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Updated: 13 फरवरी, 2022 03:20 PM
सरिता निर्झरा
सरिता निर्झरा
  @sarita.shukla.37
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शकुन बत्रा की फिल्म गहराइयां लोगो के बीच मिला जुला रिव्यू पा रही है. एक मैं एक तू, कपूर एन्ड सन्स आदि फिल्म बनाने वाले शकुन रॉक ऑन और जाने तू या जाने न जैसी फिल्मो में असिसटेंट डाइरेक्टर रहे हैं. गहराइयां उनकी तरह की फिल्मा ही है. जहां इंसानी जज़्बातों को काला सफेद से हटा कर ग्रे एरिया में दिखाया गया. कोई सही गलत नहीं कोई अच्छा या बुरा नहीं केवल हालात एक खास तरीके से व्यवहार करने पर मजबूर करते हैं. साथ ही इंसान को महज़ मामूली इंसान बनाने वाली चाहतें पर्दे पर बखूबी दिखाई गयी हैं. कहानी टीया(अनन्या पांडे) अलीशा (दीपिका पादुकोण), करण (धैर्य करवा) और ज़ैन (सिद्धांत चतुर्वेदी) के इर्द गिर्द घुमती है जहां उनकी ज़िन्दगी हालातों और अपने चाहतों के चलते उलझती जाती है. किसी के साथ रिश्ते में होते हुए, किसी और के प्रति आकर्षित होना, ह्यूमन नेचर का हिस्सा ही है. गलत नहीं हां हर्ट ब्रेक की वजह बन सकता है. एक रिश्ते में धोखा दे कर अपनी गलत स्वीकारना, आसान नहीं होता लेकिन, ऐसे में सामने वाले को धोखा देना गलत ही नहीं गुनाह है जिसके सज़ा आप किसी न किसी रूप में कभी न कभी ज़रूर पाते हैं.

Gehraiyaan movie review in Hindi, Deepika Padukone, Siddhant Chaturvedi, Ananya Panday, Dhairya Karwa, Naseeruddin Shah, Rajat Kapoorदीपिका की गहराइयां एक ऐसी फिल्म है जिसे आज के युवाओं को जरूर देखना चाहिए

कहानी में बहुत स्तर पर आम ज़िंदगी की किताब का पन्ना नज़र आएगा. एक साथ एक घर में पले बढ़े भाई बहनों की ज़िंदगी बड़े हो कर एक सी नहीं होती. कोई बहुत आगे निकल कर पैसा शोहरत कमाकर एक खूबसूरत ज़िन्दगी जी रहा होता है वहीं दूसरा ज़िन्दगी में संघर्ष करने को मजबूर होता है. तो क्या ऐसे में एक दूसरे के बीच जलन होती है?

खुद सोचिये!

कहानी कुल मिला कर अच्छे लोगो की खराब स्तिथियों में मिलने की भी है. ये सभी किरदार अपने सपने पर काम कर रहे हैं ये बॉलीवुड में आये बदलाव का हिस्सा है. वर्ण हीरो या हेरोइन काम क्या करते हैं इसका पता कुछ ही फिल्मो में ज़रूरत के अनुसार बताया जाता है. तो ज़ैन रियल एस्टेट में अपना बड़ा सपना पूरा करने की चाहत लिए दिन रात एक कर रहे हैं और अलीशा योग स्टूडियो और एक एप्प पर काम कर रही हैं. कारण नौकरी छोड़ किताब लिख रहें हैं, और टिया सोच रही हैं की क्या करे- रिच गर्ल प्रॉब्लम,'सोच रही हूँ की पॉटरी क्लास करूं.'

ज़ैन अलीशा की क्रैक्लिंग केमिस्ट्री है. वेरी सेंशुअस. लव मेकिंग यानि बोल्ड सीन बेहद सलीके से फिल्माए गए और थोपे हुए नहीं लगे. हां आप इनकी उम्र याद रखियेगा. आज की पीढ़ी जो फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट हैं, और अपने रिश्तों को ठप्पे से जोड़ कर जीने में विश्वास नहीं करती है. प्री मैरिटियल सेक्स, शादी से पहले बच्चे इनमे से किसी पर भी संस्कृति की दुहाई मत दीजियेगा क्योंकि संस्कृति फेसबुक पर अलग और इंस्टाग्राम पर अलग और असलियत में अलग है.

