षिण अफ्रीकी एथलीट कास्टर सेमेन्या को भी इस टेस्ट में फेल होने के विवादों से गुजरना पड़ा, लेकिन इनका खेलना बरकरार रहा. शांति की किस्मत इन दोनों की तरह अच्छी नहीं थी.
सेमेन्या के साथ उनका देश मजबूती से खड़ा रहा जबकि दुत्ती ने जेंडर टेस्ट में फेल होने के लिए खुद पर लगे बैन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय खेल पंचाट का दरवाजा खटखटाया और नतीजा न सिर्फ दुत्ती के लिए बल्कि उनकी तरह की कई अन्य एथलीट्स के लिए भी राहत लेकर आया और अगले दो वर्षों तक महिला एथलीट्स के जेंडर टेस्ट पर रोक लगा दी गई.
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शांति सौंदाराजन पर जेंडर टेस्ट में फेल होने के बाद बैन लगा दिया गया था |
अब क्यों चर्चा में है शांति सौंदाराजन का नाम?
10 साल बाद शांति सौंदाराजन का नाम फिर से चर्चा में है. उन्हें न्याय दिलाने के लिए फेसबुक कम्युनिटी थप्पड़ ने हाल ही में एक वीडियो रिलीज किया है. इस वीडियो का मकसद शांति के लिए समर्थन जुटाना है. इस वीडियो के प्रॉड्यूसर और थप्पड़ के को-फाउंडर संदेश बी सुवर्ना कहते हैं, 'शांति की कहानी अभी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सब ओलंपिक में सच्ची खेल भावना का समर्थन कर रहे हैं, और अपने खिलाड़ियों के साथ भेदभाव कर रहे हैं. उनके केस के बारे में चर्चा का यही सही समय है.' उन्होंने कहा, 'अगर शांति को न्याय नहीं मिलता है तो पीएम मोदी का #RunWithRio कैंपेन अधूरा रह जाएगा.'
हाल ही में शांति के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए चलाया गया change.org का अभियान को बहुत ही खराब प्रतिक्रिया मिली और उसे इस अभियान के लिए जरूरी न्यूनतम 1500 हस्ताक्षर भी नहीं मिल सके.
थप्पड़ द्वारा शांति के ऊपर बनाए गया वीडियो उस ऑनलाइन कैंपेन का हिस्सा है जिसके तहत शांति के नाम को एक बार फिर से आधिकारिक रिकॉर्ड में शामिल करना और उन्हें अपने जीवन यापन के लिए एक स्थाई नौकरी दिलाने की मांग शामिल है. अब तक थप्पड़ के इस अभियान को 2400 हस्ताक्षर मिल चुके हैं.
थप्पड़ द्वारा शांति को न्याय दिलाने के लिए शुरू किया गया अभियान
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क्या हुआ था शांति सौंदाराजन के साथः
2006 के एशियन गेम्स में एथलेटिक्स में 800 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीतने के बाद शांति सौंदाराजन का जेंडर वेरिफिकेशन टेस्ट हुआ और इस टेस्ट में फेल होने के बाद उनसे न सिर्फ पदक छीना गया बल्कि दोबारा खेलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. दरअसल जेंडर वेरिफिकेशन टेस्ट ये जानने के लिए किया जाता है कि कई पुरुष खिलाड़ी महिलाओं के खेल में हिस्सा तो नहीं ले रहा या किसी महिला खिलाड़ी में हॉर्मोन्स के ज्यादा स्राव से उसे बाकी की प्रतिभागियों पर बढ़त तो नहीं हासिल हो रही है.
अगर किसी महिला प्रतिभागी के शरीर से एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन) या टेस्टोस्टेरोन का ज्यादा निकलता है तो माना जाता है कि उसे बाकी की महिला प्रतिभागियों पर बढ़त हासिल है, इस वजह से उस खिलाड़ी पर बैन लग सकता है.
शांति के जेंडर टेस्ट में पाया गया कि उसके शरीर से निकलने वाली टेस्टोस्टेरोन नामक हॉर्मोन की मात्रा तय मानकों से ज्यादा है जोकि उसे बाकी महिला प्रतिभागियों पर बढ़त दिलाती है. इस टेस्ट के अनुसार ‘उनमें महिलाओं के सेक्शुअल गुण नहीं हैं.’
जेंडर टेस्ट में फेल होने के बाद शांति को मीडिया से लेकर समाज तक हर जगह फजीहत झेलनी पड़ी. वह इस कदर डिप्रेशन में चली गई थीं कि उन्होंने आत्महत्या करने का प्रयास किया. आर्थिक स्थिति भी चरमरा गई और उन्हें ईंट भट्ठे में मजदूरी तक करनी पड़ी.
2015 में जेंडर टेस्ट के कारण अपने ऊपर लगे बैन के खिलाफ दुत्ती चंद कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट (CAS) में गईं और फैसला उनके पक्ष में आया. CAS ने इंटरनेशनल असोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन के जेंडर टेस्ट करने पर दो साल तक प्रतिबंध लगा दिया.
एथलीट दुत्ती चंद अपने खिलाफ जेंडर टेस्ट के कारण लगे बैन के खिलाफ केस जीत चुकी हैं |
लेकिन, शांति कहती हैं अब उनकी जीवन में कुछ बदलाव आया है. वे बच्चों को कोचिंग देती हैं. दौड़ने की. मुस्कुराती हैं कि उनकी जैसी परिस्थितियों से गुजरने वालीं सेमेन्या और दुत्ती चंद दौड़ रही हैं और उन्हें रोका नहीं गया. शांति का सपना है, ‘एक ऐसा भविष्य, जहां किसी के भी साथ ऐसा न हो जो उन्होंने झेला.’
उम्मीद है कि देर से ही सही लेकिन अब शांति सौंदाराजन को न्याय जरूर मिलेगा!
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