कीमत को लेकर फिक्रमंद रहने वालों ने लखटकिया TATA NANO को रिजेक्ट क्यों किया
टाटा नैनो अब लगभग बंद होने की कगार पर पहुंच गई है. पर ऐसा क्यों? आखिर क्यों भारत की एक सस्ती कार किफायती नहीं बन पाई और क्यों मारुति जैसी सफलता को नहीं छू पाई?
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अपडेट: जून में टाटा नैनो की मात्र एक यूनिट बनाई गई. नौनो कार का प्रोडक्शन अब जल्द बंद हो सकता है, फिलहाल अब सिर्फ कस्टमर की डिमांड पर ही बनाई जा रही है नैनो.
टाटा नैनो यानी लखटकिया कार अपनी अंतिम सांसे गिन रही है. नैनो की प्रोडक्शन और सेल्स वॉल्यूम काफी गिर गई है. ये अब ऐसी कगार पर आ गई है कि सानंद प्लांट में एक दिन में सिर्फ दो कारें ही बन रही हैं. पिछले एक साल में नैनो की प्रोडक्शन और डिमांड दोनों ही काफी बुरी तरह से गिरी है. अक्टूबर में ये आंकड़ा 2 कार प्रति दिन प्रोडक्शन रेट पर पहुंच गया था.
खबरों की मानें तो अब टाटा नैनो के लिए ऑर्डर नहीं आ रहे हैं और डीलर्स भी इसपर काम नहीं कर रहे हैं. टाटा मोटर्स के लगभग 630 डीलर्स हैं पूरे देश में और ये टाटा के नए मॉडल्स जैसे हेक्सा, नेक्सन और टिएगो पर भरोसा कर रहे हैं. शो रूम में अब नैनो दिखना बंद हो गई है और ये बात टाटा की लखटकिया को उसकी मौत की तरफ ढकेल रही है.
आंकड़ों की बात करें तो नवंबर 2016 से लगातार टाटा नैनो का प्रोडक्शन गिर रहा है. सबसे ज्यादा नैनो दिसंबर 2016 में बनाई गई थीं जहां 1004 यूनिट प्रोडक्शन हुआ था. उसके अगले ही महीने यानी जनवरी 2017 में सिर्फ 391 यूनिट बनाए गए. मार्च में आंकड़े और कम हो गए जहां ये 174 यूनिट या 6 कारें प्रति दिन पर गिर गए. अप्रैल और मई में आंकड़े थोड़े ठीक हुए और 350 और 355 कारें महीने में बनाई गईं, लेकिन उसके बाद से लगातार कारें कम ही होती गईं और आलम ये रहा कि अक्टूबर तक ये संख्या दो कार प्रति दिन पर चली गई और सिर्फ 57 कारें एक महीने में बनाई गईं.
2018 सबसे खराब...
अगर बात मार्च 2018 की करें तो पिछले महीने नैनो ने एक नया कीर्तिमान गढ़ लिया है. बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक टाटा ने मार्च 2018 में सिर्फ 29 नैनो कारें बेचीं. एक साल में नैनो की सेल्स 71 प्रतिशत गिर चुकी है जो 1493 यूनिट (2016-17 फाइनेंशियल साल) में आकर फंस गई है. 2011-12 में नैनो की लोकप्रियता अपने चरम पर थी और सालाना 74,527 यूनिट्स की सेल दर्ज की गई थी. यहीं प्रोडक्श पूरे साल का सिर्फ 1700 रहा.
पर सबसे अहम बात ये है कि आखिर रतन टाटा का सपना इतना अधूरा कैसे रह गया? आखिर क्यों भारत की एक सस्ती कार किफायती नहीं बन पाई और क्यों मारुति जैसी सफलता को नहीं छू पाई? जिस देश में हर आदमी का सपना होता है कार खरीदना, वहां इतनी सस्ती कार क्यों नहीं बिकी ?
क्या रहे कारण?
1. बनने से पहले ही विवाद..
नैनो की घोषणा 2008 में हुई थी और इसके प्रोडक्शन प्लांट पर पहले से ही संकट के बादल मंडराने लगे थे. 1 लाख रुपए की कार ने हर स्टेज पर विवाद ही झेले. सबसे पहले टाटा मोटर्स को सिंगुर (पश्चिम बंगाल) से किसानों के विरोध के कारण अपना प्लांट गुजरात के सानंद में शिफ्ट करना पड़ा. हालांकि, कंपनी ने नए प्लांट से कार का प्रोडक्शन शउरू कर लिया, लेकिन फिर भी एक विवाद इसके साथ जुड़ता गया.
2. सुरक्षित कार न होने की छवि...
टाटा नैनो के साथ एक ये बात भी जुड़ गई कि ये सुरक्षित कार नहीं है और इस कार में आग लगती है. शुरुआत में ऐसी कई तस्वीरें सामने आईं जिसमें ये दिखाया गया कि नैनो में बीच सड़क पर आग लग गई है. इंजन बंद हो जाने की समस्या, आग लग जाने की समस्या, सुरक्षित न होने की छवि नैनो से कभी अलग नहीं हो पाई.
3. 'सस्ती' कार की छवि..
रतन टाटा ने सीएनबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि नैनो के साथ 'सस्ती' इमेज जुड़ गई है. नैनो को ऐसे मार्केट करना चाहिए था कि ये टू-व्हीलर चालकों के लिए सुरक्षित और आसान साधन है परिवार को लेकर जाने का, लेकिन इसे सिर्फ एक सस्ती कार के तौर पर पेश किया गया. 'Cheap car' की छवि ने वाकई नैनो को काफी नुकसान पहुंचाया है.
