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Updated: 25 जून, 2018 04:23 PM
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मॉनसून के वक्त जितना खतरा रोड और गड्ढों से होता है उतना ही खतरा होता है गाड़ी के खराब हो जाने का. गाड़ी के इंजन में पानी न चला जाए, कहीं तेज़ बारिश में वाइपर काम करना न बंद कर दे, कहीं पीछे से आती हुई गाड़ी ठोक न दे. ये सारी उलझनें बारिश के समय उन लोगों को परेशान करती हैं जिनके पास गाड़ी है और अक्सर आना जाना होता है. कुछ छोटे उपाय उन गाड़ियों की सुरक्षा कर सकते हैं.

1. कार के लिए छाता..

अब देखिए ये है तो थोड़ा महंगा पर आपकी कार से ज्यादा सस्ता है और इसका उपयोग कर कार को सिर्फ एक ही नहीं कई चीजों से बचाया जा सकता है. सिर्फ बारिश ही नहीं बल्कि, ईंट पत्थर आदि से भी बचाएगा, धूप में कार का तापमान कम रखेगा. कार के लिए छाते 7 हज़ार से लेकर ऑटोमैटिक वाले 20 हज़ार तक भारत में उपलब्ध हैं.

2. मिरर गार्ड..

बारिश में मिरर गार्ड की जरूरत ज्यादा पड़ती है. कारण? बारिश का पानी कार मिरर को देखने लायक नहीं छोड़ता. ऐसे में मिरर गार्ड काम आ सकता है. ये 250 से लेकर 500 के बीच आसानी से मिल जाएगा. ये रेन शील्ड के नाम से मिलेगा और आसानी से आपकी कार में फिट हो सकता है.

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3. ग्लास ट्रीटमेंट..

ये उन लोगों के लिए है जो ज्यादा बारिश वाले इलाके में रहते हैं. ये कोई गैजेट या कोई कार का पार्ट नहीं बल्कि एक तरह का ग्लास ट्रीटमेंट रेन रिपेलेंट है. इसके लिए रेन वाइपर का इस्तेमाल कर सकते हैं. पर फिर भी ये उतना कारगर नहीं होता. इसका इलाज है ग्लास ट्रीटमेंट. ये एक ऐसा रिपेलेंट होता है जिसे कार के शीशे पर लगा दिया जाता है जिससे पानी शीशे पर टिक नहीं पाता. इतना ही नहीं इसे लगाने के बाद ग्लास पर धूल, मिट्टी, कीचड़ या फिर ओस भी नहीं जमती.

4. मॉनसून पॉलिसी..

चेन्नई की बाढ़ हो या मॉनसून की बारिश गाड़ियों के लिए काफी नुकसानदेह होती है. पिछले साल मॉनसून के कारण जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने करीब 3000 करोड़ के क्लेम सुलझाए थे. ये सिर्फ चेन्नई के क्लेम थे.

ये क्लेम आम इंश्योरेंस में नहीं मिलेंगे बल्कि ये Hydrostatic cover के जरिए ही पूरे हो पाए. ये कवर उन चीज़ों के लिए है जब इंजन में किसी कारण से पानी चला जाता है और कार का खर्च निकल नहीं पाता.

ये बेसिक इंश्योरेंस प्लान में नहीं कवर होते हैं. हाइड्रोस्टेटिक इंश्योरेंस या तो अपने प्लान में जुड़वाना होता है या फिर अलग से लेना होता है. एक तरह से देखें तो इंजन में पानी चले जाने पर कार में 20 हज़ार से 1 लाख तक का खर्च होता है जो इंश्योरेंस प्रीमियम से काफी ज्यादा होता है.

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