भारत की पहली Pod Taxi के सामने हैं ये सारी मुश्किलें..
पिछले साल जापान की तर्ज पर भारत में पॉड टैक्सी चलाने की घोषणा की गई थी. दिल्ली-गुरुग्राम पहला पायलट प्रोजेक्ट होगा जहां 12.30 किलोमीटर के दायरे में ये टैक्सी चलेगी.
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यूनियन मिनिस्टर नितिन गडकरी ने हाल ही में ये कहा है कि भारत में डेढ़ महीने के अंदर पॉड टैक्सी का प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा. ये प्रोजेक्ट गुरुग्राम से शुरू होगा और ये धौला कुआं, दिल्ली और मनेसर को जोड़ेगा. मेट्रिनो पॉड टैक्सी प्रोजेक्ट के बारे में पिछले साल से ही बात चल रही है और खास तौर पर नितिन गडकरी इस प्रोजेक्ट से काफी उम्मीदें लगाकर बैठे हैं.
ये प्रोजेक्ट 4000 करोड़ का है और इसे पर्सनल रैपिड ट्रांसिट (PRT) भी कहा जाएगा. ये नितिन गडकरी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. पिछले साल जापान की तर्ज पर इस तरह की टैक्सी चलाने की घोषणा की गई थी. दिल्ली-गुरुग्राम पहला पायलट प्रोजेक्ट होगा जहां 12.30 किलोमीटर के दायरे में ये टैक्सी चलेगी.
क्या है पॉड टैक्सी?
पॉड टैक्सी 4 से 6 सीटर ऑटोमेटिक गाड़ी है, जिसे बिना ड्राइवर और कंडक्टर के चलाया जाता है. गुरुग्राम में ये एक तरह से ऑटो रिक्शा का काम करेगी. इसमें सफर करते हुए न तो रेड सिग्नल मिलेगा और न ही ट्रैफिक जाम. यह चार्जेबल बैटरी से चलती है यानी पेट्रोल-डीजल की जरूरत नहीं होगी. आमतौर पर यह दो तरह की होती है- ट्रैक रूट पर चलने वाली और केबिल के सहारे हैंगिग पॉड. टैक्सी पूरी तरह से कम्प्यूटर सिस्टम से चलती है. इसमें बैठने के बाद मुसाफिरों को ‘टचस्क्रीन’ पर उस जगह का नाम टाइप करना होता है जहां उन्हें जाना है. तय स्टेशन आते ही टैक्सी रुकती है और गेट अपने आप खुल जाते हैं.
सुनने और देखने में तो ये प्रोजेक्ट काफी अच्छा लग रहा है और देश के विकास के लिए एक और सीढ़ी की तरह लगता है, लेकिन क्या ये वाकई इतना किफायती है? क्या बुलेट ट्रेन की तरह जापान की देखादेखी पॉड टैक्सी भारत में लाना सही फैसला होगा? इन सवालों के जवाब तो प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद ही मिलेंगे, लेकिन फिलहाल सरकार के सामने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के रास्ते में कुछ अहम दिक्कतें हैं.
1. इन्फ्रास्ट्रक्चर...
सरकार को इस प्रोजेक्ट के लिए इंफ्रास्ट्रक्टर बहुत बेहतरीन बनाना होगा. दिल्ली एनसीआर में वैसे ही दुनिया भर की कंपनियां कंस्ट्रक्शन कर रही हैं, साथ ही एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले अगर मौजूदा सेवाओं को ऐसे दुरुस्त कर दिया जाए जिससे ट्रैफिक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर कोई असर न पड़े तो ये ज्यादा बेहतर होगा. भारत जहां हर गली हर चौराहे पर बिजली के खंबे और तार हैं, दिल्ली जहां कई मंजिला इमारतें और मेट्रो लाइन है वहां पॉड टैक्सी का इंफ्रास्ट्रक्चर काफी मेहनत लेगा. साथ ही अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और रोड पर लगने वाले जाम को खत्म करने से पहले इसे बनाने की सोची जा रही है तो यकीनन कंस्ट्रक्शन के समय लोगों को बहुत दिक्कत होगी.
2. भारत पर कर्ज...
भारत पर 2016 तक 1.6 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 7 लाख 57 करोड़ रुपए (₹ 75,780,382,031,975) का कर्ज है. इस कर्ज के साथ भारत में अभी बुलेट ट्रेन जैसे महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है. ऐसे में मौजूदा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेवाएं बेहतर बनाने के साथ-साथ पॉड टैक्सी प्रोजेक्ट का खर्च काफी बढ़ सकता है.
3. लोगों की जागरुकता..
पॉड टैक्सी प्रोजेक्ट को लोगों के लिए बनाना और सोचना तो बहुत अच्छा है, लेकिन इसे वाकई में काफी भरोसेमंद, किफायती और सस्ता होना पड़ेगा. अगर पॉड टैक्सी बहुत ज्यादा महंगी हुई तो लोग शायद इसे इस्तेमाल करने से कतराएं. यकीनन ये समय बचाएगी और लोगों के लिए ट्रैवल करना ज्यादा आसान हो जाएगा, लेकिन फिर भी महंगाई का फैक्टर भारत में हमेशा सबसे अहम रहेगा.
इसके अलावा, भी कई छोटी-बड़ी समस्याएं आएंगी जो पब्लिक और सरकार दोनों के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. सरकार का कहना है कि इसका किराया मेट्रो की तरह ही होगा, लेकिन इसकी असलियत तो तभी मालूम होगी जब ये लॉन्च होगी. उम्मीद है कि जिस तरह से बुलेट ट्रेन को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा उस तरह से पॉड टैक्सी के साथ न हो.
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