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Updated: 23 सितम्बर, 2015 08:03 PM
मुनजीर अहमद
मुनजीर अहमद
  @windowshacker
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BOSS यानी भारतीय ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशन, एक ऐसा ऑपेरटिंग सिस्टम जो भारत में बनाया गया है. जी हां कुछ ऐसी ही खबर हर जगह चल रही है, पर इसे हम ऐसे समझे तो ज्यादा बेहतर होगा. BOSS एक लिनक्स आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसे भारत की नेशनल रिसोर्स सेंटर और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (CDAC) ने खास भारत के लिए कस्टमाइज कर के डेवलप किया है. जिसमें 18 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है. लिनक्स एक ओपन सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम का प्लैटफॉर्म है जिस पर कोई भी फ्री में अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बना सकता है. इसे भारत का तब कहा जाता जब पूरे ऑपरेटिंग सिस्टम को भारत में बनाया जाता. बहरहाल इस ओएस को बनाया तो 2007 में ही गया था पर अब मोदी सरकार इसे सरकारी कामकाज में इस्तेमाल करने का मन बना चुकी है.

भारतीय साइबरस्पेस पर चीनी हैकरों के लगातार बढ़ते साइबर अटैक को मद्देनजर रखते हुए भारत सरकार ने यह फैसला लिया है. पर क्या विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की जगह BOSS का इस्तेमाल कर हैकिंग से बचा जा सकता है? क्या भारत में जितनी भी वेबसाइट और सर्वर हैक हुए वो सारे विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की वजह से? क्या सरकार ये मानती है कि अगर लोग विंडोज की जगह BOSS यूज करें तो हैकिंग से निजात मिल जाएगी? ऐसा बिल्कुल नहीं होगा क्योंकि हैकर्स के लिए लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को भेदना और भी आसान होता है. हालांकि अभी तक दुनिया भर में हैकिंग का कारण कोई खास ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं रहे हैं. अभी तक भारत सरकार की जितनी भी वेबसाइट हैक हुईं उनमें से कोई भी वेबसाइट एसएसल (SSL) यानी सिक्योर सॉकेट लेयर प्रोटेक्टेड नहीं थी. और बिना एसएसएल इनक्रिप्शन वाली वेबसाइट को हैक करना हैकरों के बायें हाथ का खेल है. तो बजाए नए ऑपरेटिंग सिस्टम लाने के सरकार को सबसे पहले तमाम सरकारी वेबसाइट को एसएसल से सिक्योर करना चाहिए.

ई-मेल को लेकर सरकार का लचर रवैया

हैकरों के लिए सबसे पसंदिदा और आसाम काम होता है ई-मेल हैक करना. और भारत में तमाम सरकारी कर्माचारी, अफसर, और नेताओं की आधिकारिक ई-मेल आईडी गूगल,याहू और माइक्रोसॉफ्ट की होती है. क्या हम गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू पर इतना भरोसा कर सकते हैं कि उन्हें हम अपने देश से जुड़ी संवेदनशील और गोपनिए दस्तावेज रखने के लिए दे दें ? सुनने में यह कुछ अटपटा जरूर लग सकता है पर यह सच है. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू के ई-मेल से हमारे देश के सरकारी अफसर और कर्माचारी जितने भी मेल एक दूसरे को करते हैं दरअसल वो उन इंटरनेट कंपनियों के सर्वर पर स्टोर होता जाते हैं. अगर सरकारी अफसर उन्हें अपने मेलबॉक्स से डिलीट भी कर दें तो उसकी एक कॉपी उन कंपनियों के सर्वर पर मौजूद रहती है. ऐसे में क्या गारंटी है कि देश से जुड़े संवेदनशील दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल वो कंपनियां न करें ? अगर एक बार को आप मान भी लें कि वो कंपनियां हमारे दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगी तो इसकी क्या गारंटी है कि अमेरिका या फिर कोई दूसरा देश हमारे खिलाफ उन जानकारियों का गलत इस्तेमाल न करे ? अब आपके मन में यह सवाल मंडरा रहा होगी कि कोई दूसरा देश उन कंपनियों के सर्वर से हमारे दस्तावेज कैसे लेगा.इस सवाल का जवाब एनएसए के कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन ने अपने खुलासे में बखुबी दिया है. उनके मुताबिक अमेरिका अपने नागरिकों समेत दूसरे मुल्कों की भी साइबर जसूसी कर रहा था साथ ही अमेरिकन खुफिया एजेंसी, गूगल समेत कुछ और कंपनियों के सर्वर की भी जासूसी कर रहे थे.

नेशनल इनफॉर्मेटिक सेंटर को सिक्योर कर के उनके मेल सर्वर का इस्तेमाल

सरकार समय समय पर यह बात करती आई है कि तमाम सरकारी कर्माचारी नेशनल इनफोर्मेटिक सेंटर की ईमेल आईडी का इस्तेमाल करेंगे. पर इसे सख्ती से लागू करने में हर बार सरकार फेल रही है. मोदी सरकार ने भी कुछ महीने पहले यह बयान दिया था कि जल्द ही तमाम सरकारी कर्मचारी और अफसर NIC की आईडी ही इस्तेमाल करेंगे पर अभी तक ऐसा कुछ नहीं दिखता. अमेरिका समेत दूसरे युरोपिए मुल्कों में तमाम सरकारी कर्माचारियों की ईमेल आईडी सरकार देती है और उसका सर्वर भी सरकार ही मैनेज करती है. हालांकि भारत का नेशनल इनफोर्मेटिक सेंटर भी हैकरों के निशाने पर रहा है. हैकर्स इसे आसानी से हैक कर लेते हैं अगर सराकरी कर्मचारी NIC के ईमेल आईडी का इस्तेमाल करना शुरू भी कर दें फिर भी कोई खास फायदा नहीं दिखता.सरकार को BOSS से ज्यादा फिलहाल NIC पर ध्यान देने की जरूरत है. सरकार को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा की भारत से जुड़ा कोई भी संवेदनशील या गोपनिए दस्तावेज गूगल और याहू के सर्वर पे ना हों. इसके लिए मोदी सरकार को NIC के सर्वर्स की सिक्योरिटी को नई तकनीक और नए डिवाइस के जरिए मजबूत करना होगा. साथ लचर रवैया छोड़ इसके लिए बड़े पैमाने पर साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों को बहाल करके जितना जल्दी हो सके देश के तमाम सरकारी कर्मचारियों को NIC का ईमेल आईडी इस्तेमाल करना आवश्यक बनाना होगा.

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लेखक

मुनजीर अहमद मुनजीर अहमद @windowshacker

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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