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Updated: 05 फरवरी, 2021 02:59 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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कभी किंग्स ऑफ गुड टाइम्स कहे जाने वाले विजय माल्या की स्पोर्ट्स की दुनिया में हमेशा से ही रुचि रही है. न सिर्फ क्रिकेट बल्कि फुटबॉल से लेकर कार रेसिंग तक उन्होंने कई खेलों में पैसा लगाया.

लेकिन विजय माल्या के बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपये का लोन न चुकाने और विदेश भाग जाने के बाद से रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु से लेकर मोहन बागान, ईस्ट बंगाल और फोर्स इंडिया जैसी खेल से जुड़ी सभी दिग्गज टीमों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गए हैं. आइए जानें विजय माल्या के साम्राज्य के ढहने का क्या असर पड़ेगा स्पोर्ट्स से जुड़ी इन टीमों पर.

विजय माल्या, आईपीएल, आरसीबी, मोहन बागान, फोर्स इंडियाविजय माल्या ने जो किया उसका खामियाजा खेल को भी भुगतना पड़  रहा है

आरसीबी के लिए बढ़ सकती हैं मुश्किलें:

2008 में आईपीएल की शुरुआत होने पर बैंगलोर की टीम को माल्या ने 111 मिलियन डॉलर (करीब7.4 अरब रुपये) की भारीभरकम रकम में खरीदा था. माल्या इस टीम का नाम मैक्डॉवल या रॉयल चैलेंजर्स के नाम पर रखना चाहते थे. आखिर में उन्होंने इसका नाम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर रखा. यानी कि आरसीबी का मालिकाना हक माल्या की कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स (यूबी) के पास है. जब तक माल्या का बिजनेस ठीक चला आरसीबी के लिए कोई दिक्कत नहीं हुई. हालांकि ये बात और है कि पहले साल से ही आरसीबी की टीम घाटे में चल रही है.

लेकिन बिजनेस में माल्या की मुश्किलें बढ़ने के साथ आरसीबी के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगना शुरू हो गए हैं. माल्या की कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स के डियाजियो के हाथों बिकने, फिर माल्या के यूनाइटेड स्प्रिट्स के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने, फरवरी में आरसीबी के डायरेक्टर पद से इस्तीफा देने जैसी चीजों ने आरसीबी के लिए मुश्किलें बढ़ाई ही हैं.

माल्या ने इस साल 7 मार्च को वर्तमान आरसीबी डायरेक्टर रसेल एडम्स द्वारा बीसीसीआई को भेजे ईमेल में रॉयल चैलेंजर्स स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (आरसीएसपीएल) के डायरेक्टर पद से इस्तीफा देने की बात कही थी. इसके पांच दिन बाद ही माल्या देश छोड़कर गए थे. हालांकि अपने बेटे सिद्धार्थ के आरसीबी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में रहने तक माल्या आरसीबी के चीफ मेंटर बने रहेंगे.

पिछले साल माल्या ने आरसीबी को बेचने के लिए सज्जन जिंदल की कंपनी जेएसडब्लयू स्टील से भी बातचीत की थी. लेकिन ये योजना भी परवान नहीं चढ़ सकी. माल्या चेयरमैन पद से इस्तीफा देने का मतलब है कि अब सीधे तौर पर उनका आरसीबी से कोई लेना-देना नहीं है.

यानी आरसीबी की कमान अब यूनाइटेड स्प्रिट्स को देख रही डियाजियो के हाथ में है. फिलहाल तो आरसीबी को फंड्स की कमी नहीं है. लेकिन माना जा रहा है कि आईपीएल से जुड़े विवादों को देखते हुए डियाजियो को आरसीबी में इंवेस्टमेंट को लेकर कोई खास उत्साह नहीं है. यानी कि आने वाले वक्त में कभी माल्या का जुनून रहे आरसीबी का सपना बिखर सकता है.

मोहन बागान और ईस्ट बंगाल भी लपेटे मेः

कोलकाता में जन्मे और वहीं से पढ़ाई-लिखाई करने वाले माल्या को बंगाल के लोकप्रिय खेल फुटबॉल से भी बेहद लगाव है. इसलिए माल्या ने बंगाल की दो लोकप्रिय फुटबॉल टीमों ईस्ट बंगाल और मोहन बंगाल में भी हिस्सेदारी खरीदी. ईस्ट बंगाल के साथ माल्या की साझेदारी 1998 में शुरू हुई. 2000 में ईस्ट बंगाल के संविधान के मुताबिक एक कंपनी बनी यूनाइटेड ईस्ट बंगाल फुटबॉल टीम प्राइवेट लिमिटेड, जिसकी 50 फीसदी हिस्सेदारी किंगफिशर के पास थी.

माल्या इसके चेयरमैन बने और टीम का नाम हो गया किंगफिशर ईस्ट बंगाल. इतना ही नहीं माल्या ने मोहन बागान में भी 50 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी और माल्या की कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स इसकी टाइटल स्पॉन्सर बन गई. लेकिन डियाजियो द्वारा यूनाइटेड स्प्रिट्स को खरीदते ही मोहन बागान को मिलने वाला फंड्स सूखने लगा. मोहन बागान को माल्या की कंपनी से हर साल 2.75 करोड़ रुपये मिलते थे, 2013 में दस साल के नए कॉन्ट्रैक्ट के तहत इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया.

लेकिन अक्टूबर 2014 में यूबी को डियाजियो द्वारा खरीदे जाने के बाद मोहन बागान को पैसा मिलना बंद हो गया. मोहन बागान अब यूनाइटेड स्प्रिट्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने पर विचार कर रही है. बागान को अब अपने 12.5 करोड़ के खर्च के लिए दूसरे स्टेक होल्डर्स से मदद मांगनी पड़ रही है.

हालांकि ईस्ट बंगाल इस मामले में थोड़ा लकी है क्योंकि उसे अपने सलाना खर्च का 75-80 फीसदी हिस्सा माल्या की कंपनी से मिलता है. 2016 में उसका बजट पिछले साल की तुलना में बढ़कर 7.5 करोड़ रुपये हो गया है. लेकिन ये कब तक मिलेगा, कह पाना मुश्किल है. माल्या के पतन ने इन दोनों फुटबॉल क्लबों के लिए भी राहें मुश्किल कर दी हैं.

फोर्स इंडिया का भविष्य भी अधर में:

रेसिंग की दुनिया में भारत की पहली टीम खड़ी करने वाले विजय माल्या लोन डिफाल्टर के किंग बन चुके हैं. फोर्स इंडिया में माल्या और सहारा के सुब्रत रॉय की आधी-आधी (42.5-42.5) फीसदी हिस्सेदारी है, बाकी 15 फीसदी हिस्सेदारी माइकेल मोल की है.

सुब्रत रॉय निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपये न लौटाने के लिए जेल में हैं तो माल्या बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपये लेकर चंपत हैं, ऐसे में फोर्स इंडिया का भविष्य क्या होगा, कह पाना बड़ा मुश्किल है.

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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