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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 13 जून, 2021 03:04 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पिछले दिनों डीप फेक्स के नमूने के तौर पर टॉम क्रूज का वीडियो सामने आया. जबकि एक टिकटॉक स्टार के वीडियो में टॉम क्रूज दिखाई दिए, जबकि वो वहां थे नहीं. कहने को ये एक खिलवाड़ लग सकता है. वैसे भी इंस्टाग्राम और कई एप्स पर लोग फिल्टर्स का इस्तेमाल बहुतायत में करते ही हैं. जिसमें एक चेहरे को एप की मदद से दाढ़ी-मूंछ लगा दी जाती है, या चेहरे पर बिल्ली के कान आ जाते हैं, या मुंह से कुत्ते की जीभ लटकने लगती है. कह सकते हैं कि Deep Fakes उन्हीं फिल्टर्स का परिष्कृत रूप है. इसमें नकली, असली लगता है. और यही इसका खतरनाक पहलू है. 

भारत में राजनीतिक हस्तियों से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स के कई विवादित सीडी कांड और स्टिंग ऑपरेशन जैसे वीडियो सामने आ चुके हैं. अमूमन ऐसे हर वीडियो को बनावटी या नकली या मॉर्फ्ड साबित होते हैं. हमारे देश में एक खास नैरेटिव बनाने के लिए फेक न्यूज और फेक फोटोज का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है. कई बार इनका उपयोग लोगों की इज्जत उछालने के लिए भी किया जाता है. अमूमन इस तरह की हरकतें जल्द ही पकड़ में आ जाती हैं. लेकिन, 21वीं सदी में इंसानों के साथ ही तकनीक ने भी काफी तरक्की कर ली है. दुनिया भर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई पर आधारित तकनीक का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड हो जाने वाली लगभग सभी एप इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक पर काम करती हैं. हाल ही में कई ऐसे मोबाइल एप्स सामने आए हैं, जिसके जरिये किसी मृत शख्स की भी चंद तस्वीरों के सहारे उसका लाइव वीडियो बनाया जा सकता है. इन एप्स में तकनीक का इस कदर इस्तेमाल किया जाता है कि रियल और फेक वीडियो के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है. कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ये तकनीक भारत जैसे देश में प्रतिशोध लेने के एक 'हथियार' के तौर पर इस्तेमाल हो सकती है.

खतरनाक मोड़ ले सकती है ये तकनीक

कुछ दिनों पहले ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो जमकर वायरल हो रहा था. वीडियो में नजर आने वाली महिला कोरोना महामारी की वजह से उपजी अव्यवस्थाओं को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साध रही थी. वीडियो को लेकर दावा किया गया था कि वह भाजपा सांसद मेनका गांधी हैं. आजतक ने इस वीडियो का फैक्ट चेक किया, तो ये वीडियो कांग्रेस की नेता डॉली शर्मा का निकला, जिसे मेनका गांधी के 'मन की बात' कहा जा रहा था. खैर, ये वीडियो आसानी से पकड़ में आ गया. Faceapp और Reface जैसी दर्जनों एप प्ले स्टोर पर मौजूद हैं, जिनके सहारे इस तरह के वीडियो आसानी से बनाए जा सकते हैं. दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ये एप डिजिटल मीडिया की एक नई शैली है और इसका इस्तेमाल स्मार्टफोन रखने वाला कोई भी शख्स कर सकता है. इसके लिए केवल एक वीडियो क्लिप और कुछ तस्वीरें चाहिए होती हैं. इनके साथ बहुत ही आसानी से एक शख्स के चेहरे की जगह दूसरे का चेहरा लगाया जा सकता है. फिलहाल इन एप्स का इस्तेमाल लोग मजाकिया वीडियो (किसी फिल्म के सीन में अमिताभ बच्चन की जगह अपना चेहरा लगाकर) या तंज कसने वाले वीडियो बनाने के लिए कर रहे हैं. लेकिन, भविष्य में यह खतरनाक मोड़ ले सकता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ये एप डिजिटल मीडिया की एक नई शैली है.आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ये एप डिजिटल मीडिया की एक नई शैली है.

राजनीतिक हस्तियों और बॉलीवुड सेलेब्स के लिए खतरे की घंटी

भारत में इस समय जिस तरह की राजनीतिक, व्यावसायिक, वैचारिक और अन्य प्रतिस्पर्धाओं का दौर चल रहा है, कहना गलत नहीं होगा कि कई लोग अपने प्रतिशोध और कुंठाओं को पूरा करने के लिए भी इस तकनीक का प्रयोग आसानी से कर सकते हैं. इस तकनीक से बनाए गए फेक वीडियो का सबसे ज्यादा शिकार राजनीतिक हस्तियां और बॉलीवुड सेलेब्स बन सकते हैं. गूगल से लेकर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन लोगों की हाई-क्वालिटी तस्वीरें आसानी से मिल जाती हैं. किसी भी तरह के वीडियो (पोर्न क्लिप्स भी) के साथ छेड़छाड़ कर आसानी से इन हस्तियों को निशाना बनाया जा सकता है. जिस तरह टेक्नोलॉजी की मदद से दुनिया में साजिशें रची जा रही हैं, व्हाट्सएप को सबसे भरोसेमंद मानने वाले भारत में आने वाले समय में कोहराम मचना तय है.

