Jagjit Singh की गजलों में जितना रस है, उतना ही उनकी कहानी में
मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह (Jagjit Singh) भले ही आज हमारे बीच न हों लेकिन आज भी अगर उनकी गजलें (Ghazals ) सुन ली जाएं तो उनकी आवाज़ में ऐसी खनक है कि आदमी बस उसमें खोकर रह जाए.
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आज स्वर्गीय जगजीत सिंह जी की पुण्यतिथि (Jagjit Singh Death Anniversary) है और इस देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके फैन आज उनको शिद्दत से याद कर रहे होंगे. मुझे याद है, सन 2011 में आज मैं लखनऊ में था जब मुझे यह दिल को चीर देने वाली खबर मिली थी और मन घंटों उदास था. अगर ग़ज़ल (Ghazal) की दुनिया के तमाम नामचीन लोगों की फेहरिस्त बनायीं जाए तो बेशक उसमें जगजीत सिंह जी का स्थान हमेशा सबसे बेहतरीन ग़ज़ल गायकों में रहेगा. उनकी आवाज में जो बात थी, वह सुनने वाले को दीवाना बना देती थी. एक बार अगर आपने उनको सुनना शुरू कर दिया तो आप यक़ीनन हर चीज भूल जाएंगे. मेरे यूनिवर्सिटी के ज़माने की बात है, हॉस्टल में रहने वालो लड़कों में से बहुत कम लोगों के पास ही टेप रिकार्डर हुआ करता था. मैं उन चंद खुशनसीब लड़कों में से था जिसके पास फिलिप्स का टेप रिकॉर्डर था और मेरे पास गजलों के कैसेट का खजाना था. अमूमन उस उम्र में हर प्यार करने वाले लड़के या लड़की के पास जगजीत सिंह साहब की गजल का कैसेट होना लाजमी था, आखिर उनकी मखमली आवाज में ही तो उनको सुकून मिलता था. ये और बात थी कि 1986 में जब मैं जगजीत सिंह साहब को सुना करता था, तब मेरे साथ के अधिकांश लड़के या तो फ़िल्मी गाने सुनते थे या अंग्रेजी पॉप या डिस्को. और इस वजह से बहुत से लड़के मेरे कमरे में बैठते भी नहीं थे कि गजल सुनना पड़ेगा.
जगजीत सिंह की आवाज़ में जादू ही कुछ ऐसा था कि उनको सुनते हुए आदमी उनकी ग़ज़लों में डूब जाता था
एक बार का किस्सा है, 1988 में मैं पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली गया था. मेरे एक करीबी रिश्तेदार थे जिनके यहां मैं मिलने गया था और वह फ़ौज में बहुत बड़े ओहदे से रिटायर हुए थे. उनके पास टू-इन-वन था और ढेर सारी गजलों के कैसेट. मैंने जगजीत सिंह साहब के गजल का कैसेट लगाया और सुनने लगा. उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने मुझसे पूछना शुरू कर दिया कि मैं कब से इनको सुनता हूं और मुझे यह क्यों पसंद हैं.
खैर थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे तमाम कैसेट दिखाकर पूछना शुरू किया कि क्या मैंने ये सब गजल सुनी है. मैंने जब हां में जवाब देना शुरू किया तो उनको बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने आखिर में कहा कि इस उम्र में ऐसा शौक कुछ ठीक नहीं लगता है. जब जब जगजीत सिंह का नया कैसेट रिलीज़ होता, हम उसे तुरंत खरीद कर लाते. कैसेट के दोनों तरफ गाने रिकॉर्ड होते थे और लगभग 8 से 10 गाने या गजल एक कैसेट में होते थे.
पहले तो एचएमवी के ही कैसेट हुआ करते थे और वे काफी महंगे होते थे लेकिन जैसे ही टी-सीरीज के कैसेट बाजार में आये, हमें काफी राहत मिल गयी (दरअसल ये कैसेट एचएमवी के तुलना में काफी सस्ते होते थे). उसके बाद हमारे एक दोस्त की शादी में बहुत महंगा वाला टू-इन-वन मिला जिसकी आवाज बेहद अच्छी थी. उस टू-इन-वन पर जगजीत सिंह साहब को सुनना मतलब क्या कहा जाए, मजा आ जाता था.
