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Updated: 05 जून, 2020 02:13 PM
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अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की फिल्म चोक्ड: पैसा बोलता है (Choked: Paisa bolta hai) नेटफ्लिक्स (Netflix) पर रिलीज हो गई है. फिल्म इस वजह से ज्यादा चर्चा में है कि इसका बैकग्राउंड नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी (Demonetisation)  के फैसले पर आधारित है. इस फिल्म की कहानी लिखने से लेकर नेटफ्लिक्स पर रिलीज करने में वर्षों लग गए. आप भी नोटबंदी के बाद बैंक या एटीएम की लाइन में खड़े हुए होंगे. पुराने पैसे बदलवाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी होगी. आपको फिल्म चोक्ड में साल 2016 का नोटबंदी काल मिलेगा. जैसा कि चोक्ड फिल्म के टैगलाइन से पता चलता है कि जब पैसा बोलता है तो दुनिया सुनती है, आप भी सुनेंगे और देखेंगे. साल 2016 का नवंबर महीना. देर शाम मैं अपने पापा के साथ टीवी देख रहा था. अचानक न्यूज चैनल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखे और उनका वो वाक्य कि भाइयो और बहनों, 8 नवंबर रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो जाएंगे और आपको एक निश्चित समय के अंदर पुराने नोट बदलवाने होंगे. यह खबर किसी पत्थर की तरह लोगों के ज़ेहन पर गिरे कि अरे, अचानक ये क्या हो गया. ठीक ऐसा ही अनुराग की फिल्म चोक्ड की लीड कलाकार सरिता (सैयमी खेर) भी महसूस करती है. हालांकि इससे पहले फिल्म में बहुत कुछ हुआ. हम आपको नोटबंदी के फायदे-नुकसान और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव से इतर फिल्म के बारे में ही बताएंगे.

Choked review, Netflix movie release, Anurag Kashyap, Demonetisationचोक्ड उन चुनौतियों की कहानी है जिसका सामना देश के आम आदमी को तब करना पड़ा जब देश में नोटबंदी हुई

चोक्ड की कहानी मुंबई के लोअर मिडिल क्लास फैमिली की है, जिसमें पति-पत्नी और बच्चे हैं. पति सुशांत (रोशन मैथ्यू) म्यूजिशियन बनना चाहता है, लेकिन बन नहीं सका और नौकरी करना नहीं चाहता. पत्नी सरिता (सैयमी खेर) सिंगर बनना चाहती थी, लेकिन किसी कारणवश बन नहीं सकी और फिलहाल बैंक में कैशियर के रूप में अच्छा काम कर रही है. एक बच्चा भी है. पति-पत्नी में नोक-झोंक और कम होता प्यार, पड़ोसियों से मनमुटाव, दीवार की सीलन, वहीं रोटी-दाल के चक्कर में घिसती जिंदगी और पिसते सपने. बहुत सामान्य लग रहा है न आपको?

लगेगा, लेकिन यह अनुराग कश्यप की फिल्म है, पता ही नहीं चलेगा कि कहानी कब किस तरफ मुड़ जाए. किसी तरह जिंदगी जीने की जद्दोजहद के बीच एक दिन कुछ ऐसा होता है कि सरिता के सपनों को पंख लग जाते हैं और ख्वाहिशों को पैसे का सहारा मिल जाता है.अगर आपके घर में सीलन की वजह से दीवार से पानी टपकने लगे, किचन या बाथरूम का बेसिन पाइप जाम हो जाए और उससे बदबूदार गंदा पानी निकलने लगे तो आपको कितनी कोफ्त होती होगी, ऐसा ही चोक्ड के किरदारों के साथ भी होता है.

लेकिन एक रात किचन के पाइप से निकलते गंदे पानी के साथ पन्नी में लिपटे 500 और हजार के नोट देख सरिता की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता है और फिर उसकी जिंदगी ही बदल जाती है. घर में अच्छा खाना, महंगे कपड़े, अय्याशी और खुशी पाने की कोशिशें होने लगती हैं. किचन के पाइप से पैसे निकलते जाते हैं, जिनकी संख्या अब ब्रीफकेश में रखने लायक हो जाती है. लेकिन किसे पता था कि अचानक सरकार नोटबंदी का फैसला ले लेगी.

8 नवंबर 2016 को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा ब्लैक मनी और आतंकवाद पर अंकुश लगाने की कोशिश के तहत लिए नोटबंदी के फैसले ने पूरे देश को एटीएम और बैंक के बाहर लाइन में खड़ा कर दिया. जो महिलाएं कोठी, आटा-चावल के डिब्बे में जरूरत के वक्त इस्तेमाल करने के लिए थोड़े पैसे बचाकर रखी थीं, उनपर तो जैसे किसी ने अत्याचार कर दिया, लेकिन सरिता के पास तो काफी सारे पैसे थे. इस बारे में बेखबर पति खुश है कि चलो अब आएंगे अच्छे दिन और ब्लैक मनी की ऐसी तैसी, लेकिन पत्नी परेशान कि इन पैसों का करें क्या, इन्हें नए नोट में कैसे बदलें.

फिर जैसा कि हम सबने सुना था कि पुराने नोट के बदले नए नोट पाने में किस तरह पुरानी करेंसी का वैल्यू चोरी-छुपे दलालों द्वारा गिराया गया था और क्या-क्या हुआ था. इन सबके बीच अनुराग कश्यप ने नोटबंदी के बाद की जिंदगी और लोगों को होने वाली समस्याओं को सिर्फ एक परिवार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि बैंक या एटीएम के बाहर कतारों में खड़ी लंबी भीड़, नोटबंदी की वजह से बेटी की शादी में बाधा आने के ग़म में घुटती मां (अमृता सुभाष), लोगों के सामने सर्वाइवल की समस्या समेत तमाम परेशानियों को संक्षिप्त रूप में ही सही, पर पर्दे पर लाने में अनुराग ने मेहनत की और इसमें उनका साथ क्या बखूबी निभाया राइटर नितिन भावे ने.

1 घंटे 54 मिनट की फिल्म में कसी कहानी, नोटबंदी के बाद की आम जिंदगी में आने वाली परेशानियों पर गहरी निगाह रख अच्छा निर्देशन करने वाले अनुराग कश्यप, सैयमी खेर की बोलती आंखें और रोल के अनुसार सटीक एक्सप्रेशन, रोशन मैथ्यू का मिलाजुला काम, सहकलाकार के रूप में राजश्री देशपांडे और अमृता सुभाष की देखने लायक एक्टिंग ने चोक्ड को वाकई देखने लायक बना दिया है.

चूंकि चोक्ड पहली ऐसी फिल्म है जो नोटबंदी के बैंकग्राउंड पर बेस्ड है, ऐसे में आलोचना भी होगी और लोग ये भी कहेंगे कि अनुराग नोटबंदी की परेशानियों को पूरी तरह और ईमानदारी से दिखा नहीं पाए. ऐसा लगेगा, बिल्कुल लगेगा, क्योंकि दर्शकों की पसंद का पैमाना और जजमेंट करने का तरीका भी तो यही है. खामियां तो हैं और वो दिखेंगी भी. लेकिन कुल मिलाकर चोक्ड देखने लायक है, कारण कई हैं, जिनकी चर्चा कर चुका हूं और अनुराग कश्यप की घोस्ट स्टोरीज का दर्द भूले नहीं हैं तो चोक्ड देखिए, आपको सुकून मिलेगा. और गैंग्स ऑफ वासेपुर, ब्लैक फ्राइडे और गुलाल जैसी फिल्म बनाने वाले अनुराग भी मिलेंगे.

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