4. न लुक्स न कार वाली फीलिंग...
भारत में शो ऑफ सबसे ज्यादा चलता है और जब बात कार की हो तो किफायत के साथ-साथ अच्छी दिखने वाली कार सबसे बिकती है. ऐसे में नैनो के लुक्स और उसके इंजन से निकलने वाली आवाज़ लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आई. यह किसी ऑटो या टैम्पो जैसी आवाज थी. कार में पीछे की तरफ लगा इंजन ताे उसे चार पहिए वाला ऑटो जैसा ही बना रहा था.
5. स्कूटर का विकल्प...
टाटा नैनो की शक्ल में लोगों को लगा कि उन्हें एक कार नहीं बल्कि चार पहियों वाला स्कूटर ही मिल रहा है. एक तरह से देखें तो कार कभी स्कूटर का विकल्प नहीं हो सकती. लोग डेढ़ लाख की बाइक भी खरीदते हैं और टाटा नैनो के साथ सबसे बड़ी समस्या यही हो गई कि इस कार को लोगों ने अपनाने में देर कर दी.
6. खराब इंजीनियरिंग...
IBEF की रिपोर्ट के अनुसार टाटा मोटर्स ने नैनो को बनाने के बॉश और डेल्फी जैसी कंपनियों के साथ करार किया था. नैनो को इंजीनियरिंग का अचूक नमूना बताया गया था जब्कि असल में ये बुरी तरह से फेल हो गई. ऐसा काफी कुछ था जिसमें नैनो में कमी निकाली जा सकती थी. खराब एयर बैग, चाइल्ड सीट की कमी, सुरक्षा में कमी आदि बहुत से ऐसे कारण निकाले जा सकते हैं जो नैनो की सफलता में आड़े आते रहे.
7. अपेक्षाएं और सच्चाई...
नैनो के साथ बहुत सी उम्मीदें जुड़ी थीं. जिसमें रतन टाटा की उम्मीदों के साथ-साथ भारत के ग्राहकों की उम्मीदें भी शामिल थीं. नैनो के साथ लोगों को लगता था कि उन्हें मारुति की तरह एक किफायती गाड़ी मिल जाएगी, लेकिन नैनो में फिट होने के लिए 5 लोगों के परिवार को भी दिक्कत होने लगी. अगर सामान के साथ सफर करना है तो नैनो भारतीय ग्राहकों की पसंद नहीं बन सकती क्योंकि इसमें जगह की कमी है, भारतीय रोडों के हिसाब से ये सुरक्षित गाड़ी भी नहीं लगी, बड़े परिवारों के लिए तो ये गाड़ी बिलकुल नहीं थी, साथ ही छोटे परिवारों को भी इस गाड़ी के अंदर पैर फैलाने में भी दिक्कत होने लगी. कार काफी हल्की थी तो ये लंबे सफर के लिए भी सुरक्षित नहीं लगी.
लखटकिया कभी एक लाख रु. में नहीं बिकी
रुपए वाली चीज का नाम चवन्नी हो तो इसे धोखा ही माना जाएगा. नैनो को लांच करते हुए टाटा ने कहा था कि हमने वादे के मुताबिक अपनी लखटकिया कार की कीमत एक लाख रु. के भीतर ही रखी है. लेकिन हकीकत यह थी कि नैनो के शुरुआती वेरिएंट की कीमत मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट से निकलते हुए एक लाख रु. थी, जो शोरूम से होते हुए ग्राहक तक पहुंचते-पहुंचते बहुत ज्यादा हो जा रही थी. नैनो के बारे में पूछताछ करने शोरूम पहुंचे लोगों को जब नैनो की कीमत बताई गई तो उन्होंने इस कार को खरीदने का विचार ही बदल दिया.
सस्ती नैनो से तो थोड़ी महंगी मारुति 800 भली
भारत में वो चलता है जो सस्ता होने के साथ-साथ किफायती भी हो. अगर हम नैनो की बात करें तो ये सस्ती तो थी लेकिन किफायती नहीं. अगर भारतीय कार मार्केट को देखा जाए तो अभी तक सबसे ज्यादा किफायती और दाम के हिसाब से बेहतर कार मारुति 800 थी. लॉन्चिंग के समय 50 हज़ार की मिलने वाली ये कार आज की कीमत के हिसाब से शायद 2.5 - 4 लाख के बीच होती, लेकिन फिर भी ये मारुति भारतीय मार्केट में मिलने वाली बहुत सी कारों से ज्यादा किफायती लगती! पाकिस्तान में तो आज भी सुजुकी मेहरान (पाकिस्तानी मारुति 800) सबसे बेहतरीन गाड़ी मानी जाती है.
एशियाई देशों में सस्ता तो अच्छा माना जाता है, लेकिन उसके साथ किफायत वाला फैक्टर जुड़ा है और ये बहुत अहम है. यही कारण है कि नैनो सस्ती होने के बाद भी लोगों तक नहीं पहुंच पाई क्योंकि इसमें वो मारुति वाली किफायत नहीं थी जो मिडिल क्लास लोगों को पसंद आ सके. नैनो हाई क्लास ग्राहकों के लिए कभी थी ही नहीं और मिडिल क्लास को भी लुभाने में नाकाम ही रही. मारुति के रंगो में नैनो को लॉन्च किया गया, उसे आम आदमी की कार कहा गया, लेकिन ये कभी आम आदमी की कार बन नहीं पाई.
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