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Updated: 21 अगस्त, 2017 04:59 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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सोशल मीडिया पर क्या वायरल हो जाए और उसके क्या परिणाम निकलें ये बता पाना थोड़ा मुश्किल है. ये वो जरिया है जिससे एक छोटा सा एक्ट भी कोई ट्रेंड बन सकता है. आइस बकेट चैलेंज जैसे कई ट्रेंड्स सोशल मीडिया पर आ चुके हैं, आए दिन न जाने कितने ही वायरल वीडियो दिखते हैं. अब खुद ही सोचिए अगर ऐसे में कोई रेसिस्ट वीडियो सामने आए तो क्या होगा?

होगा वही जो किसी सेलिब्रिटी की तस्वीर के साथ होता है, होगा वही जो किसी नेता के भाषण के साथ होता है, होगा वही जो किसी भी वायरल वीडियो के साथ होता है.... लोग उसपर अपनी सोच और समझ के मुताबिक कमेंट्स करने लगेगें और अपना-अपना साइड ले लेंगे. अब देखिए एक और वायरल वीडियो सामने आया है जिसने फिर से इंटरनेट पर एक बहस छेड़ दी है.

वीडियो पोस्ट किया है चुक्वुमेका अफिगो नाम के एक अफ्रीकी इंसान ने. इस वीडियो में तकनीक का एक अनोखा रूप दिखाई दिया है. हुआ ये है कि वीडियो में एक सोप डिस्पेंसर है जो मोशन सेंसर की मदद से काम करता है. ये सोप डिस्पेंसर किसी गोरे इंसान के लिए तो साबुन निकाल देता है और जहां काला इंसान अपना हाथ आगे बढ़ाता है वहां ये सोप डिस्पेंसर काम नहीं करता. यानि कि रंगभेद सिर्फ लोगों के आचरण में ही नहीं बल्कि तकनीक में भी आ गया.

कुछ भी कहने से पहले ये वीडियो देख लीजिए...

इस वीडियो पर कई तरह के कमेंट्स आए हैं. कुछ लोग इसे सोसाइटी की समस्या समझ रहे हैं तो कुछ के हिसाब से इससे सोसाइटी का कोई लेना देना ही नहीं है. ये कोई तकनीकी समस्या है.

सोशल मीडिया, ट्विटरर, कमेंट्स, वायरल वीडियो

अब जरा इस समस्या पर गौर करते हैं. कई बार ऐसा होता है कि मोशन सेंसर काम नहीं करता. ये पूरी तरह से वाजिब है, लेकिन अक्सर ऐसा काले लोगों के साथ क्यों होता है? 2015 में भी ऐसा ही एक वीडियो सामने आया था जिसमें अटलांटा के मेरियट होटल में एक डार्क स्किन वाले इंसान के लिए मोशन सेंसर काम नहीं किया था. उस समय भी ये बहस का विषय बना था. बाथरूम में मौजूद 10 मशीनों में से एक भी उस इंसान के लिए काम नहीं की थी, लेकिन वहीं उसके दोस्त के लिए सभी ने काम किया था.

तो क्या वाकई तकनीक को इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है जो खुद ही रंगभेदी है. इंसानो का तो ठीक है, लेकिन अब तो मशीने भी गोरे-काले का भेद करने लगी. इससे पहले की आप किसी नतीजे पर पहुंचे एक बात आपको बता दूं कि बाथरूम में मौजूद सोप डिस्पेंसर में मोशन सेंसर होता है न कि फेशियल रिकॉग्निशन सेंसर यानि की ये न ही रंग देख सकता है न चेहरा फिर आखिर क्यों मोशन सेंसर ने भी हाथ के मोशन को नहीं पहचाना?

क्या हो सकती है वजह?

इसका एक तर्क ये भी हो सकता है कि वो सोप डिस्पेंसर इंफ्रारेड तकनीक का इस्तेमाल करता है. ये एक ट्रांसपेरेंट की रौशनी किसी के हाथ तक भेजता है और जैसे ही लाइट रिफ्लेक्ट होती है ये सेंसर एक्टिवेट हो जाता है. अब साइंस कहती है कि काला रंग रौशनी को सोख लेता है. जितनी कम लाइट रिफ्लेक्ट होगी उतनी ही कम सेंसर के एक्टिवेट होने की उम्मीद होगी. किसी का हाथ इतना काला नहीं होता कि मोशन सेंसर द्वारा भेजी गई पूरी रौशनी को सोख ले, लेकिन कुछ हद तक गोरे लोगों की तुलना में ये कम रौशनी रिफ्लेक्ट करता है. इसलिए हम यहां गलती उस बाथरूम की मशीन को दे सकते हैं और ऐसा हो सकता है किसी एक कंपनी के प्रोडक्ट में ये गड़बड़ी आए और दूसरी के मामले में ये सुधर जाए.  

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ये पहली बार नहीं....

ये पहली बार नहीं है कि किसी तकनीक ने इस तरह का रंगभेद किया हो. गूगल का फोटो एप लॉन्च होते ही इसी तरह की एक बहस छिड़ गई थी. गूगल फोटो एप जो आपकी फोटोज का एलबम बना देता है और उसे कैटेगरी के हिसाब से विभाजित कर देता है और नाम देता है विवादों में लॉन्च के दूसरे दिन ही घिर गया था. उस समय एक नीग्रो जोड़े की फोटोज को गूगल एप ने गोरिल्ला वाले एलबम में डाल दिया था. इसके अलावा, फेस रिकॉग्निशन भी तकनीक भी कई बार काले लोगों पर काम नहीं करती.

अब बहस तो छिड़ गई है, इंटरनेट के सिपाही भी आगे आ गए हैं, अब तो उम्मीद यही की जा सकती है कि इस तकनीक को जल्द से जल्द सुधार दिया जाए और रंगभेदी मसलों से जल्दी मुक्ति मिले. 

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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