उस समय हमने गुलाम अली साहब को भी सुना, तलत अज़ीज़ को भी सुना और पंकज उधास को भी, लेकिन दिल में कोई उतरा तो वह जगजीत सिंह ही थे. समय बीतता गया, हम लोग कैसेट से सीडी पर आये और फिर एक समय आया कि एक सीडी में 30 से 40 तक गाने आने लगे. ये महंगे भी नहीं थे और हम संगीत प्रेमियों की तो जैसे लाटरी ही लग गयी. फिर तो सीडी प्लेयर में जगजीत सिंह के गजलों का सीडी लगाकर हम लोग आकर रात को बहुत देर तक सुना करते थे.
धीरे धीरे नौकरी करते समय यह इच्छा भी जोर पकड़ने लगी कि एक बार तो इनको लाइव सुनना है, मिलने का तो सोच सकना मुश्किल था. फिर शायद 2009 या 2010 का साल था, मैं मुंबई में था और जगजीत सिंह का प्रोग्राम वासी में होने की खबर मिली. टिकट काफी महंगा था लेकिन मौका छोड़ना असंभव था. मैंने और एक दोस्त ने टिकट ख़रीदे और जगजीत साहब को सुनने वासी के ऑडिटोरियम पहुंच गए.
लगभग 2 घंटे से ज्यादा समय तक उनका प्रोग्राम चला और मुझे अच्छी तरह से याद है कि प्रोग्राम के बीच में ही मेरे मोबाइल का टॉक टाइम बैलेंस ख़त्म हो गया. दरअसल उस समय रिकॉर्ड करना आता नहीं था और मैंने अपने सभी दोस्तों को फोन लगाकर उस प्रोग्राम को सुनाया. पहले से पता नहीं था इसलिए फोन में बैलेंस भी ज्यादा नहीं था और आधे समय में ही वह ख़त्म हो गया. लेकिन उस दिन जो हासिल हुआ, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.
जिस गायक को आप पिछले पच्चीस सालों से दीवानों की तरह सुनते रहे हों, उसे सामने से गाते हुए देखना और सुनना अकल्पनीय सुख था.लेकिन इतने बेहतरीन गायक और इंसान की निजी जिंदगी भी बहुत आसान नहीं रही, उनके पुत्र विवेक की मौत सिर्फ 20 वर्ष के उम्र में सड़क दुर्घटना में हो गयी और उस वाकये ने जगजीत सिंह और चित्र सिंह को बुरी तरह से तोड़ दिया. इसी से जुड़ा एक वाक्य है जिसे मैंने सुना था. दरअसल जिस दिन विवेक का एक्सीडेंट हुआ उस दिन जगजीत सिंह को एक प्रोग्राम में गाना था.
उनकी इच्छा उसमें गाने की नहीं थी तो उन्होंने मना कर दिया. लेकिन आखिर में उनको मज़बूरी में गाना ही पड़ा और उन्होंने जो गजल गायी थी, वह गजल थी "दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह". और उसी रात उनको खबर मिली उनके पुत्र के एक्सीडेंट की और शायद उनकी वो दुआ कुबूल हो गयी जिसे किसी भी हालत में कुबूल नहीं होना चाहिए था. खैर उनके निधन के बाद चित्र सिंह ने भी पब्लिक लाइफ से बिलकुल किनारा कर लिया.
ये संयोग ही था कि मैं जोहानसबर्ग से मार्च 2017 में लौटा और अप्रैल 2017 में बनारस के संकट मोचन संगीत समारोह में चित्र सिंह जी के आने की सूचना मुझे मिली. अब बनारस में रहते इस कार्यक्रम को मैं कैसे छोड़ सकता था, एकज उम्मीद बंधी थी कि शायद चित्र सिंह गजल गायन में वापसी करें.
लेकिन वह मंच पर तो आयीं लेकिन उन्होंने विनम्रता से गाने से मना कर दिया. शायद भविष्य में ऐसा हो कि चित्र सिंह जी पुनः गाने के बारे में सोचें और मुझे उनको भी सामने से सुनने का मौका मिले. जो भी हो लेकिन पद्मभूषण जगजीत सिंह साहब हमारे दिलों में अमर हैं और रहेंगे.
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