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Updated: 18 जनवरी, 2020 03:31 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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जेएनयू से लेकर जामिया और शाहीनबाग तक CAA protest के बाद अगर कोई चीज कॉमन है तो वो है कश्मीर (Kashmir issue in CAA protest). शायद ही कोई दिन बीतता हो देश में कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसा होता है जो 'फ्री कश्मीर' की वकालत (Free Kashmir demand during CAA protest) कर देता है. जैसा रुख देश भर के लोगों का अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के लिए है. कहा जा सकता है कि ये आगे भी एक मुद्दा रहेगा. जिसे लोग अपनी सुचिता और सुविधा के अनुरूप भुनाते रहेंगे. बात कश्मीर की हुई है तो जब सब बिन्दुओं पर चर्चा होगी तब कश्मीरी पंडितों का जिक्र भी आएगा. बिना कश्मीरी पंडितों के कश्मीर(Kashmir without Kahsmiri Pandits) का जिक्र अधूरा है. 90 के दशक में अलगाववादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों के साथ खूब ज्यादती हुई (Exodus of Kashmiri Pandits). 90 के दौरान कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) ने क्या क्या खेला है इसका एहसास हमें विधु विनोद चोपड़ा (Film Director Vidhu Vinod Chopra) की आने वाली फिल्म शिकारा (Vidhu Vinod Chopra Shikara on Kashmiri Pandits ) कराएगी. आज 30 साल बाद फिल्म के जरिये कश्मीरी पंडितों को पीड़ित-प्रवासी माना गया है. फिल्म अभी आई नहीं है मगर फिल्म का ट्रेलर आ गया है. ट्रेलर देखें तो मिलता है कि फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ हुई प्रताड़ना को दिखाया गया है लेकिन फिल्म का केंद्र 'लव स्टोरी' है. फिल्म का ट्रेलर फिल्म देखने पर मजबूर कर रहा है.

वसीम रिजवी, फिल्म, कश्मीरी पंडित, कश्मीर, हिंसा, Waseem Rizvi  कश्मीरी पंडितों के रूप में जो विषय वसीम रिजवी ने उठाया है वो आज के समय का हिट विषय है

सवाल होगा ये बातें क्यों? कश्मीर और कश्मीरी पंडितों का जिक्र किसलिए? वजह हैं शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैंन वसीम रिज़वी. विधु विनोद चोपड़ा की ही तरह रिजवी भी फिल्म बना रहे हैं मगर रिज़वी की फिल्म 'लव स्टोरी' नहीं है. फिल्म का पहला पोस्टर और फिल्म क्यों बनी इसपर जो बातें वसीम रिजवी ने कहीं हैं अगर उनपर गौर करा जाए तो मिलता है कि फिल्म पूरी तरह कश्मीरी पंडितों पर हुई यातना के इर्द गिर्द है. इसे पॉलिटिकल रखा गया है. इसमें कोई लाघ लपेट नहीं की गई है.

फिल्म को लेकर क्या कहा है रिजवी ने

अपनी आने वाली फिल्म के बारे में बात करते हुए रिजवी ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर 1 मिनट 15 सेकंड का एक वीडियो डाला है. वीडियो में वसीम ने ऐसा बहुत कुछ कहा है जो उनके इरादे दर्शाता है और बताता है कि फिल्म में सिर्फ और सिर्फ कश्मीरी पंडितों को मिली यातनाओं पर बात की गई है.

वीडियो में वसीम ने कहा है कि, इस्लाम धर्म के मानने वालों ने इस्लाम को अब दहशतगर्दी का मज़हब बना दिया है. इस्लाम अब अमन का मज़हब नहीं रह गया इस्लामिक मुल्क में गैर मुसलमानों को अपने धर्म के त्योहारों को मनाने की इजाजत नहीं है. वो त्योहारों के दिन डरे और सहमे हुए रहते हैं जबकि हिंदुस्तान में ईद बकरीद और तमाम मुस्लिम त्योहारों की छुट्टियां होती हैं. यहां तक की अलविदा की नमाज पढ़ने तक की भी छुट्टी दी जाती है.

