हम सुशील कुमार का तीसरा ओलंपिक मैडल नहीं देख पाएंगे?
मीडिया के हवाले से कुछ दिन पहले ही ये बात सामने आई कि ओलंपिक के लिए कोटा हासिल करने वाले जिन भारतीय पहलवानों की सूची युनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग की ओर से IOA को भेजी गई है उसमें सुशील कुमार का नाम मौजूद नहीं है. अब विवाद है. लेकिन सवाल है कि सुशील की दावेदारी कितनी जायज है...
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5 अगस्त से ओलंपिक खेल शुरू हो रहे हैं. मैडलों को लेकर भारतीयों की बड़ी उम्मीद कुश्ती को लेकर है. लेकिन दुर्भाग्य से इस बड़ी प्रतियोगिता से पहले ही दो भारतीय पहलवान आमने-सामने आ गए हैं. भारतीय कुश्ती के दो जाने-पहजाने नाम. भारत के लिए दो ओलंपिक मैडल जीतने वाले सुशील कुमार और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने वाले नरसिंह यादव. दोनों की जुबानी जंग तो सुर्खियां बटोर ही रही हैं. ये चर्चा भी जोरों पर है कि अब IOA और रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI) क्या फैसला लेंगे. खेल मंत्री सर्वानंद सोनवाल कह चुके हैं कि वे इस मामले में हस्ताक्षेप नहीं करेंगे. फैसला फेडरेशन को लेना है.
क्या है विवाद-
मीडिया के हवाले से कुछ दिन पहले ही ये बात सामने आई कि ओलंपिक के लिए कोटा हासिल करने वाले जिन भारतीय पहलवानों की सूची युनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग की ओर से IOA को भेजी गई है उसमें सुशील का नाम मौजूद नहीं है. उनकी जगह 74 किलोग्राम वर्ग में उत्तर प्रदेश के नरसिंह यादव का नाम है.
सुशील को चुनौती देने वाले नरसिंह यादव |
दरअसल, नरसिंह पिछले साल सितंबर में लास वेगास में आयोजित हुए वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले भारतीय बने थे. सुशील लास वेगास में हुए उस टूर्नामेंट में चोट के कारण हिस्सा नहीं ले सके थे. फर्ज कीजिए अगर नरसिंह वो पदक नहीं जीतते तो आज तो कोई बहस ही नहीं होती. अब चूंकि नरसिंह ने 74 किलो वर्ग में देश के लिए कोटा हासिल कर लिया तो सुशील भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं.
सुशील अपने स्टारडम का फायदा तो नहीं उठा रहे?
पिछले कुछ दिनों से अचानक सुशील कुमार के समर्थन में आवाजें उठने लगी हैं. ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि सुशील ओलंपिक टिकट हासिल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. और तो और ये बातें भी होने लगी हैं कि सुशील कुमार और नरसिंह के बीच मुकाबला या उसे ट्रायल कह लीजिए, के दम पर ये फैसला किया जाए कि कौन रियो जाएगा.
सवाल है कि क्या इस विवाद को इतना तूल देना सही है? और फिर एक और ट्रायल की बात क्यों हो रही है, क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. भारत में हमेशा यही होता रहा है कि जिस खिलाड़ी ने भी कोटा हासिल किया, ओलंपिक में खेलने का मौका भी उसे ही मिलता है.
ये जरूर है कि सुशील के नाम जरूर दो ओलंपिक मैडल हैं. और ये भी मान लीजिए कि उनका ओलंपिक में न होना शायद भारतीय दल के लिए नुकसानदायक हो सकता है. लेकिन ये भी तो एक सच है कि सुशील 2014 के ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद से किसी बड़ी राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सके हैं.
सुशील का रिकॉर्ड ये भी बताता है कि वे उनके पास 66 किलोग्राम वर्ग में खेलने का अनुभव ज्यादा है. नए नियमों के तहत इस बार ओलंपिक से 66 किलोग्राम वर्ग को हटा कर 74 किलोग्राम वर्ग को जगह दी गई है. सुशील ने ग्लास्गो में जरूर 74 किलोग्राम में गोल्ड मैडल जीता लेकिन उसके बाद पिछले दो वर्षों में चोट से परेशान रहे. 2012 से 2016 के बीच उन्होंने केवल दो अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया जबकि इससे पहले 2008 से 2012 के ओलंपिक के बीच उन्होंने आठ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था.
इसके उलट नरसिंह का रिकॉर्ड बेहतर हैं. पिछले दो वर्षों में उनके साथ चोट की कोई समस्या नहीं रही है. उन्होंने एशियन चैंपियनशिप और एशियन गेम्स-2014 में ब्रॉन्ज मैडल हासिल किया और अभी विश्व रैंकिंग में पांचवें नंबर पर हैं. खैर, रियो ओलंपिक में कौन जाएगा, ये फैसला अभी नहीं हो सका है. नाम भेजने की आखिरी तारीख 18 जुलाई है. इसलिए इंतजार कीजिए. वैसे ये तो अगस्त में पता चल पाएगा कि जो भी फैसला हुआ वो कितना सही था...
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