जंगल में जानवरों की सबसे बड़ी दोस्त बन गई टेक्नोलॉजी
वन्यजीव संरक्षण में आज जिस तरह तकनीक ने योगदान दिया है कहना गलत नहीं है कि, आने वाले वक़्त में जानवरों और पर्यावरण दोनों का भविष्य अच्छा है.
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बढ़ती आबादी, शिकार और मनुष्यों की जंगल में घुसपैठ ये वो तीन प्रमुख कारण हैं जिन्होंने वन्य जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. मनुष्य जिस तेजी से जंगल काट रहा है और उनमें अपने घर बना रहा है, आज आलम ये है कि अखबार और टेलीविजन उन ख़बरों से भरे हैं जिनमें हम 'ह्यूमन-एनिमल कंफ्लिक्ट की बात सुनते हैं. आज हमारे बीच ऐसी ख़बरें आम हो गई हैं जब हमारे सुनने में आता है कि किसी अमुक जगह पर जंगली जानवर ने इंसान को अपना निवाला बना लिया. इंसान और जानवर के बीच का ये संघर्ष कितना डरावना है, यदि इस बात को समझना हो तो महाराष्ट्र के यवतमाल में मारी गई बाघिन अवनी से लेकर रणथम्भौर के बाघ उस्ताद तक. हमारे पास कई ऐसे उदाहरण है जो ये बता देते हैं कि जैसे-जैसे जंगल में हमारी पहुंच बढ़ रही है उसका जितना खतरा हमें है. उतना ही जानवरों को भी हैं.
आज वन्यजीव संरक्षण में तकनीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है
आज जानवरों के बढ़ते शिकार ने पर्यावरणविदों को गहरी चिंता में डाल दिया है. जंगल में जानवरों का बचाव और संरक्षण कैसे हो इसके लिए लगातार नई तकनीक का सहारा लिया जा रहा है और जंगली जानवरों की संख्या को ट्रैक किया जा रहा है. नई तकनीक वन्य जीव संरक्षण में कैसे कारगर है यदि हमें इस बात का अवलोकन करना हो तो हमें दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क का रुख करना होगा.
2015 के आस पास क्रूगर (दक्षिण अफ्रीका) में गैंडों की संख्या बहुत तेजी से घट रही थी. इस खबर ने वन्यजीवों के संरक्षण में लगे लोगों को बहुत परेशान किया और उन्होंने तकनीक का सहारा लेकर इस चुनौती पर विजय हासिल करने की ठानी. इस मुहीम के लिए ड्रोन से लेकर कैमरा ट्रैप, थर्मल इमेजिंग, बॉयोमीट्रिक्स तक कई चीजों का सहारा लिया गया. परिणाम ये निकला कि शिकार में कमी आई और आज गैंडों की एक ठीक ठाक संख्या क्रूगर में वास करती है.
चूंकि संरक्षण में लगे लोगों का ये प्लान कामयाब हुआ था इसलिए इसे केन्या, ज़ाम्बिया और मोजांबिक के जंगलों में भी शुरू किया गया और परिणाम सकारात्मक आए. तकनीक के बल पर न सिर्फ आज जंगलों में वास करने वाले जानवरों की सटीक संख्या का अवलोकन किया जा सकता है. बल्कि उनकी बीमारी, खानपान, प्रजनन, प्रवास इत्यादि का भी आसानी से पता लगाया जा सकता है.
आज हमारे पास ऐसे तमाम उपकरण हैं जिनसे जंगल में जानवरों के मूवमेंट का पता लगाया जा सकता है
तकनीक वन्यजीव संरक्षण में कितनी सहायक है इसे हम एक अन्य उदाहरण से समझ सकते हैं. इसी साल जून में खबर मिली कि कम्बोडिया में पैंगोलिन नाम का लुप्तप्राय जीव लगातार पोचर्स के निशाने पर है. इस खबर के बाद तकनीक की मदद ली गई और जंगल में ट्रेकिंग डिवाइस और कैमरा ट्रैप लगाकर लुप्तप्राय जानवर की मूवमेंट पर नजर रखी गई. जंगल में जो भी संदिग्ध दिखाई देता उसपर जरूरी एक्शन लिया गया. इस मुहिम का नतीजा ये निकला की पैंगोलिन के शिकार में आश्चर्यजनक रूप से कमी देखने को मिली और इनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सका.
