'क्रिकेटर' तेजस्वी लाएंगे बिहार क्रिकेट के अच्छे दिन?
बिहार के उपमुख्यमंत्री बने लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव एक क्रिकेटर भी रहे हैं, तो क्या वह मरणासन्न हालत में पहुंच चुके बिहार क्रिकेट की हालत सुधारेंगे?
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लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी महज 26 साल में बिहार के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं. उन्हें लालू ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना है. ऐसे में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरा देश इस युवा नेता को उम्मीदों की निगाह से देख रहा है. लेकिन तेजस्वी की तरफ अगर कोई सबसे ज्यादा उम्मीद से देख रहा है तो वह है वर्षों से उपेक्षित रहा बिहार क्रिकेट. आखिर तेजस्वी एक क्रिकेटर रहे हैं. टीम इंडिया में न सही लेकिन आईपीएल में तो दस्तक दे ही चुके हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह क्रिकेटर उपमुख्यमंत्री बनकर अपनी ही जमीन पर मरणासन्न हालत में पहुंच चुके खेल का कितना भला कर पाता है?
मरणासन्न हालत में पहुंचा बिहार क्रिकेटः
बिहार क्रिकेट की खराब हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की अपनी एक रणजी टीम तक नहीं है. वर्ष 2000 में झारखंड के गठन के बाद बिहार क्रिकेट असोसिएशन से अलग होकर झारखंड क्रिकेट असोसिएशन का गठन हुआ और 2004 में जब बिहार और झारखंड में से रणजी टीम चुनने की बारी आई तो बीसीसीआई ने यह रुतबा झारखंड को सौंपा. पहले ही खराब हालत में पहुंच चुका बिहार क्रिकेट रणजी में जगह छिनने के बाद रसातल में पहुंच गया.
हालत ये कि इसी कारण से महेंद्र सिंह धोनी को बिहार क्रिकेट को छोड़कर अपना रणजी डेब्यू 2004 में झारखंड से करना पड़ा. इतना ही नहीं खुद तेजस्वी यादव ने भी प्रथम श्रेणी क्रिकेट झारखंड की तरफ से ही खेला क्योंकि बिहार के पास तो रणजी टीम ही नहीं थी. हां, ये बात और है कि 2001 से ही बिहार क्रिकेट असोसिशन की कमान तेजस्वी के पिता और भारतीय राजनीति के धुरंधर लालू प्रसाद यादव के हाथों में हैं. लेकिन बिहार क्रिकेट की हालत दुरुस्त करना तो दूर लालू राज में तो वह और ज्यादा कमजोर होता गया. अब तो मूलभूत सुविधाओं और अनिश्चित भविष्य के कारण राज्य के युवा क्रिकेटरों के पास आगे बढ़ने के अवसर ही नहीं हैं. उनके पास एकमात्र विकल्प बिहार छोड़कर किसी दूसरे राज्य की टीमों के साथ खेलना ही है.
मैदान के बाहर खूब खेल हुआ, मैदान में कुछ नहीं:
बिहार क्रिकेट की भलाई के लिए भले ही काम न हुआ लेकिन उसके नाम पर राजनीति जमकर हुई है. हालत ये कि बिहार क्रिकेट असोसिएशन (बीसीए) तीन हिस्सों में बंट चुका है. सबसे पहले 2010 में बीजेपी सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने असोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट (एबीसी) नाम से एक अलग असोसिएशन का गठन किया तो इसके बाद बिहार क्रिकेट असोसिएशन के ही कुछ नाराज सदस्यों ने शेखर सिन्हा के नेतृत्व में क्रिकेट असोसिएशन ऑफ बिहार (सीएबी) का गठन कर दिया और आदित्य वर्मा को इसका सचिव बनाया. आदित्य वर्मा हाल के वर्षों में एन श्रीनिवासन के खिलाफ भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए चर्चित रहे हैं. लेकिन इन तीनों में से बिहार क्रिकेट असोसिएशन को ही बीसीसीआई ने अपने सदस्य के तौर पर मान्यता दी है. तीन-तीन असोसिएशन होने के बावजूद बिहार में क्रिकेट के विकास के नाम पर कुछ नहीं किया गया. यानी असोसिएशन के नाम पर राजनीति का खेल तो खूब खेला गया लेकिन मैदान में युवा क्रिकेटरों के लिए असली क्रिकेट खेलने के लिए कुछ नहीं किया गया.
मरते हुए बिहार क्रिकेट में नई जान फूंक पाएंगे तेजस्वी?
सचिन तेंडुलकर को अपना आदर्श क्रिकेटर मानने वाले तेजस्वी यादव कभी टीम इंडिया के लिए खेलने का सपना देखा करते थे. हालांकि ये बात और है कि वह कभी घरेलू क्रिकेट से आगे नहीं बढ़ पाए. तेजस्वी ने कुल 7 घरेलू मैच खेले हैं. जिसमें एक प्रथम श्रेणी मैच, 2 लिस्ट-ए के मैच और 4 टी-20 मैच शामिल हैं. उन्होंने अपने पहला प्रथम श्रेणी मैच 10 नवंबर 2013 को विदर्भ के खिलाफ झारखंड की तरफ से खेला था. तेजस्वी बाद में आईपीएल में चार बार (2008, 09, 2011, 2012) दिल्ली डेयरडेविल्स का भी हिस्सा बने लेकिन एक भी मैच नहीं खेल पाए.
भले ही तेजस्वी एक फ्लॉप क्रिकेटर रहे हों लेकिन कम से कम उन्हें एक खिलाड़ी के तौर पर बिहार क्रिकेट असोसिएशन की कमान संभाल रहे अपने पिता लालू प्रसाद यादव से ज्यादा अनुभव है. इसलिए एक क्रिकेटर की परेशानी और जरूरत दोनों को ही वह उनसे बेहतर समझ सकते हैं. तेजस्वी को सबसे पहले बिहार क्रिकेट को बीसीसीआई से मान्यता दिलानी होगी, ताकि युवा क्रिकेटरों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए मंच मिल सके. साथ ही उन्हें राज्य में क्रिकेट की बदहाली को दूर करने के लिए युवा क्रिकेटरों को सुविधाएं और कोचिंग की बेहतरीन सुविधा भी उपलब्ध करानी होगी.
बीसीसीआई के गणित को देखते हुए ये काम इतना आसान नहीं होगा लेकिन शरद पवार के करीबी रहे शशांक मनोहर बीसीसीआई चीफ बन गए हैं और भविष्य में बीजेपी के मुकाबले ताकतवर विपक्ष खड़ा करने की कोशिशों में शरद पवार और लालू के नजदीक आने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. तो आने वाले वर्षों में तेजस्वी की पकड़ बीसीसीआई में भी मजबूत हो सकती है और यही बात बिहार क्रिकेट के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकती है.
इसलिए अगर तेजस्वी ने सच में बिहार क्रिकेट की हालत बदलने के लिए कमर कसी तो यकीन मानिए जल्द ही बिहार का भी कोई क्रिकेटर टीम इंडिया के लिए टेस्ट मैच खेलता नजर आएगा!
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