सॉफ्टवेयर के सहारे मच्छरों से लड़ाई!
इसके जरिए शहर के वैसे इलाकों की पहचान की जाएगी जहां मच्छर सबसे ज्यादा पैदा होते हैं. इसके लिए निगम के कर्मचारियों को विभिन्न इलाकों का दौरा करना पड़ेगा. उनके पास एक टैब होगी जो GPS तकनीक से लैस होगी.
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बात थोड़ी अजीब है, लेकिन दिलचस्प है. डिजिटल इंडिया के नारे के बीच मैंगलोर ने तकनीक के सहारे मच्छरों से निपटने का उपाय खोज लिया है. भाई, सब कुछ डिजिटल हो ही रहा है तो मच्छर मारने के लिए ताली बजा-बजाकर मेहनत क्यों करना. यह पहली बार है जब देश के किसी शहर में सॉफ्टवेयर के जरिए मच्छरों को भगाने का काम शुरू किया जाएगा. कहीं, यही तो स्मार्ट सिटी की निशानी नहीं जहां मच्छरों को सॉफ्टवेयर भगाएंगे. खैर छोड़िए..जाने दीजिए इन बातों को.
बहरहाल, इस अनूठे सॉफ्टवेयर को कुछ लोगों की निजी पहल की मदद से बनाया गया है और नगर निगम को इसके लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ा. अगस्त के दूसरे हफ्ते से इस सॉफ्टवेयर के जरिए मच्छर भगाओ अभियान की शुरुआत भी हो जाएगी.
कैसे काम करता है यह सॉफ्टवेयर
इसके जरिए शहर के वैसे इलाकों की पहचान की जाएगी जहां मच्छर सबसे ज्यादा पैदा होते हैं. इसके लिए निगम के कर्मचारियों को विभिन्न इलाकों का दौरा करना पड़ेगा. उनके पास एक टैब होगी जो GPS तकनीक से लैस होगी. मलेरिया के मामलों और किसी इलाके में मच्छरों की तादाद से जुड़ी जानकारी हर क्षेत्र के हिसाब से उस टैब में फीड की जाएगी. खासकर, मलेरिया के मामले जब किसी इलाके में सामने आएंगे तो उससे जुड़े सारे आंकड़ें भी मुख्य सर्वर से जुड़ जाएंगे.
इन क्षेत्रों का दौरा करने वाले कर्मचारी शहर के तमाम वैसी जगहों के फोटोग्राफ भी ले सकेंगे जहां मच्छरों के पनपने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है. इस प्रकार जल्द ही एक पूरा खाका तैयार हो जाएगा. इस सॉफ्टवेयर के आकड़ों से यह मालूम करना आसान होगा कि किस इलाके में मच्छरों से फैलने वाली बीमारी ज्यादा हो रही है और कहां सबसे पहले एक्शन लेना है.
बस, बन गई बात. निगम इन आंकड़ों को देखते हुए अपने एक्शन प्लान की रूपरेखा तैयार करेगा. वैसे भी पूरे भारत में सामने आने वाले मलेरिया के मामलों का एक फीसदी कर्नाटक में ही देखने को मिलता है. इसलिए नई पहल की सराहना तो होनी ही चाहिए. देखने वाली बात होगी कि इसके नतीजे कितने सकारात्मक रहते हैं.
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