तो फिल्म देखने के लिए आप अपने साथ एक खुला दिमाग ज़रूर रखें. ये न सोचे की, 'अरे ऐसी भाषा?' क्योंकि जेन - ज़ी,'द एफ वर्ड' का इस्तेमाल बहुत आसानी से बहुतायत में करती है. आपके सामने नहीं करती बस!

फिल्म के परतों में कुछ मुद्दे बड़ी महीनता से बीने गए हैं!

एक्स्ट्रा मैरीटीएल अफेयर में पुरुष और नारी दो होते हैं तो पिता और मां कोई भी इस रिश्ते में हो सकता है. मां को देवी दिखने वाले इस समाज में बॉलीवुड ने बड़े हौले से यह ख्याल सरका दिया है. मां भी रिश्ते से अनमनी हो कर किसी और दूसरे से प्यार कर सकती है. मां से पहले नारी है- देह और दिल के साथ!

परिवार सबसे पवित्र संस्था वाले देश में परिवार के बीच भी ऐसे रिश्ते होते हैं हालांकि इनपर बात कोई नहीं करता.

एक रिश्ते में एक साथी का धोखा देना, और उस धोखे के साथ जीना, न सिर्फ खुद उसे घुटन देता है बल्कि उसके साथ कई और ज़िंदगियां बर्बाद होती हैं.अवसाद ऐसे हालातों में बड़ी आसानी से आपको अपना ग्रास बना सकता है और अगर आप अपने दर्द से हट कर मौत में मोक्ष चाहते हैं तो पीछे रहने वाले हमेशा उस घुटन और बेबसी में जीने को मजबूर होते हैं. आत्महत्या की वजह, अवसाद ही नहीं हालातों और उस मकड़जल में फंसने से निकलने का रस्ता भी लगता है और कमज़ोर पलों में इंसान उसे अपना लेता है.

एक मेस्ड अप बचपन - बड़े होने पर भी पीछा नहीं छोड़ता. घरेलू हिंसा, अवसाद या माता पिता में से किसी की आत्महत्या बच्चे पर कभी न खत्म होने वाला साया डाल जाती है जिससे वो बार बार अलग होने के लिए जूझता है. आज के समाज, और परिवारों की स्तिथि की झलक मिलती है और आज के बच्चों पर इससे होने वाले असर की बानगी भी मिलती है.

ये नाज़ुक मुद्दे कहानी में नयेपन के साथ है और शायद इसी लिए इसे भारी होने से बचाते हैं. मसाला फिल्मो की ओवर द टॉप कहानी नहीं है और न ही एक्टिंग में आपको ड्रामा व् शॉकिंग ट्विस्ट मिलेंगे. बल्कि जब भी आप कुछ प्रिडिक्ट करेंगे, आपकी प्रिडिक्शन यानि सोच गलत साबित हो सकती है.

फिल्म का ट्रीटमेंट बेहद मिलेनियल किस्म का है. कहानी के भाव पुराने हैं लेकिन बुनावट नई है जो आपको बांधे रखती है. कुछ जगहों पर लॉजिक लगाने पर निराशा हाथ लग सकती है लेकिन यकीन जानिए उसके लिए फिल्म से अलयहदा सोचना पड़ेगा.

दीपिका पदुकोण हमेशा की तरह छाई हुई हैं और बला की खूबसूरत लगी हैं और उनकी अदाकारी दिन ब दिन निखरती जा रही है. अनन्या पांडे अपने हाव भाव पर थोड़ा और काम करें तो बेहतर हैं अथवा सोलो स्टारर फिल्म में लोग शायद न स्वीकारे. सिद्धांत चतुर्वेदी अपनी एक्टिंग का माद्दा फिर दिखाते हैं और धैर्य करवा स्पोर्टिंग कास्ट में बढ़िया हैं. फिल्म में नसीरुद्दीन साहब भी हैं. रोल छोटा लेकिन बेहद अहम और उनकी अदाकारी किरदार को ज़हन में छोड़ जाता है. कुल मिलाकर फ्रेश मॉडर्न और मैच्योर कहानी में बनी फिल्म!

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लेखक

सरिता निर्झरा सरिता निर्झरा @sarita.shukla.37

लेखिका महिला / सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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