Gandhi Godse Ek Yudh Public Review: कैसी लगी राजकुमार संतोषी की फिल्म, जानिए
Gandhi Godse Ek Yudh Public Review in Hindi: 9 साल के लंबे इंतजार के बाद दिग्गज फिल्म मेकर राजकुमार संतोषी फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' की रिलीज के साथ वापसी कर चुके हैं. फिल्म में महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के बीच वैचारिक युद्ध को दिखाया गया है. आइए जानते हैं कि फिल्म लोगों को कैसी लगी.
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'पुकार', 'बरसात', 'दामिनी', 'घायल', 'अंदाज अपना अपना', 'लज्जा', 'खाकी', 'चाइना गेट' और 'अजब प्रेम की गजब कहानी' जैसी फिल्में बनाने वाले फिल्म मेकर राजकुमार संतोषी 9 साल के लंबे इंतजार के बाद वापसी कर चुके हैं. उनकी नई फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान की 'पठान' की आंधी के बीच ये फिल्म आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष करने के साथ ही समीक्षा के स्तर पर भी औसत नजर आ रही है. इस फिल्म की रिलीज से पहले इसे लेकर बहुत ज्यादा चर्चा थी. फिल्म के टीजर और ट्रेलर को देखने के बाद कुछ लोगों को लगा कि इसमें महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे के आगे नीचा दिखाया गया है. वहीं कुछ अन्य लोगों को लगा कि इसमें नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया गया है. लेकिन रिलीज के बाद लोगों को पता चला कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो कि लोगों ने सोचा था.
फिल्म की कहानी में कल्पना का समावेश है. इसका सच्चाई से बहुत ज्यादा संबंध भी नहीं है. बस किरदार असली हैं, लेकिन उनके आसपास जो परिस्थिति बुनी गई है, वो बस एक सोच है. यदि ऐसा होता तो क्या होता, यदि वैसा होता तो क्या होता. उदाहरण के लिए यदि गांधी जिंदा होते और उनको पता होता कि गोडसे उनको मारने की योजना बना रहे हैं. ऐसी स्थिति में दोनों एक-दूसरे के सामने होते तो क्या-क्या बात करते. उनके विचार क्या होते. दोनों के बीच किस तरह का वैचारिक अंतर था. पूरी फिल्म लगभग इसी पर बात हुई है. फिल्म की कहानी राजकुमार संतोषी और असगर वजाहत ने लिखी है. इससे पहले भी दोनों ने कई फिल्मों के लिए एक साथ काम किया है. फिल्म में दीपक अंतानी, चिन्मय मंडलेकर, तनीषा संतोषी और अनुज सैनी लीड रोल में हैं. दीपक अंतानी ने महात्मा गांधी, तो चिन्मय मंडलेकर नाथूराम गोडसे का किरदार किया है.
फिल्म मेकर राजकुमार संतोषी फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' की रिलीज के साथ वापसी कर चुके हैं.
फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' को लेकर समीक्षकों और दर्शकों को मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. हालांकि, ज्यादातर लोग इसे औसत दर्जे की फिल्म बता रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यदि ये फिल्म पठान के साथ रिलीज न होती, तो शायद इसे ज्यादा हाईप मिल सकता था. सोशल मीडिया पर ज्यादातर लोग फिल्म के कलाकारों के अभिनय की तारीफ कर रहे हैं. ट्विटर पर मनीष त्रिवेदी ने लिखा है, ''यदि आप अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं तो 'गांधी-गोडसे एक युद्ध' जरूर देखें. फिल्म राजकुमार संतोषी ने बनाई है और संगीत दिया है एआर रहमान ने. बेहतरीन अदाकारी आपका दिल जीत लेगी.'' मृणाल केजे लिखते हैं, ''दीपक अंतानी ने गांधी के किरादर में गजब का अभिनय किया है. राजकुमार संतोषी ने शानदार निर्देशन किया है. फिल्म का कॉन्सेप्ट मुझे बहुत बढ़िया लगा है. इस तरह की फिल्में ज्यादातर हॉलीवुड में बनती रही हैं.''
राहुल शिंदे लिखते हैं, ''फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध' का एक लाइन में यही रिव्यू है कि ये पूरी तरह झूठ और प्रोपेगैंडा पर आधारित है. एक तरफा फेक नैरेटिव है. मैं आशा करता हूं कि बहुत जल्द गांधी और गोडसे पर आधारित एक ईमानदार फिल्म देखने को मिलेगी.'' जितेंद्र प्रताप सिंह ने लिखा है कि फिल्म कहानी, पटकथा और संवाद बेहद कमजोर हैं. कलाकारों ने ओवरएक्टिंग की है. कुछ सीन अच्छे लगे हैं लेकिन फिल्म का ज्यादातर हिस्सा खींचा हुआ बोरिंग लगता है. बहुत ही खराब संपादन और निर्देशन फिल्म को औसत से नीचे पहुंचा देता है. ट्विटर पर एक यूजर गुरविंदर सिंह का कहना है कि राजकुमार संतोषी की सियासी फिल्म बेअसर रही है. उनके खराब निर्देशन की वजह से दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर की मेहनत पर पानी फिर गया है. महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के बीच वैचारिक युद्ध बहुत सरल और उपदेशात्मक है.
