भारतीय डिजिटल क्रान्ति का मजेदार इतिहास
राजीव गांधी के कहने पर पहले रामायण, महाभारत आया. और फिर हुआ MTV और Star TV का पदार्पण और बात कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम नृत्य से निकल कर ब्रिटनी स्पीयर्स और जे लो के डांस तक पहुँच गई.
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कल मुंबई में सैम पित्रोदा की जीवनी 'ड्रीमिंग बिग: माई जर्नी तो कनेक्ट इंडिया' का विमोचन हुआ, विमोचन रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अम्बानी ने किया. 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने एक आधुनिक भारत का सपना देखा तो उस सपने को पूरा करने की ज़िम्मेदारी सैम पित्रोदा को ही सौंपी गई थी. 1984 में टेलीमैटिक्स विकास केंद्र ( C DOT) की स्थापना करने के साथ ही भारत में डिजिटल क्रान्ति का एक ऐसा दौर शुरू हुआ जिसका फायदा आज घर घर बैठे हर भारतीय नागरिक को मिल रहा है. अगर आज मैं अपने लैपटॉप पर इस आर्टिकल को हिंदी में टाइप कर रही हूँ और बाकी दूसरे आर्टिकल्स पर आए हुए कमेंट्स का मज़ा ले रही हूँ, तो इस की नींव 25 साल पहले रखी गई थी.
आज भी, जब माँ बताती हैं कि मायके से एक चिट्ठी आ जाती थी तो उसी को पूरे महीने रोज़, एक-एक लाइन ऐसे पढ़ती थीं, मानो बार- बार पढ़ने से शायद कोई नई लाइन मिल जाएगी. और ये सिलसिला बदस्तूर तब-तक जारी रहता था जब तक कि नयी चिट्ठी नहीं आ जाती थी. ये दुःख भरी दास्तान सुनकर सच में दुःख तो होता है, पर डिजिटल इंडिया में होने का जो गर्व का अनुभव होता है, बस पूछो मत!
पहले एक फ़ोन करने के लिए, लोगों को किसी अमीर रिश्तेदार या किसी सरकारी महकमे को ढूंढना पड़ता था. अहसान के बोझ तले, बड़ी मशक्कतों बाद फ़ोन लगता था, जिसे उस ज़माने में हम ट्रंक कॉल कहते थे. लेकिन डिजिटल क्रांन्ति की शुरुआत होने के कुछ दिनों के अन्दर ही जगह जगह STD- ISD- PCO- FAX के साइन-बोर्ड दिखने लगे और लोगों की ज़िन्दगी आसान होने लगी.
"चिट्ठी न कोई सन्देश, जाने वो कौन से देश", जैसे गानों का अब कोई औचित्य नहीं रह गया. अब राजेश खन्ना का "डाकिया डाक लाया" जैसा सुरीला गाना, जिसमें वो डाक से भरा थैला लेकर 50-50 मील जाकर, डाक बांटते थे, इस डिजिटल समय के हाथों अस्तित्व विहीन हो चुका था.
इसी तरह, एक वो भी ज़माना था जब टीवी बहुत ही दुर्लभ वस्तु हुआ करती थी. महानगर के घरों में तो दिख भी जाते थे लेकिन इंटीरियर के शहरों और कस्बों में न के बराबर होते थे. और मोहल्ले में इक्का दुक्का घरों में टीवी हो भी तो प्रसारण राम भरोसे होता था. वैसे तो हम नाक ऊँची किए घूमते थे लेकिन जब सन्डे को मूवी आने का टाइम होता था तो रेंगते-रेंगते बड़े ही अनमने मन से भी, सबसे पहले ही पहुंचते थे, ताकि सीट अच्छी जगह मिल जाये और किसी की मुंडी टीवी और मेरे बीच न आ पाए .
तब छोटे से ब्लैक एंड व्हाइट पोर्टेबल टीवी का ऐनटीना स्पेसशिप के आकार का होता था. घर के होनहार, बड़े लड़के पर ये ज़िम्मेदारी होती थी की वो बुद्धवार और शुक्रवार को आने वाले चित्रहार के समय छत पर जा कर ऐनटीना तब तक घुमाए, जब तक कि टीवी की स्क्रीन थोड़ी थोड़ी दिखने लायक न हो जाए, रविवार को मूवी वाला दिन भी ऐसा हो होता था.
राजीव गाँधी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं की भारत के घर घर में टीवी हो. बहुत से लोगों ने उनकी इस बात भरोसा नहीं किया. कहीं पढ़ा था कि राजीव गाँधी ने बीआर चोपड़ा और रामानंद सागर को बुला कर महाभारत और रामायण बनाने की जिम्मेदारी सौंपी और उसका असर ये हुआ कि घर घर टीवी की सपने जैसी बात सचमुच साकार हो गयी.
और फिर हुआ MTV और Star TV का पदार्पण, उनके आते ही The Bold and beautiful, Santa Barbara, Baywatch जैसे सीरियल घर घर पहुँचने लगे और लोगों की सोच में क्रांति आनी शुरू हो गई, बात कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम नृत्य से निकल कर ब्रिटनी स्पीयर्स और जे लो के डांस तक पहुँच गयी.
फिर एक ऐसा दौर भी आया जब अमेरिका ने क्रे सुपर कंप्यूटर्स ने भारत को अपनी तकनीकी देने से मना कर दिया , इस चुनोती से निपटने के लिए भारत ने पुणे में C DAC की स्थापना की और अपना खुद का सुपर कंप्यूटर बनाया.
ख़ुशी की बात है कि वर्तमान प्रधान मंत्री जी भी डिजिटल क्रान्ति के हिमायती हैं, लेकिन ख़ुशी तब और भी होजो डिजिटल इंडिया की क्रान्ति सिर्फ फेसबुक प्रोफाइल इमेज बदलने तक सीमित न रहे और ठोस कदम उठाये जाएँ जो आगे बढ़ कर हर एक भारतीय को इनफार्मेशन और डिजिटल संवाद से लैस कर दे
वैसे फालतू का किट-किट लगा रखा था कि कलयुग है, कलयुग है. अरे काहे का कलयुग. जितने मजे इस युग में हम लोग कर रहे हैं उतने मज़े तो शायद ही किसी युग में किसी ने किये होंगे. लोगों का तो पता नहीं पर मेरे लिए तो ये युग "सुपर-डुपर युग" है. फालतू में डरवा दिया गया की "रामचंद्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आयेगा, हँस चुगेगा दाना-दुनका, कौवा मोती खायेगा". अरे भाई टेक्नोलॉजी सबके पास है जो मन चाहे चुगो, किसने रोका है. हाँ, पर क्या चुगना है, इसकी समझ भी आप टेक्नोलॉजी का फायदा उठाकर, विकसित कर सकते हैं. मर्ज़ी आपकी है.
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