भावेश जोशी सुपर हीरो 'नहीं' है!
फिल्म ‘भावेश जोशी सुपर हीरो’ निर्देशक विक्रम आदित्य मोटवानी की अबतक की सबसे कमजोर फिल्म है और बताती है कि हर्षवर्धन कपूर को हीरो बनने से ज्यादा एक्टर बनने पर ध्यान देना चाहिये.
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हर्षवर्धन कपूर की फिल्म ‘भावेश जोशी सुपर हीरो’ देखने की एहम वजह हैं इस फिल्म के निर्दशक विक्रम आदित्य मोटवानी, जिन्होंने ‘उड़ान’ ‘लुटेरा’ और ‘ट्रैप्ड’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है. विक्रम की फिल्में क्रिटिक्स को भी पसंद आई हैं और बॉक्स ऑफिस पर भी सेफ रही हैं.
निर्दशक विक्रम आदित्य मोटवानी ने 'भावेश जोशी सुपरहीरो' से पहले काफी अच्छी फिल्में दीं हैं
बात कहानी की
'भावेश जोशी सुपर हीरो' वाटर माफ़िया के विषय को एक्सपोज करती है. मुम्बई में तीन दोस्त करप्शन के खिलाफ आवाज उठाते हैं जिनमें से एक है सिकंदर खन्ना(हर्षवर्धन कपूर), भावेश जोशी(प्रियान्शू पेनयुली) और रजत (आशीष वर्मा). तीनों दोस्त हर उस शक्स का विडियो बनाते हैं जो किसी भी क़िस्म का गलत काम करता है, फिर चाहे वो रेड सिगनल तोड़नेवाला हो या वन वे में गाड़ी चलानेवाला.
इसी दौरान भावेश जोशी की नजर वॉटर माफिया की तरफ पड़ती है और वो इस स्केंडल को एक्सपोज करने की ठान लेता है. लेकिन शहर के ताकतवर और रसूखदार लोगों से लड़ने में उसकी जान चली जाती है. फिर सिकंदर खन्ना, भावेश जोशी का अधूरा सपना पूरा करने में जुट जाता है आखिरकार बेईमानों को सबक मिलता है और एक आम आदमी सुपर हीरो कहलाया जाता है. फिल्म के लेखक हैं विक्रम आदित्य मोटवानी, अनुराग कश्यप और अभय कोरन्ने.
‘भावेश जोशी सुपर हीरो’ की कहानी दिल्चस्प है लेकिन स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है. संजीदा विषय और अच्छी सोच के बावजूद, स्क्रीनप्ले में इतनी ख़ामियां हैं कि सब कुछ नकली लगने लगता है. कभी इन लड़कों को आम तरीके से पेश किया जाता है तो कभी जूडो-कराटे सिखाकर इन्हें खास बना दिया जाता है, कहीं पिट जाते हैं तो कहीं किसी को भी पीट देते हैं और खासतौर से हर्षवर्धन के फाइट सीक्वेन्स बेहद बोरिंग और झूठे लगते हैं. कई सीन्स बहुत लंबे भी हैं, खासतौर से बाइकचेज़ वाला सीन तो कुछ ज्यादा ही बड़ा है. क्लाइमेक्स भी ज़बरदस्ती का लगता है. एक अच्छी फिल्म के लिये सिर्फ अच्छी सोच ही काफी नहीं है उसे सही तरीके से बनाना भी उतना ही ज़रूरी है.
स्क्रीनप्ले में इतनी ख़ामियां हैं कि सब कुछ नकली लगता है
अभिनय के डिपार्टमेंट में हर्षवर्धन ने इमानदारी से काम किया है, लेकिन गुस्से वाले सीन्स में वो सही तरीके से इमोट नहीं कर सके और बतौर एक्टर कमजोर दिखाई देते हैं. हर्षवर्धन से बेहतर अभिनय प्रियान्शू पेनयुली का है और उन्हें अच्छा सपोर्ट किया है आशीष वर्मा ने. पॉलिटिशियन के रोल में निशीकांत कामत ओवर एक्टिंग करते हैं बाकी सभी कलाकार औसत हैं.
अमित त्रिवेदी का संगीत साधारण है, सिद्धार्थ दीवान की सिनेमेटोग्राफ़ी कहानी के मूड के साथ जाती है. कुल मिलाकर निर्देशक विक्रम आदित्य मोटवानी की ये अबतक की सबसे कमजोर फिल्म है और हर्षवर्धन कपूर को हीरो बनने से ज्यादा एक्टर बनने पर ध्यान देना चाहिये.
हर्षवर्धन कपूर का अभिनय निराश करता हैअब बात मुश्किलों की
हर्षवर्धन कपूर अभी तक वो पहचान नहीं बना पाए जहां उनके नाम पर टिकिट बिके या लोगों को इंतजार हो हर्षवर्धन की फिल्म का. उनकी पहली फिल्म ‘मिर्जिया’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी, ऐसे में ‘भावेश जोशी’ का तीन फिल्मों के साथ रिलीज होना बिजनेस के हिसाब से भी वाजिब फैसला नहीं है. हैरत की बात ये है कि बॉक्स ऑफिस पर हर्षवर्धन कपूर की टक्कर बहन सोनम कपूर की फिल्म ‘वीरे दी वेंडिंग’ से होगी, जिसमें करीना कपूर भी हैं, ऐसे में हर्षवर्धन की फिल्म पर भी असर पड़ेगा. इसके अलावा तीसरी फिल्म है जिमी शेरगिल की ‘फेमस’. ये फिल्म भले ही छोटे बजट की हो लेकिन दर्शक तो बंट ही जाते हैं.
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