1984 का दंश झेल चुकी दिव्या की जिंदगी किसी सुपर हीरो से कम नहीं..
7 साल की उम्र में पिता को खोने और एंटी सिख दंगों की मार झेलने वाली दिव्या दत्ता को नैशनल अवॉर्ड भी 100 फिल्में करने के बाद मिला. बॉलीवुड की इस टैलेंटेड एक्ट्रेस को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद भी इतना इंतजार करना पड़ा.
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अपने काम को शिद्दत से करने की ललक बहुत से लोगों में होती है, लेकिन उसी काम को पूजा की तरह मानने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है. ऐसे ही कुछ लोगों में से एक हैं एक्ट्रेस दिव्या दत्ता. ये वही दिव्या हैं जिन्हें 100 से भी ज्यादा फिल्में करने के बाद नेशनल अवॉर्ड मिला था. इस बड़े सम्मान के लिए दिव्या ने बहुत स्ट्रगल किया. 25 सितंबर 1977 को पंजाब लुधियाना में जन्मी दिव्या ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा और किस्मत देखिए बॉलीवुड की सबसे टैलेंटेड एक्ट्रेस में से एक दिव्या आज भी स्ट्रगलर के तौर पर ही देखी जाती हैं. भरपूर टैलेंट होने के बाद भी उन्हें न तो वो मौके दिए गए जो उन्हें मिलने चाहिए थे और न ही उन्हें स्ट्रगलर की लिस्ट से हटाया गया.
1984 के एंटी-सिख दंगों को बहुत करीब से देखा है दिव्या ने...
दिव्या के पिता का निधन बहुत कम उम्र में ही हो गया था. 7 साल की दिव्या और उनके भाई को मां नलिनी दत्ता ने अकेले पाला. दिव्या दत्ता 1984 के दंगों के समय पंजाब में ही थीं. 2013 में फिल्म गिप्पी के लिए दिए गए एक इंटरव्यू में दिव्या ने बताया था कि जब भी वो इन दंगों को याद करती हैं तब उन्हें वो दृश्य याद आ जाता है कि कैसे वो अपनी मां के पल्लू के पीछे छुपकर भगवान से सुरक्षा की प्रार्थना कर रही थीं.
दिव्या दत्ता की निजी जिंदगी में भी स्ट्रगल कम नहीं रहा
शायद ये घटना ही है जो दिव्या अपने संजीदा किरदार इतने अच्छे से निभा पाती हैं. उन्होंने अपनी पहली फिल्म 19 साल की उम्र में की थी. 1994 में आई फिल्म 'इश्क में जीना इश्क में मरना' से दिव्या ने डेब्यू तो कर लिया, लेकिन इसके बाद भी इस टैलेंटेड एक्ट्रेस के फिल्मी करियर में बहुत उतार चढ़ाव देखे.
नेशनल अवॉर्ड के लिए भी दिव्या को पहले 100 से ज्यादा फिल्में करनी पड़ीं. हिंदी, पंजाबी, मल्याली, नेपाली आदि भाषाओं की अनेकों फिल्में करने के बाद आखिर उन्हें फिल्म इरादा के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला.
मुंबई आने से पहले दिव्या अपना हाथ मॉडलिंग में भी आजमा चुकी थीं. पंजाब के कई टेलिविजन कमर्शियलों में दिव्या आ चुकी थीं. उन्होंने भले ही 17 की उम्र में डेब्यू किया हो, लेकिन उन्हें असली कामयाबी मिली 1995 में आई सलमान की फिल्म वीरगति से जिसमें उन्होंने सलमान की बहन का किरदार निभाया था. भले ही दिव्या पंजाबी हैं, लेकिन उनका पंजाबी डेब्यू हिंदी फिल्मों के डेब्यू के सालों बाद आया. फिल्म थी 'शहीद-ए-मोहब्बत- बूटा सिंह'. वो कहानी जो 1947 के पार्टीशन पर आधारित थी और इसमें एक मुसलमान लड़की जैनब एक सिख बूटा सिंह से शादी करती है और फिर हालात उन्हें एक दूसरे से अलग कर देते हैं.
ये फिल्म सुपरहिट थी और इसमें दिव्या दत्ता के किरदार को लोगों ने बेहद पसंद किया था. शन्नो की शादी, कदम और संविधान जैसे कई टीवी सीरियलों में भी दिव्या ने काम किया है. दिव्या की डेब्यू इंटरनेशनल फिल्म थी The Last Lear जिसमें दिव्या के अलावा अमिताभ बच्चन, अर्जुन रामपाल और प्रीति जिंटा भी थे. 'वीर जारा' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्मों के लिए दिव्या को कई अवॉर्ड भी मिले.
निजी जिंदगी में किसी हीरो से कम नहीं दिव्या..
पर्दे पर भले ही दिव्या दत्ता सपोर्टिंग रोल में या फिर बतौर हिरोइन दिखाई देती हैं, लेकिन अगर हम बात करें असल जिंदगी की तो वो किसी हीरो से कम नहीं हैं. एंटी सिख दंगे तो बहुत बचपन में देखे थे, लेकिन पिता के बिना जीना और हर कदम में अपनी मां के साथ चलना दिव्या ने बखूबी सीखा. उन्होंने अपनी मां पर एक किताब भी लिखी 'मां एंड मी'. मां के देहांत के बाद दिव्या डिप्रेशन में चली गई थीं.
सिर्फ पिता के देहांत का ही नहीं दिव्या ने रिश्ता टूटने का भी दुख झेला है. उनकी सगाई लेफ्टिनेंट कमान्डर संदीप शेरगिल से हुई थी, लेकिन शादी नहीं हो पाई. दिव्या ने कभी खुलकर इस बारे में नहीं कहा, लेकिन अगर देखा जाए तो दिव्या की जिंदगी का ये भी एक अहम पहलू है.
दिव्या दत्ता के लिए वैसे तो बहुत कुछ है लिखने को, पर अब शायद यहीं विराम देना सही होगा. दिव्या दत्ता के लिए बस यही कहा जा सकता है कि वो एक बेहतरीन अदाकारा हैं जिन्हें बॉलीवुड शायद ठीक से समझ ही नहीं पाया.
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