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Updated: 18 मई, 2016 03:31 PM
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अमेरिका ने 1998 में ही अनिवार्य कर दिया था कि वहां बनने वाली सभी कारों में एयरबैग होना जरूरी है. हमारे यहां यह नियम इस सरकार के राज में अक्‍टूबर 2017 से लागू होगा. लेकिन इस दर्म्‍यान हुई मौतों का क्‍या?

दुनिया के छठे सबसे बड़े ऑटोमोबाइल मार्केट भारत के कार यूजर्स के लिए एक निराशाजनक खबर है. ब्रिटेन की स्वतंत्र संस्था GNCAP (ग्लोबल नेशनल कार असेसमेंट प्रोग्राम) द्वारा कराए गए क्रैश टेस्ट में देश की कई दिग्गज कार कंपनियां फेल हो गई हैं. इस टेस्ट में फेल हुई कारों में रेनॉ की क्विड, ह्युंडाई की इयॉन, मारुति सुजुकी सेलेरियो और ईको और महिंद्रा की स्कॉपिर्यो जैसे वाहन शामिल हैं. इस क्रैश टेस्ट में इन कारों को पांच रेटिंग में से जीरो रेटिंग मिली.

क्रैश टेस्ट में फेल होने का मतलब है कि ऐक्सिडेंट के समय ड्राइवर और पैसेंजर्स की सुरक्षा के उपायों की इन कारों में पूरी तरह कमी दिखी. इन कारों में जिन सुरक्षा उपकरणों की जरूरत है वे नहीं मिले इसलिए इन्हें क्रैश टेस्ट में जीरो रेटिंग मिली और सुरक्षा मानकों पर ये कारें बुरी तरह असफल हुईं. #इन सुरक्षा उपकरणों में हर कार में कम से दो एयरबैग होना चाहिए लेकिन इन कारों में एयरबैग नहीं

#इतना ही नहीं डिजाइन के मामले में भी ये कारें इस टेस्ट में बुरी तरह असफल रहीं.

#GNCAP के इस हालिया क्रैश टेस्ट में अडल्ट प्रोटेक्शन के मामले में ह्युंडाई की क्विड (एक रेटिंग) को छोड़कर बाकी सभी कारों को जीरो रेटिंग मिली. #जबकि चाइल्ड प्रोटेक्शन के मामलों में सेलेरियो (एक रेटिंग) को छोड़कर बाकी कारों को दो रेटिंग मिली.

ये कोई नई बात नहीं:

इससे पहले 2014 में सबसे पहले GNCAP ने भारतीय कारों का क्रैश टेस्ट किया था और तब भी टाटा नैनो, मारुति ऑल्टो 800, ह्यंदै आई10, फोर्ड फिगो और फॉक्सवैगन पोलो सुरक्षा मानकों पर बुरी तरह असफल साबित हुई थीं. इन सभी कारों को क्रैश टेस्ट में जीरो रेटिंग मिली थी. इसके बाद फिर से हुए क्रैश टेस्ट में डैटसन गो और मारुति सुजुकी क्रैश टेस्ट में पास नहीं हो सकी थीं.

देखें: कैसे GNCAP क्रैश टेस्ट में फेल हुई मारुति की सेलेरियोः 

GNCAP ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान 15 भारतीयों कारों का क्रैश टेस्ट किया है जिनमें से सिर्फ टोयोटा की इटियॉस और फॉक्सवैगन की पोलो ही अच्छा प्रदर्शन कर पाई जिन्हें अडल्ट प्रोटेक्शन के मामले में चार रेटिंग मिली. संयोग से ये दोनों ही विदेशी कार कंपनियां है, फॉक्सवैगन जर्मनी की जबकि टोयोटा जापान की कंपनी है. लेकिन इस टेस्ट में टाटा, मारुति और महिंद्रा जैसी दिग्गज भारतीय कंपनियां पास नहीं हो पाईं आइए जानें क्यों सुरक्षा मानकों को अपनाने में पीछे हैं भारतीय कंपनियां और क्या हैं एयरबैग्स और एंटी ब्रेक सिस्टम जैसे उपायों को अपनाने के फायदे.

देखें: कैसे GNCAP क्रैश टेस्ट में फेल हुई महिंद्र की स्कॉपिर्योः

सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज करने के कुतर्क:

साल भर लाखों कार बेचकर मोटी कमाई करने वाली ये कंपनियां इन गाड़ियों के सुरक्षा उपायों को लेकर इस कदर लापरवाह हैं कि क्रैश टेस्ट में फेल होने के बावजूद बजाय के सुरक्षा उपाय न बढ़ाने के लिए ये तर्क दे रही हैं.

# मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने दो साल पहले कहा था कि जापान में तो 2004 से ही एयरबैग को अनिवार्य कर दिया गया है लेकिन इसके बावजूद वहां रोड ऐक्सिडेंट कम नहीं हुए हैं.