गूगल मूवी रिव्यू में पल्लव अंजारिया ने फिलम को 5 में से 5 स्टार देते हुए लिखा है, ''मुझे ऑफबीट सिनेमा हमेशा से पसंद रहा है. गांधी गोडसे एक युद्ध एक शानदार विचार पर बनी फिल्म है, जो कि भले ही यह एक कल्पना है, लेकिन वास्तव में राजकुमार संतोषी की महान सोच है. गांधी का किरदार निभाने वाले दीपक अंतानी वास्तविक लगे हैं. उन्होंने जिस तरह से सूक्ष्म स्तर पर काम किया है वह असाधारण है. गांधी जी के चलने, बोलने, बैठने, बोलने, उच्चारण करने, वाणी में उतार-चढ़ाव सब कुछ काबिले तारीफ है. गोडसे के किरदार में चिन्मय ने भी शानदार काम किया है. ऐसी भूमिका को स्वीकार करना अपने आप में एक चुनौती है. उन्होंने वास्तव में एक विरोधी के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है. हो सकता है कि ये फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल न हो, लेकिन फिर भी यह बॉलीवुड के इतिहास पर अपनी छाप जरूर छोड़कर जाएगी.''
क्रांथि शंकू ने फिल्म को 5 में से 3 स्टार देते हुए लिखा है, ''फिल्म की रिलीज से पहले कहा गया कि इसे मोदी समर्थक और बीजेपी द्वारा प्रमोट किया जा रहा है, जबकि फिल्म देखने के बाद लोगों को सच्चाई का पता चलेगा. हमें गांधी के बारे में बहुत कुछ सिखाया और बताया गया है. अनावश्यक रूप से उनके तथाकथित अच्छे कार्यों का महिमामंडन किया गया है, जबकि उनके कई निर्णयों के बारे में कभी बात नहीं की जाती है, जिन्होंने देश को सदमें में छोड़ दिया. किसी व्यक्ति के सामने दिखने वाले कृत्य से उसे शर्मिंदा करना लोगों के लिए इतना आसान होता है. गोडसे इसका सबसे अच्छा उदाहरण और सबसे बुरा शिकार है. यह एक बहुप्रतीक्षित फिल्म थी जिसने गांधी के सभी अंधभक्तों के सामने सच्चाई लाने की कोशिश की, जो इतने मूर्ख थे कि उन्होंने नेहरू को अपना पहला प्रधानमंत्री बनाया और भारत को एक बड़ी विफलता के लिए खड़ा कर दिया.''
अमर उजाला में मेघा चौधरी ने राजकुमार संतोषी की फिल्म को बेअसर बताया है. उनकी वजह से दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर की मेहनत पर पानी भी फिर गया है. मेघा लिखती हैं, ''गांधी गोडसे एक युद्ध पूरी तरह से गांधी और गोडसे की बातचीत पर आधरित है. इस फिल्म में यह बताने की कोशिश की गई है कि यदि गांधी से गोडसे की पहले मुलाकात हुई होती तो शायद वह गांधी को नहीं मारते. फिल्म चूंकि संवादों पर ही पूरी तरह आधारित है तो ये फिल्म न लगकर पूरे समय दो लोगों का संवाद ही रहती है. संतोषी इसके लिए कलाकारों का चयन अपने हिसाब से बहुत सही किया है, लेकिन चूंकि दोनों चेहरे हिंदी सिनेमा के लिए अनजाने हैं, लिहाजा वे दर्शकों का ध्यान खींच पाने में विफल हैं. गांधी की भूमिका में दीपक अंतानी ने बढ़िया काम किया है. गोडसे की भूमिका में चिन्मय भी पूरी तरह से फिट हैं. बस दिक्कत दोनों के साथ एक ही है कि वह सिनेमाई करिश्मा नहीं रखते हैं. बड़े परदे पर संतोषी की वापसी प्रभाव नहीं रही है. वह अब भी 'द लीजेंड ऑफ भगत सिंह' वाले समयकाल में ही अटके हैं.''
नवभारत टाइम्स में धवल रॉव 'गांधी गोडसे एक युद्ध' को देखने लायक फिल्म बता रहे हैं. वो लिखते हैं, ''फिल्म में गांधी और गोडसे का युद्ध शब्दों से चल रहा है. दोनों अपनी अपनी विचारधारा और एक्शन पर बात करते हैं. लेकिन ये शब्दों का खेल कमजोर सा लगता है. अभिनय की बात करें तो दीपक अंतानी और चिन्मय मंडलेकर ने गांधी और गोडसे के किरदारों के साथ न्याय किया है. इनका उच्चारण भी जंचता है. इनके अलावा जवाहर लाल नेहरू की भूमिका में पवन चोपड़ा, बाबसाहेब अंबेडकर, मौलाना आजाद, सरदार पटेल (घनश्याम श्रीवास्तव) के किरदारों में सभी कलाकारों ने फिल्म में अपना योगदान ठीक ठाक दिया है. राजकुमार संतोषी इस ड्रामा पर ग्रिप ठीक बनाते हैं. निर्देशन में कई बार उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं. लेकिन फिल्म का ट्रीटमेंट, ऋषि पंजाबी की सिनेमैटोग्राफी, लाइट प्ले और मैक्रो वीडियोग्राफी ठीक लगती है.''
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