मुहब्बत की मूरत मीना कुमारी और उनकी बेचैन लव स्टोरी
लाखों लोग हैं जिन्होंने मीना कुमारी को चाहां. मगर ये वाकई अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि जिसे मीना ने खुद चाहा और जिसके लिए उन्होंने सबकुछ किया उससे उन्हें वो प्यार नहीं मिल पाया जिसकी उन्हें दरकार थी.
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'...मुझे मुहब्बत से मुहब्बत है!' और फिर उनको ही मुहब्बत न मिले तो जिंदगी फिर जिंदगी कहां रहती है. वो बस एक उम्र की तरह हो जाती है जिसे सिर्फ गुजार दिया जाता है. जीया नहीं जाता. 'महजबीं बेगम' यानी 'मीना कुमारी' ने भी जिंदगी गुजारा ही जीने की कोशिश में. जिसे अपना सरमाया चुना उसी ने उसे जिंदगी की धूप में झुलसने को छोड़ दिया. ऐसा नहीं है कि महजबीं को मुहब्बत नहीं हुई. उन्हें मुहब्बत हुई थी. जिससे हुई निकाह भी उसी से किया. मगर वो जो नसीब में नहीं लिखा हो तो साथ होकर भी साथ को तरसते हैं न, महज़बीं के साथ भी वही हुआ. बात उन दिनों की है जब 'महल' फिल्म को निर्देशित करने की वजह से रातों-रात स्टार बनें कमाल अमरोही की तस्वीर किसी मैगजीन में छपी. मीना कुमारी ने देखा. तस्वीर के साथ नीचे निर्देशक और 'लेखक' लिखा हुआ था. वही लेखक जहन में उतर गया मीना के. बिना किसी मुलाकात के मन ही मन चाहने लगी थी उस अजनबी को.
कहा जाता है कि मीना कुमारी ने कमाल से इश्क सिर्फ उनकी तस्वीर देखकर किया था
बाद में किसी मित्र के जरिये कमाल और मीना मिले. कमाल ने तब अपनी अगली फिल्म के लिए उन्हें साइन किया. जिसका नाम अनारकली रखा था. ये और बात है कि कम बजट के चलते वो फिल्म कभी न बन पायी मगर मीना और कमाल एक दूसरे के साथ बंध गए हमेशा के लिए. जब कमाल ने मीना कुमारी को बतौर अभिनेत्री अपने फिल्म के लिए चुना उसी के कुछ दिन बाद मीना कुमारी का एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया. मीना अब पुणे के एक अस्पताल में भर्ती थी और कमाल मुंबई में रह गए.
लेकिन इश्क रूह को खींचता है अपनी तरफ
कमाल मीना से मिलने के लिए मुंबई से पुणे आने लगे. विनोद मेहता जिन्होंने बॉयोग्राफी लिखी है मीना कुमारी की, उन्होंने इस बात का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि, 'जब कमाल आते थे तो वो साथ में मीना कुमारी के लिए चिट्ठियां लिख कर लाया करते थे. हॉस्पिटल में मीना भी उनके लिए चिट्ठियां लिख उनके आने का इंतजार करती थी. दोनों की मुलाकातों के पल छोटे होते थे इसलिए वो चिट्ठियों के ज़रिये बतिआते थे.' बाद जब मीना कुमारी ठीक होकर मुंबई लौटीं तो कमाल के बिना रह पाना उनके लिए नामुमकिन सा हो गया लेकिन अपने सख्त अब्बू से मीना को बहुत डर लगता था.
उन्हें अपने बचपन के वो दिन याद आने लगते जब उनके अब्बू उन्हें जबरदस्ती मार-पीट कर फिल्मों के सेट पर ले जाया करते थे. नन्हीं महजबीं को पढ़ना था, अपना बचपन जीना था मगर उनके अब्बू ने न उनसे सिर्फ उनका बचपन छीना था बल्कि उन्हें स्कूल भी नहीं जाने दिया. उन्हें महज चार साल की उम्र में महजबीं से बेबी मीना बना कर फिल्मों में काम करने पर मजबूर कर दिया. ऐसे पिता का खौफ होना लाजमी था मगर इश्क के आगे खौफ़ कब तक टिक पाया है.
कमाल, मीना से काफी बड़े थे मगर तब भी एक जीवनसाथी के रूप में उन्होंने उन्हें ही चुना
14 फरवरी 1952 में सारी दुनिया की नजरों से बचते-बचाते मीना कुमारी ने निकाह कर लिया अपने महबूब से. एक ऐसा महबूब जो चिट्ठियां लिखा करता था. जो बचपन के मिले जख्मों पर अपने इश्क का मरहम लगाता था. वो महबूब जो उनसे उम्र में कोई 13 साल बड़ा था लेकिन जिसके साये में मीना खुद को सबसे ज़्यादा महफूज महसूस करती थी. लेकिन ये निकाह वाली बात ज्यादा दिन तक अब्बूजान से मीना कुमारी छिपा नहीं पायी.
निकाह के लगभग साल भर बाद यानी 1953 में अब्बू को पता चल गया कमाल के बारे में. उनके लिए बात बर्दाश्त के लायक नहीं थी क्योंकि कमाल की पहले से दो बीवियां और तीन बच्चें थे. ऊपर से वो मीना कुमारी से उम्र में भी काफी बड़े थे. उन्होंने निकाह तोड़ने की हर संभव कोशिश की मगर निकाह नहीं तोड़ पाए. और मीना कुमारी अपनी कमाई सब धन-दौलत अब्बू के घर में छोड़ सिर्फ कुछ साड़ियां ले रात को अचानक कमाल के घर पहुंच गयी रहने.