भारत में व्हॉट्सएप पर मिलने वाली फेक न्यूज को असली मान लेने वाले लोगों के बीच इस तकनीक के सहारे राजनीतिक हस्तियों और सेलेब्रिटीज के लिए ये किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. इसके साथ एआई तकनीक के माध्यम से महिलाओं या किसी आम से व्यक्ति की इज्जत को कुछ ही समय में तार-तार किया जा सकता है. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह किसी भी व्यक्ति विशेष से लेकर एक आम शख्स के खिलाफ भी दुष्प्रचार का सबसे भयावह साधन बन सकता है. इन एप से बनाए गए वीडियो के जरिये कुछ ही घंटों के अंदर लोगों के सम्मान को चुटकियों में धूमिल किया जा सकता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे वीडियो वायरल होने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगता है. जब तक इनकी शिकायत कर इन्हें हटाने की कोशिश होगी, तब ये अपने उद्देश्य को पूरा कर चुके होंगे.

महिलाओं के खिलाफ बढ़ सकते हैं संगठित अपराध

भारत में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वालों की संख्या 26 करोड़ से ज्यादा है. इन यूजर्स में से करीब 95 फीसदी लोग आमतौर पर अपनी तस्वीरें इस प्लेटफॉर्म पर शेयर करते हैं. ऐसे में कोई भी शख्स आसानी से किसी यूजर की तस्वीरें लेकर उसे किसी भी वीडियो में लगा सकता है. अगर भारत में इस तरह की एप लोगों में प्रचलित हो गईं, तो महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध के मामलों में भी बेतहाशा वृद्धि होने की संभावना है. किसी भी महिला को इस एप के जरिये आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कोई भी कुंठाग्रस्त शख्स इस एप के जरिये महिलाओं की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उनकी इज्जत को कुछ ही समय में तार-तार करने की कुव्वत रखने लगेगा. देश में बड़ी संख्या में महिलाएं निजी तस्वीरें या वीडियो लीक होने पर आत्महत्या जैसा कदम उठा चुकी हैं. शायद ही ये कहना गलत हो कि एआई की तकनीक से इस तरह के अपराधों को अंजाम देना बहुत आसान हो जाएगा. दरअसल, इंसानी बौद्धिकता की एक सीमा है, लेकिन एआई असीमित डेटा को प्रोसेस कर उसे बिल्कुल असली बना देता है. सदी के महान वैज्ञानिकों में शामिल रहे स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के संपूर्ण विकास से मानव जाति का अंत हो सकता है. वहीं, टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कहा था कि एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

इंसानी बौद्धिकता की एक सीमा है, लेकिन एआई असीमित डेटा को प्रोसेस कर उसे बिल्कुल असली बना देता है.इंसानी बौद्धिकता की एक सीमा है, लेकिन एआई असीमित डेटा को प्रोसेस कर उसे बिल्कुल असली बना देता है.

डिजिटल मीडिया संस्थानों के लिए भी बड़ी चुनौती

भविष्य में यह लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि डिजिटल मीडिया संस्थानों के लिए भी चुनौती खड़ी करेगा. दरअसल, इस तरह के फेक वीडियो और तस्वीरें भारत में बहुतायत में पाए जाने वाले डिजिटल मीडिया संस्थानों के जरिये अराजकता फैला सकती हैं. इस तरह के वीडियो या तस्वीरों को फैक्ट चेक कर रिजेक्ट करने के लिए बड़े डिजिटल मीडिया संस्थानों के पास बहुत ज्यादा समय होगा. लेकिन, छोटे-छोटे मीडिया संस्थानों या केवल एक खास नैरेटिव वाले डिजिटल मीडिया संस्थानों द्वारा बिना इसका फैक्ट चेक किए प्रसारित कर देने पर यह उक्त शख्स की छवि के साथ ही लोगों में गुस्सा भी बढ़ाएगा. इसके परिणाम भयावह हो सकते हैं. इस तरह के फेक वीडियो के जरिये देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है. तकनीक जिस तरह से लगातार विकसित हो रही है, आने वाले समय में इन एप्स के जरिये संवादों और आवाज के साथ भी छेड़छाड़ किए जा सकने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. 2019 में साइबर सुरक्षा की एक कंपनी डीपट्रेस लैब की एक स्टडी के अनुसार, छेड़छाड़ कर बनाए गए इस तरह के फेक वीडियो में से 96 फीसदी में अश्लील दृश्य सामने आए थे. इन फेक वीडियो में हॉलीवुड की कई सेलेब्स के चेहरों का इस्तेमाल किया गया था.

क्या होता है AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का अर्थ है, एक ऐसी कृत्रिम मशीन जिसमें सोचने-समझने और फैसला लेने की क्षमता का विकास किया जाए. रोबोट्स, कंप्यूटर्स के साथ ही मोबाइल एप्लीकेशन में पाया जाने वाला हर एक एल्गोरिदम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहलाता है. यह एक तरह से कंप्यूटर का दिमाग होता है, जो इंसानों की तरह सोचता है. 2017 में गूगल के एआई 'डीप माइंड' (DeepMind) ने 'अल्फा गो' गेम में इस खेल के वर्ल्ड चैंपियन प्लेयर को हरा दिया था. चीनी ऑरिजन वाले इस गेम में अनगिनत पॉसिबल मूव्स होते हैं. इस गेम पर विशेषज्ञों ने अपनी राय देते हुए कहा था कि खेल के दौरान डीप माइंड गेम से जुड़ी कुछ जानकारी के बल पर करोड़ों मूव्स को एलिमिनेट करके ऐसे पॉसिबल मूव्स को चल रहा था, जिसकी वजह से दुनिया का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी आश्चर्यचकित रह गया था.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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