फिल्म और कश्मीर दोनों का जिक्र करते हुए वसीम ने कहा है कि हिंदुस्तान में जहां एक राज्य, जिसकी मुस्लिम बाहुल्य आबादी है और जिसका नाम है कश्मीर. 1990 में इस्लामिक कट्टरपंथी मानसिकता रखने वाले दहशतगर्दों ने कश्मीरी पंडितों को धर्म के आधार पर कश्मीर से जालिमाना तरीके से घर निकाला दे दिया और 3 लाख से ज्यादा कश्मीरी हिंदू अपने ही मुल्क में बेघर हो गए.

वसीम के अनुसार सनोज मिश्रा के निर्देशन में बनी ये फिल्म तैयार है. जिसका पहला पोस्टर वसीम रिजवी फिल्मस द्वारा जारी किया जा रहा है. और इसका पहला ट्रेलर 26 जनवरी के बाद जारी किया जाएगा.

क्या कहता है फिल्म का पोस्टर

कश्मीरी पंडितों पर आधारित वसीम रिजवी की आने वाली फिल्म 'श्रीनगर' के पोस्टर पर अगर नजर डाली जाए तो मिलता है कि 4 लेयर में बने इस पोस्टर में सबसे पहली लेयर में बलात्कार की शिकार एक कश्मीरी पंडित महिला को दर्शाया गया है.

1990 के दौरान जो घटा है अगर उसे याद किया जाए तो पुरुषों से ज्यादा यातनाएं महिलाओं ने झेली हैं. तमाम मौके आए भी आए जिनमें महिलाओं को मारने से पहले उनका बलात्कार किया गया. पोस्टर की दूसरी लेयर एक साइनबोर्ड है जिसमें लिखा है कि कश्मीरी पंडितों का प्रवेश निषेद है और इसे खतरे के निशान के रूप में दर्शाया गया है. बात अगर पोस्टर की तीसरी और चौथी लेयर की हो तो तीसरी लेयर में एक फांसी का फंदा दर्शाया गया है जो शायद 1990 में कश्मीर में हुए नरसंहार का प्रतीक है. पोस्टर की चौथी लेयर में जम्मू कश्मीर स्थित अनंतनाग कामार्तंड (सूर्य) मंदिर है जिसका इस्तमाल शायद पोस्टर में जम्मू और कश्मीर की संस्कृति दर्शाने के लिए किया गया है.

हिट आईडिया लेकर आए हैं रिजवी

वर्तमान परिदृश्य में जहां कहीं भी कश्मीरियों के हकों की बात हो रही कश्मीरी पंडितों का जिक्र अपने आप हो रहा है. लोग आज प्रायः यही कहते मिल रहे हैं कि जब हम एक तरफ कश्मीरियों के अधिकारों की बात कर रहे हैं तो आखिर कैसे हम उन कश्मीरी पंडितों को भूल सकते हैं जिन्हें कट्टरपंथियों द्वारा तमाम तरह की यातनाएं दी गयीं और जिन्हें उनके अपने ही घर से निकाला गया. कह सकते हैं कि फिल्म के नाम पर जो आईडिया वसीम रिजी लेकर आए हैं वो हिट आईडिया है और मार्केट में दौड़ने वाला है.

इस तरह का प्रयोग वसीम रिजवी के लिए नया नहीं है

हो सकता है कि इस्लाम पर तीखे प्रहार करने के कारण वसीम रिजवी की आलोचना हो. लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं है जब वसीम ने किसी संवेदनशील विषय को उठाया है और उसपर फिल्म बनाई है. अयोध्या फैसल आने से पहले भी वसीम राम जन्मभूमि नाम से फिल्म बना चुके हैं जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह द्वारा करवाए गए गोलीकांड से लेकर हलाला प्रथा, ट्रिपल तलाक, बाबर के इतिहास, हिंदू और सहिष्णुता जैसे बिन्दुओं को छुआ और एक वर्ग की तीखी आलोचनाओं का सामना किया.

वसीम की आने वाली फिल्म कितनी बड़ी सुपरहिट होती है? कितने लोगों को प्रभावित कर पाती है? फिल्म को लेकर वसीम कितना आलोचकों के निशाने पर आते हैं इन सभी प्रश्नों के जवाब हमें वक़्त देगा. मगर इस बात में कोई शक नहीं है कि जो साहस वसीम रिजवी ने किया है और जिस तरह कश्मीरी पंडितों के रूप में एक विवादस्पद टॉपिक को उठाया है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि ये मौजूदा वक़्त का एक ऐसा हिट टॉपिक है जिसके विषय में लोग बातें करने के अलावा ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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