भोजपुरी इंडस्ट्री में अश्लीलता के 'दुष्चक्र' के सूत्रधार हम खुद हैं!
भोजपुरी इंडस्ट्री में अश्लीलता और नग्नता को लेकर भले ही कितनी बड़ी बड़ी बातें क्यों न कर ली जाएं, ये हिट ही रहेंगी. क्योंकि इस पर ऐतराज करने वाले तो मुट्ठीभर हैं, जबकि मोबाइल फोन पर चटकारे लेकर इस फूहड़ता और नग्नता को निहारने वाली आंखें करोड़ों में हैं.
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भोजपुरी को अश्लीलता से मुक्त करने की बात कोई नई नहीं है. अनेक रूपों में यह बात दोहराई जाती रही है, बल्कि एक अभियान के रूप में किसी भी अन्य भाषा से मजबूत आग्रह भोजपुरी का रहा है. लेकिन सवाल है कि इतने आग्रहों, परिश्रमों और निष्ठा के बाद भी यह स्थिति बदल क्यों नहीं रही है? आखिर क्या वजह है कि तमाम अच्छे लोगों के इस मुहिम के जुड़ने के बावजूद बहुत सार्थक परिणाम नहीं मिल पा रहा है? इसकी कई वजहें गिनाई जा सकती हैं, पर मैं बस एक की ही चर्चा कर रहा हूं.
अश्लीलता मुक्त भोजपुरी की लड़ाई जिससे है उस पर वार ही नहीं किया जा रहा है. सिर्फ उसके खिलाड़ी को दोष देकर मैदान नहीं जीता जा सकता. आपको खेल भी जीतना होगा. और खेल क्या है? भोजपुरी की अश्लीलता ज्यादातर 'लोकप्रिय गीतों' में देखी जा सकती है. यानी फिल्मी गीत या एल्बम के गीत. ये गीत मूलतः मनोरंजन के लिये रचे जाते हैं. डीजे, यात्रा व अन्य इसी प्रकार के समारोहों को लक्षित गीत. दुर्भाग्य से गुणात्मक लोकप्रियता हासिल करने की हवस में ये गीत द्विअर्थी और कई बार एकर्थी बोल वाले होते गए.
भोजपुरी गानों पर लंबे समय से आरोप लग रहा है कि इनसे अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है
जुगुप्सा जगाने वाले इन गीतों को श्रोता भी भर के मिले. ऐसी चीज़ें सहज आकर्षित तो करती ही हैं लेकिन साथ ही इन गीतों की धुन, संगीत, गति आदि ऐसी होती है कि ये कुछ विशेष अवसरों के लिये मुफीद बैठ जाते हैं. डीजे पर थिरकने के लिये संगीत में जो उत्तेजना चाहिए वो इनमें होती है. अच्छे बुरे से अधिक इन गीतों ने खालीपन को भरा. अब अगर इसे ठीक करना है तो इस जगह के लिये विकल्प देना होगा. लेकिन हम क्या कर रहे हैं?
हम इसका जबाव लोकगीतों आदि से देना चाह रहे हैं. लोकगीत का अपना महत्व है लेकिन यह लड़ाई तो लोकगीत की है ही नहीं. कोई भी नहीं कह रहा कि लोकगीत बंद करो. लड़ाई लोकप्रिय गीतों को अश्लीलता से मुक्त करने की है. तो विकल्प भी लोकप्रिय गीतों का ही देना होगा. आप साहिर के गीत पर डिस्को नहीं कर सकते वैसे ही भिखारी ठाकुर के गीत डीजे पर नहीं बजेंगे.
केवल लोक के नाम पर, संस्कृति के नाम पर किसी भी भाषा को नहीं बचाया जा सकता. उसे अपनी विरासत को संजोए रखने के साथ साथ नए समय के मुहावरों को भी गढ़ना होगा. यह काम हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी सब में हो रहा है, भोजपुरी को भी यह करना होगा.
लोकप्रिय गीतों की अनदेखी कर यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती है. केवल अतीत की सुखद यादें वर्तमान को ठीक नहीं कर सकतीं. भाषा के अन्य रूपों पर भी ध्यान देना होगा. भोजपुरी भाषा को अश्लीलता से मुक्त करने में जुटे सहृदय साथियों को इस दिशा में भी सोचना चाहिए. श्रोताओं को भी.
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