लैंडर विक्रम पर ISRO चीफ की बातें उम्मीद जगाती हैं, नाउम्मीदी भी
चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम को लेकर रहस्य छह दिन बाद भी बना हुआ है. लोगों में तमाम तरह की जिज्ञासाएं हैं, लेकिन इसरो के भीतर का माहौल कई सवालों के जवाब दे देता है.
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विज्ञान में कुछ चमत्कार नहीं होता सिर्फ प्रयोग होते हैं. चंद्रयान-2 भी एक प्रयोग था, जिससे इसरो की कई समस्याएं सुलझ चुकी है तो कई सुलझने वाली है. चंद्रयान-2 से लैंडर का संपर्क भले ही टूट गया हो लेकिन ‘विक्रम’ से लोगों की उम्मीद अभी भी जुड़ी हुई है. मामला भले विज्ञान का है, लेकिन लोग किसी चमत्कार की आस लगाए हैं. हमें अपने वैज्ञानिकों पर इतना भरोसा है कि हम ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि वो भी थोड़ा असफल हो सकते हैं. लेकिन इन सब के बीच हकीकत यही है कि जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं, नाउम्मीदी का अंधेरा बढ़ रहा है.
लैंडर की उम्र पृथ्वी के हिसाब से मात्र 14 दिन ही है. यानी उसकी आधी उम्र गुजर चुकी है. लिहाजा ‘विक्रम’ से कितना उम्मीद कर सकते हैं? आगे क्या होनेवाला है? इसरो के बाकी मिशन पर इसका क्या असर होगा? इन सब मुद्दों पर इसरो चीफ के सिवन से इंडिया टुडे मैगजीन ने बात की. जिसका लब्बोलुआब यही है कि लैंडर विक्रम की चुप्पी लोगों की भावना से जुड़ी है, जबकि इसरो के लिए यह सबक के समान है. इसरो इस मिशन की कामयाबी और नाकामी वाली बातों को लेकर काफी हद तक नतीजे पर पहुंच चुका है, जबकि कुछ विश्लेषण करने अभी बाकी है.
डॉ. सिवन की बातों को समझते हुए यह अंदाजा लगाने की कोशिश करते हैं कि चंद्रयान-2 मिशन के साथ जो कुछ हुआ, उसके मायने क्या हैं.
लैंडर विक्रम की तस्वीर का कितना महत्व है?
कुछ खास महत्व नहीं है. क्योंकि उससे संपर्क नहीं हो पाया है. यह स्पष्ट है कि लैंडर विक्रम सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर सका है. ऑर्बिटर द्वारा ली गयी तस्वीर भी पूरी तरह साफ नहीं है. लैंडर की मौजूदगी का पता भी सिर्फ दो तस्वीरों के बीच के अंतर से चल पाया है. विक्रम के लैंड करने से पहले चांद के उस सतह की तस्वीर और लैंडिंग के बाद की तस्वीर के विश्लेषण से यह पता चला कि वहां कोई वस्तु है. वह कोई नया क्रेटर नहीं है, इसलिए लैंडर ही है.
लैंडर विक्रम से कोई कम्युनिकेशन हो न हो, इसरो ने सबक ले लिया है.
चंद्रयान-2: कितना सफल, कितना असफल?
यह सही है कि लैंडर का सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाया, पर ये भी सही है कि मिशन करीब 95 फीसदी तक सफल है. क्योंकि मिशन का मुख्य अंग ऑर्बिटर पूरी सफलता के साथ अपना काम कर रहा है. जिसकी उम्र एक साल है. वो सात साल तक भी काम कर सकता है. इसके अलावा चंद्रयान-2 में कई नए टेक्नोलॉजी लगाई गई है. अत्याधुनिक इंजन, सेंसर, नेविगेशन सिस्टम, हाई रेजोल्यूशन कैमरे, सभी सही तरीके से काम कर रहे हैं. चंद्रमा से जुड़ी कई गुत्थियां सुलझने की उम्मीद है. वहां मौजूद पानी और खनिज की गुत्थी हो या चांद की सतह पर होने वाले बदलाव हों. ये जानकारियां अगले मिशनों में भी काम आएंगी.
चंद्रयान-3 मिशन पर क्या असर होगा?
चंद्रयान-2 मिशन में आई खामियों का विश्लेषण करके उसे दूर नहीं कर लिया जाता, तब तक चंद्रयान-3 मिशन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. इसके अलावा चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से मिलने वाली जानकारियों से जो निष्कर्ष निकलेगा, उसी आधार पर फिर चंद्रयान-3 की योजना बनेगी. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि चंद्रयान-3 मिशन भले ही ना टले लेकिन उसमें देरी हो सकती है.
इसरो के अन्य मिशन पर भी कोई असर होगा?
इसरो अपने बाकी के मिशन पर योजना के तहत काम कर रहा है. जिसमें मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान भी शामिल है. यह एक जटिल मिशन जरूर है, पर इसरो को विश्वास है कि वो इसे समय पर पूरा करेंगे.
चंद्रयान-2 से लगे झटके से क्या सीख मिली?
विज्ञान में सफलता-असफलता जैसी कोई चीज नहीं होती है. विज्ञान एक प्रयोग है, जो हमेशा चलते रहता है. बल्कि इस झटके से कुछ वैज्ञानिक जटिलताओं को सुलझाने में और मदद ही मिलेगी. जिससे आज की मायूसी कल की खुशी में बदल सकती है.
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