Some experts believe tracking human beings instead of animals could help resolve India's human-wildlife conflict.More - https://t.co/IkG3PPFsTX???? SuperJew/Wikimedia Commons#HelpWildlife #WildlifeIndia pic.twitter.com/efQx5lO6HY
— The Weather Channel India (@weatherindia) November 27, 2018
ध्यान रहे कि आज किसी भी तरह की अनहोनी से बचने के लिए लगातार वन क्षेत्रों में तकनीक का इस्तेमाल तो बढ़ा है मगर इसके कुछ दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. भले ही तकनीक का उद्देश्य जानवरों को बचाना हो मगर कहीं न कहीं आज तकनीक जानवरों को डराने का काम भी करती नजर आ रही है.
The ugly truth behind the viral video of a baby bear struggling to reach his mum on a clifftop. pic.twitter.com/KCcxETR19O
— Al Jazeera English (@AJEnglish) November 8, 2018
उपरोक्त वीडियो को भी तकनीक का सहारा लेकर ड्रोन कैमरे से शूट किया गया है और यदि इसमें मादा भालू के व्यवहार को देखें तो सामने आता है कि ड्रोन से मादा भालू काफी डरी हुई है और जाहिर तौर पर प्रतिक्रिया देते हुए नजर आ रही है.
बहरहाल, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है तकनीक से जंगल का नुक्सान हुआ है. बात भारत की हो तो यहां तकनीक ने जो किया उसके लिए वन्य जीव संरक्षकों को ताउम्र उसका एहसानमंद रहना चाहिए. तकनीक ने भारत में क्या कमाल किया ? इस बात को समझने के लिए हमें मध्यप्रदेश के पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का रुख करना चाहिए. बात 2009 के आस पास की है. पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में शिकारियों ने कुछ इस ढंग से उत्पात मचाया कि बाघों की संख्या तेजी से घटी और हालात कुछ ऐसे हुए कि वहां एक भी बाघ नहीं बचा. इस घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार की बहुत किरकिरी हुई और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों के संरक्षण में लगी संस्थाओं के आगे शर्मिंदा होना पड़ा.
Use of technology in wildlife conservation isn't new to India, trackers helped revive the #tiger pollution in Panna National Park in 2009. ????#WildlifeIndia #BigTechhttps://t.co/IkG3PPFsTX
— The Weather Channel India (@weatherindia) November 27, 2018
इस घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने अपने को जल्द ही संभाला और कान्हा और कान्हा और बांधवगढ़ से बाघ मंगवाए और पन्ना में डाले. ये तकनीक का चमत्कार ही है कि आज पन्ना में 20 वयस्क बाघ और कई शावक हैं.
"Wildlife conservationists then introduced #tigers from neighbouring parks like #Kanha and #Bandhavgarh into the park and put trackers on the tigers. Today, #Panna has over 20 adult tigers and several cubs, making it one of India’s best conservation #success stories."
— The Weather Channel India (@weatherindia) November 28, 2018
बहरहाल अब सवाल ये उठता है कि वन्यजीव संरक्षण के मद्देनजर अब टेक्नोलॉजी का भविष्य क्या है? तो ऐसे में ये बताना बेहद जरूरी है कि अब वक़्त नेक्स्ट जेन टेक्नोलॉजी का है. ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें इंसानों का सामना जानवरों से कम होगा और परिणाम भी कहीं बेहतर होंगे. चूंकि WWF द्वारा सुमात्रा में गूगल अर्थ इमेजिंग के जरिये बाघों को बचाया जा चुका है.
अतः माना यही जा रहा है कि आगे भी इसी को और एडवांस किया जाएगा और इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जाएगा. वही बात अगर ड्रोन की हो तो उसे हमेशा ही एरियल रिव्यु के लिए बेहतर माना गया है अब क्योंकि बहुत से जानवर शर्मीले होते हैं तो माना जा रहा है कि भविष्य थर्मल इमेजिंग का है जो जानवरों के व्यवहार के हिसाब से बिल्कुल सही है.
अंत में बस इतना ही कि, जो लोग आज जंगल में तकनीक के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं उन्हें जान लेना चाहिए कि यदि तकनीक नहीं होगी तो आने वाले वक़्त में हम जानवरों को केवल किताबों में ही देख पाएंगे जो न हमारे लिए अच्छा है और न ही हमारे इको सिस्टम के लिए.
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