# कई बार सुरक्षा उपाय अपनाने के मामले में इन कंपनियों का तर्क होता है कि कार को पूरी तरह सुरक्षित बना देने से ही रैश ड्राइविंग का खतरा बढ़ता है और रास्ते में चलने वाले लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ जाती है. इनका तर्क होता है इसीलिए ज्यादातर रैश ड्राइविंग के मामले बीएमडब्ल्यू और मर्सीडीज जैसी गाड़ियों से ही जुड़े होते हैं, जो इन सुरक्षा उपायों से लैस होती हैं.

अब इन तर्कों की हकीकत देखते हैं:

कार को सुरक्षित बना देने से लोग रैश ड्राइविंग करने लगते हैं, अगर ऐसा होता तो बिना एयरबैग या सीटबेल्ट के चलने वाली बाइकों के साथ लोग रैश ड्राइविंग न करते. यानी रैश ड्राइविंग का कार के सुरक्षित होने से नहीं बल्कि एक खास तरह की सोच से संबंध है.

इन कंपनियों का ये भी तर्क है कि भारतीय कंज्यूमर्स को एक तो इन सुरक्षा उपायों के प्रयोग की जानकारी नहीं है और दूसरी इन उपायों के प्रयोग से गाड़ियां और महंगी भी हो जाएंगी. गाड़ियों के महंगे होने का तर्क भी गलत है. दस साल पहले एयरबैग के साथ आने वाली किसी कार का टॉप वैरियंट के लिए जहां एक लाख रुपये ज्यादा चुकाने पड़ते थे वहीं अब यह अंतर मह 25 हजार रह गया है और आने वाले समय में इसके और घटने की उम्मीद है, जान की कीमत 25 हजार रुपये से तो बहुत ज्यादा है.

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इससे पहले हुए क्रैश टेस्ट में मारुति स्विफ्ट भी फेल हो चुकी है

कब सुधरेंगी देश की कार कंपनियां:

भारतीय कार कंपनियों ने इस क्रैश टेस्ट को करने वाली संस्था GNCAP की वैधता पर ही सवाल उठा दिए और यहां तक कह दिया कि ये संस्था सिर्फ एक एनजीओ है जो ऐसे टेस्ट अपने व्यवसायिक हित के लिए करती है. कंपनियों का आरोप है कि GNCAP का मकसद ऐसे टेस्ट के बहाने एयरबैग की बिक्री बढ़ाना है.

लेकिन इन कंपनियों के दावों के उलट ऐसी कई रिपोर्ट्स हैं जो बताती हैं कि एयरबैग के प्रयोग से कार ऐक्सिडेंट से होने वाली मौतों के आकड़ों में 35 फीसदी तक की कमी आती है. यानी GNPCA पर आरोप लगाने और बहाने बनाने के बजाय इन कंपनियों को अपनी कारों के सुरक्षा उपायों को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए.

इसके लिए न सिर्फ कार कंपनियां बल्कि सरकार का रवैया भी सवाल खड़े करता है. दुनिया के ज्यादातर देशों में अपना नेशनल कार असेसमेंट प्रोग्राम है. लेकिन भारत में सुरक्षा उपायों के लिए कोई कानून नहीं है जो इन कंपनियों को इन्हें अपनाने के लिए बाध्य कर सके. अब काफी देर बाद सरकार BNPCA (भारत नेशनल कार असेसमेंट प्रोग्राम) बनाने जा रही है. सरकार ने सभी कार कंपनियों की नई कारों को अक्टूबर 2017 से BNPCA टेस्ट पास करना अनिवार्य कर दिया है. यानी तब सभी कंपनियों के नए मॉडल्स में एयरबैग लगाना अनिवार्य होगा.

क्या है एयरबैग और एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस):

एयरबैग एक ऐसा उपकरण है जिसे कार ड्राइव कर रहे व्यक्ति और गाड़ी में बैठे पैसेंजर्स की सुविधा के लिए बनाई गई है. इसका पेटेंट द्वितीय विश्व युद्ध के समय कराया गया था. 80 के दशक में इसे सबसे पहले कारों के लिए प्रयोग किया गया. 1998 में अमेरिका में सभी कारों में एयरबैग्स लगाना अनिवार्य कर दिया गया.

एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम कार को आपात स्थिति में सुरक्षित तरीके से रोकने के काम आता है. यानी ऐक्सिडेंट जैसी आपात स्थिति में इसका प्रयोग करके ड्राइवर गाड़ी के पहियों को अनियंत्रित तरीके से फिसलने से बचा सकता है. इसलिए एयरबैग और एबीएस का प्रयोग ड्राइवर पैसेंजर्स की सुरक्षा उपायों के लिए जरूरी माना जाता है.

भारतीय कार कंपनियां कब कार खरीदने वाले लोगों को अपनी प्रॉफिट बढ़ाने का जरिया समझना छोड़कर उनकी सुरक्षा और जान की परवाह करेंगी और कब सरकार इस मामले में गंभीर होगी, देखना बाकी है.

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