मीना कुमारी को लगा अब उनके सभी सपने सच होंगे. उनकी मुहब्बत मुकम्मल हो चली है. वो जो खुशियां उन्हें अब तक नसीब नहीं हुई अब होंगी मगर उनका ये सोचना गलत निकला. कमाल अब पति बन गए और महबूब को कहीं पीछे छोड़ आये. उन्हें मीना कुमारी की सफ़लता से जलन होने लगी. वो उन पर शक करने लगे. उन्होंने मीना कुमारी के ऊपर तमाम पहरे बिठा दिए. मीना उनकी मुहब्बत में थीं. वो उनकी हर ज्यादती को प्यार समझ सिर-माथे पर बिठाती रही. लड़ाइयां न हो, ये रिश्ता बचा रहे इसलिए शाम 6.30 तक वो हर हाल में घर वापिस लौट आती. मगर कमाल का मर्द वाला ईगो इन चीजों को कहां समझने को तैयार था.
ऐसा कहा जाता है कि 'दिल अपना और प्रीत पराई' के प्रीमियर पर किसी ने कमाल को मीना का पति कह कर तब किसी महाराष्ट्र के मंत्री में मिलवाया इस बात से वो इस कदर खफा हुए कि मीना कुमारी को वहां अकेले छोड़ घर चले गए. रोज-रोज के हो रहे झगड़े से उकता कर मीना कुमारी ने एक बार ये फैसला भी किया कि वो अब फ़िल्में नहीं करेंगी. उन्होंने सोचा शायद कोई बच्चा हो उन दोनों का तो यूं बढ़ती दूरियां फिर नज़दीकियों में सिमट आएंगी मगर कमाल को ये भी मंजूर न था.
जैसे जैसे दिन बड़े कमाल और मीना के बीच प्रेम खत्म हो गया और हालात बद से बदतर हो गए
कमाल को जानने वाले ये कहते हैं कि चूंकि कमाल शिया वर्ग की उच्च ‘सैयद’ जाति से आते थे और मीना कुमारी एक डांसर की बेटी थी. इसलिए उन्हें मीना कुमारी के साथ कोई बच्चा नहीं चाहिए था. खुद ‘शायरा’ मीना ने जिस निर्देशक के नाम के नीचे लिखे 'लेखक' शब्द को पढ़ उनसे मुहब्बत कर बैठी थी वो लेखक उन्हें कभी मिला ही नहीं. हां, निकाह से पहले महबूब में जरूर उन्होंने उस लेखक को थोड़ा जीया मगर निकाह के बाद वो सिर्फ पति बन कर रहें.
कमाल के लिए मीना का छोटी जाति से होना, एक डांसर की बेटी का होना उनके लिए उनकी मुहब्बत से बड़ा था निकला. मीना कुमारी की बहन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि, "मीना कुमारी कभी अपनी निजी जिंदगी उजागर करने में यकीन नहीं रखती थी. उन्होंने हमेशा कमाल को ‘कमाल साहब’ कहा. लेकिन लोगों ने उनके चेहरे पर चोट के निशान भी देखे और फीकी मुस्कराहट के साथ उस दर्द को छुपाने की उसकी कोशिश को भी देखा.
लेकिन आखिर कब तक खुद को मिटाती रहती मुहब्बत के नाम पर. जब कमाल ने उन पर पहरे बिठाना शुरू क्र दिया तो वो हार कर आखिर 12 साल बाद 1961 में उनका घर छोड़ आयी मगर मुहब्बत दिल से नहीं निकाल पायीं. कमाल से अलग होने के बाद मीना ने 'साहेब, बीवी और गुलाम' में काम किया. उस फिल्म में निभाए 'छोटी बहू' के किरदार की ही तरह मीना कुमारी ने असली जीवन में भी काफी ज्यादा शराब पीना शुरू कर दिया.
जिससे प्रेम किया था वो उन्हें समझा नहीं बाद में कई और मर्द आये उनकी ज़िंदगी में मगर सिर्फ अपने मतलब के लिए. एक बाप था जिसके लिए वो सिर्फ पैसे कमाने की मशीन भर थी. तो फिर जीती तो जीती किसके लिए वो?
मीना कुमारी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा भी था,
'ख़ुदा के वास्ते गम को भी तुम न बहलाओ,
इसे तो रहने दो मेरा, यही तो मेरा है!'
आख़िर कब तक लड़ती और किससे लड़ती
आप एक बार जिससे मुहब्बत कर लेते हो उससे नफरत कहां कर पाते हैं. आप समझते हैं कि बदल लेंगे उस शख़्स को अपने प्रेम से, उसे समझा देंगे मायने प्रेम के लेकिन जब आप कुछ भी नहीं कर पाते हैं तब आप 'महजबीं बेगम' बन जाते हैं और एक नहीं जाने की उम्र में चले जाते हैं इस दुनिया से उस दुनिया में जहां से कोई लौट कर नहीं आता.
महजबीं जो अगर आप होती तो आज 86 साल की सबसे खूबसूरत स्त्री होती. मगर आप नहीं हो कर भी हैं यहीं इस दुनिया में. आप उन दिलों में नशा बन कर उतरती हैं जिनकी रूह मुहब्बत से बंधी रहती है. दिन मुबारक हो 'बेगम साहिबा!'
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