Irrfan Khan Death: उफ् ये क्या कर दिया भगवान!
इरफ़ान खान की मौत की खबर (Irrfan Khan Death) पूरे देश के लिए किसी बुरे सपने जैसी है. देशवासी अभी भी यही उम्मीद कर रहे हैं कि कोई आए उन्हें जगाए और कह दे कि इरफ़ान (Irrfan khan) हमारे बीच हैं जिन्हें हम जल्द ही पर्दे पर अपना जलवा बिखेरते हुए देखेंगे.
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हर रात जब हम नींद की आगोश में होते हैं तो ये मानकर चलते हैं कि अगली सुबह ख़ूबसूरत ही होगी. प्रातःकालीन दिनचर्या से निबट अचानक आपकी नज़र एक मैसेज पर जाती है और उसी वक़्त सुबह की सारी रोशनी बेमानी हो जाती है जब आपको पता चलता है कि आपका प्रिय कलाकार इस दुनिया में नहीं रहा (Irrfan Khan Death news). पहली प्रतिक्रिया इस ख़बर को झूठा (Irrfan Khan news social media reactions) मान लेना चाहती है लेकिन फिर भी आप सारी दुआओं को दोहराते हुए टीवी की तरफ दौड़ पड़ते हैं और पता चलता है कि हम सबका दुलारा कलाकार इरफ़ान खान अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका है. मुझे सदैव ही इस बात का अफ़सोस होता रहा है कि तीन खानों और घरानों की भीड़ में राहुल बोस, मनोज बाजपेई, इरफ़ान ख़ान और नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी सरीखे कई बेहतरीन कलाकारों को उनके हिस्से की उतनी ज़मीं नहीं मिलती जिसके ये सदैव हक़दार रहे हैं. लेकिन हर बार ही मैंने यह कह अपने दिल को तसल्ली भी दी कि हीरा कहीं भी रहे. इससे उसकी श्रेष्ठता पर असर नहीं पड़ता. वही एक हीरा आज हमसे जुदा हो गया, यह बात मन अब भी मानने को तैयार नहीं.
इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा है कि इरफ़ान खान जैसा मंझा हुआ कलाकार हमारे बीच नहीं रहा
इरफ़ान के अभिनय की प्रशंसा करना भी जैसे सूरज को दीया दिखाना है. उनकी आंखें ही आधा अभिनय कर जाती थीं. आँखें ही बोलती थीं, आंखें ही हंसती थीं और आंखें ही दर्द और दुःख की पूरी किताब जैसे खोलकर रख देती थीं. उनके अभिनय की रेंज पकड़ पाना हर किसी के बस की बात नहीं. हास्य जितनी सहजता से निभा जाते थे, आम आदमी के जीवन संघर्ष को भी उतनी ही संजीदगी से बयां किया है उन्होंने.
डायलॉग बोलने का उनका अपना एक निराला अंदाज था. हर तरह की भूमिका को पूरे दिलोजान और ईमानदारी से निभाया है, इरफ़ान ने. उनकी हर फिल्म ऐसी है जिसे देखकर लगता है कि ये सिर्फ उन्हें ही ध्यान में रख लिखी गई है. ऐसे अद्भुत अभिनेता थे वो. लेकिन इन सबसे इतर जो एक सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है वो है इरफ़ान का अपना व्यक्तित्त्व, जिसने न जाने कितने लोगों को प्रभावित और प्रेरित किया होगा.
मार्च 2018 में लिखी उनकी वह पोस्ट याद आती है जिसमें उन्होंने स्वयं को न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने की ख़बर बेहद भावुक अंदाज़ में दी थी और उनके करोड़ों प्रशंसक घबरा गए थे. लेकिन यकीन भी था कि हमारा फाइटर इरफ़ान वापिस आएगा, अपने उसी संवेदनशीलता से भरे कम शब्दों और हंसती आंखों के साथ. इरफ़ान ने हमारा ये विश्वास नहीं तोडा और वे लौट आये थे. अब जबकि हम उस तरफ से निश्चिन्त हो 'अंग्रेज़ी मीडियम' को देख खुश हो ही रहे थे कि अचानक हमारा प्रिय अभिनेता हमारे बीच से निकल आसमान पर जा तारा बन बैठा.
कब से उसको ढूंढता हूं/ भीगी पलकों से यहां/ अब न जाने वो कहाँ है/था जो मेरा आशियां
वक्त के कितने निशां है/ ज़र्रे ज़र्रे में यहाँ/ दोस्तों के साथ के पल/ कुछ हसीं कुछ ग़मज़दा
सब हुआ अब तो फना/ बस रहा बाकी धुंआ
बिल्लू बारबर के इस गीत के साथ मैं अपने प्रिय कलाकार को विदाई देती हूं जो हम सबके बीच सदा रहेगा लेकिन ईश्वर से नाराज़गी अवश्य हो रही है कि वो अच्छे लोगों को सदा अपने पास क्यों बुला लेता है. दुःख में भर जब ये बात मैंने अपने मित्र से साझा की तो उनका जो जवाब मिला, उससे मेरी शिकायत कुछ कम जरुर हुई.
मित्र ने कहा कि 'इसका दूसरा पक्ष देखो, इरफ़ान को बनाया भी तो भगवान ने ही था न! और हमारे पास भेजा भी.'
तो मैं इस बात का शुक्रिया अदा जरुर करना चाहूंगी कि ईश्वर ने हमें इरफ़ान खान से मिलवाया और अच्छे इंसानों की पहचान कराई. अब शायद उन्हें उनकी मां से मिलाने ले गए होंगे. आप जहां भी हैं इरफ़ान वहां जमकर रौनकें होंगीं. खुश रहिये. आपको भावभीनी विदाई और खूब सारा स्नेह, शुक्रिया कि आप इस दुनिया में आये.
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