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Updated: 02 अप्रिल, 2015 06:26 AM
टीएस सुधीर
टीएस सुधीर
 
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विमल कुमार एक अच्छे ज्योतिषी हो सकते हैं. सायना नेहवाल ने जब मई 2006 में पुलेला गोपीचंद की कोचिंग में पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय खिताब फिलिपींस ओपन जीता था. तभी विमल ने कहा था कि "साइना में एक खास तरह का आत्म विश्वास है. वह बैडमिंटन की दुनिया में नंबर 4 खिलाड़ी को हराकर ही संतुष्ट नहीं हुई, उसने खिताब भी अपने नाम किया था. ज्यादातर खिलाड़ी कुछ अच्छे मैच जीत लेते हैं लेकिन कभी खिताब नहीं जीत पाते. अगर उसने अपनी गति को बरकरार रखा तो उम्मीद है कि जल्द ही सायना का नाम दुनिया के दस शीर्ष खिलाडियों में शुमार हो जाएगा."

विमल के ये शब्द भविष्यवाणी ही थे. सायना ने केवल चार साल में दुनिया के दस शीर्ष बैडमिंटन खिलाडियों की सूची में जगह बना ली. और पांच साल के भीतर वह शीर्ष आठवीं खिलाड़ी (जनवरी 2010) से दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी (मार्च 2015) बन गई. शायद यह सायना के वर्तमान कोच विमल की कड़ी मेहनत का ही नतीजा था जो आज वह विश्व बैडमिंटन रैंकिंग के माउंट एवरेस्ट पर खड़ी है.

साइना के लिए खुद इस जीत पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था. विमल ही वह सही व्यक्ति थे जिन्होंने इस जीत को संभव बनाकर सायना के पुराने तीनों कोच को समर्पित की. जो पुलेला गोपीचंद, एसएम आरिफ और गोवर्धन रेड्डी थे. इनमें से हर किसी ने सायना को सफलता के शीर्ष तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सायना की यह खेल यात्रा दरअसल एक छोटी सी घटना से शुरू हुई थी जिसे वह यादगार पल के तौर पर याद करती हैं. दिसंबर 1998 में एक बार सायना को अपने पिता के साथ हैदराबाद के लाल बहादुर इंडोर स्टेडियम में जाने का मौका मिला. उनके पिता वहां कृषि संस्थान के वैज्ञानिकों के लिए एक बैडमिंटन टूर्नामेंट का आयोजन करने की अनुमति लेने गए थे. वहीं सायना ने एक रैकेट को हाथ में थामकर खेलना शुरू किया. उनके खेल को वहां मौजूद बैडमिंटन कोच स्व. पीएसएस नानी प्रसाद राव ने तुरंत ताड़ लिया.

नानी प्रसाद, गोवर्धन और आरिफ ने साइना को बैडमिंटन की बुनियादी सीख दी. तब साइना हैदराबाद से बाहर टूर्नामेंट के लिए जाते वक्त स्कूल की किताबें भी साथ ले जाती थीं. 12 साल की उम्र में सायना ने अपनी साथी खिलाड़ी श्रुति कुरियन को बताया था कि वह ऑल इंग्लैंड खिताब जीतने वाली पहली भारतीय लड़की बनना चाहती थी. और एक डॉक्टर भी.

आरिफ, सायना को तैयार करने के लिए "लड़कों की तरह डबल प्रैक्िटस कराया करते थे. वह ज्यादा श्रम की आदी थी''. कोच जानते थे कि उसमें एक विश्व विजेता को हराने की क्षमता है, इसलिए सभी उसका काफी ख्याल रखते थे. उदाहरण के लिए गोवर्धन साइना को उन वरिष्ठ खिलाड़ियों से दूर रखते थे, जिन्होंने विदेश दौरे किए हैं. "उस वक्त भारतीय खिलाड़ियों की यह मानसिकता थी कि विदेशियों को हराया नहीं जा सकता. यह बात उन सभी के मन में घर कर गई थी. इसलिए मैंने सोचा कि सायना को उन लोगों से दूर रखना होगा.''

हाल के वर्षों में आपने देखा कि किस तरह से सायना ने चीन की दीवार को पार किया. आप को अहसास होगा कि किस तरह से इन छोटी-छोटी बातों ने उनको ढालने में कितनी अहम भूमिका निभाई.

सभी खिलाड़ियों की तरह सायना को भी पढ़ाई और खेल के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. लेकिन कुछ अच्छा होने के लिए दुनिया कुछ न कुछ रास्ता बना देती है. सायना के स्कूल के प्राचार्य सत्यनारायण राजू ने 2005 में कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा से पहले उनके पिता डॉ हरवीर सिंह को इसके समाधान की एक पेशकश की. उन्होंने सायना के पिता से कहा कि "आपकी बेटी एक नगीना है. हम जानते हैं कि वह स्कूल नहीं आ पाएगी, इसलिए हम पढ़ाने के लिए सभी शिक्षकों को आपके घर भेजेंगे."

एक दशक पहले सायना ने गोपीचंद से प्रशिक्षण लेना शुरू किया. इसी समय से बैडमिंटन में ओलंपिक पदक जीतने की भारतीय कोशिश अगले दौर में पहुंच गई थी. गोपी सायना के खान-पान, नींद और कोर्ट पर उनकी रणनीति पर नजर रख रहे थे. गोपी ने 2012 में मुझे बताया था कि "वह एक बेटी की तरह है. मेरा मानना है कि अगर आप दस घंटे बैडमिंटन को देने के बाद 14 घंटे उन कामों में लगाते हैं जो आपके खेल को नुकसान पहुंचाते हों तो आप श्रेष्ठता का उच्चतम स्तर कभी हासिल नहीं कर सकते."

सायना को खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत का एहसास हुआ इसलिए पिछले साल वह बेंगलूर चली गईं. भारत के राष्ट्रीय कोच होने के नाते और हैदराबाद में अपनी अकादमी के 150 खिलाड़ियों के साथ व्यस्तता की वजह से गोपी शायद उन्हें समय नहीं दे पा रहे थे. आलोचना के उस दौर में खेले गए दांव का नतीजा अब मिला. सायना के जीवन में अलग-अलग दौर में आने लोगों ने उसके खेल को त्रुटिहीन बनाया. इसी वजह से उसका लक्ष्य भी साफ हुआ.

सायना के माता-पिता युवावस्था में बैडमिंटन खिलाड़ी थे. इस बात से भी सायना को मदद मिली. उनके पिता हरवीर सिंह कहते हैं कि "उनकी माँ एक असाधारण प्रतिभाशाली बैडमिंटन खिलाड़ी थी. जिन लोगों ने उषा रानी को हिसार में खेलते देखा है उन्हें याद है कि वह किस तरह से अपनी कलाई को घुमाया करती थीं. सायना को अपनी माँ जैसा स्टेमिना मिला है. लेकिन मैं बताना चाहूँगा कि उषा अभी भी हुनर के मामले में बेहतर हैं.''

दुनिया में नंबर एक का खिताब पाने के साथ ही हरवीर सिंह की बेटी ने हुनर के मामले में भी उन्हें अपनी राय बदलने के लिए मजबूर कर दिया है.

(टी.एस. सुधीर जुलाई 2012 में प्रकाशित साइना नेहवाल की जीवनी के लेखक हैं)

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लेखक

टीएस सुधीर टीएस सुधीर

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर (साउथ इंडिया) हैं.

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