बॉलीवुड के सिरफिरे सितारों को माफ क्यों कर देती है जनता?
बॉलीवुड का आदर्श वाक्य है- 'अंततः जनता ही सबकुछ तय करती है.' ये एक साफ झूठ है. जिसे अपनी कमियों को छुपाने के लिए गढ़ा गया है.
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कंगना रनौत द्वारा भाई-भतीजावाद विवाद की शुरुआत किए एक साल से ऊपर हो गया है. अब तक कंगना ने जिस इंसान पर नेपोटिज्म का पहली बार आरोप लगाया था उसके साथ "नेपोटिज्म के किंग" का टैग पूरी दृढ़ता से जुड़ चुका है. वो व्यक्ति है- करण जौहर. इस समय, नेपोटिज़्म और उसमें करण जौहर की भूमिका सोशल मीडिया से आगे बढ़कर अब व्यंग्य का विषय हो गए हैं. आलम ये है कि हर बार जैसे ही करण जौहर किसी नई फिल्म की घोषणा / प्रचार करते हैं, ट्विटर पर लोगों को उनका मजाक बनाने का और अधिक मौका मिल जाता है.
हालांकि, इस तरह के आरोप प्रत्यरोपों से कम से कम करण जौहर को तो कोई फर्क नहीं पड़ता. फिर सामने वाला चाहे कितनी भी ताकत लगाकर उनपर वार करे वो कुछ नहीं कहेंगे उसका वो कोई जवाब नहीं देने वाले. बल्कि अब तो ऐसा लगता है कि जौहर पर भाई भतीजावाद के जितने ज्यादा आरोप लगे, जौहर ने उतनी ही तत्परता से बॉलीवुड में स्टार किड को लॉन्च और रिलॉन्च किया.
भाई भतीजावाद को बढ़ावा नहीं देते करण बल्कि वो तो इस व्यवस्था के 'शिकार' हैं
दो साल पहले एक इंटरव्यू में करण जौहर ने पूरी दृढ़ता से ये बात कही थी कि इंडस्ट्री में नए लोगों की इंट्री दर्शक ही नहीं चाहते. और उसके बाद फिर कंगना की टिप्पणी आई. जिस पर जौहर ने कहा था- उसे "महिला" या "विक्टिम" कार्ड खेलना बंद कर देना चाहिए या फिर इंडस्ट्री छोड़कर चले जाना चाहिए. इसके बाद नेपोटिज्म बहस को खत्म करने के उद्देश्य से निर्माता-निर्देशक ने एक कॉलम लिखा. इस कॉलम से ये पता चलता है कि करण की सोच आज भी सामंतीवादी ही है. और जहां तक "टैलेंट" का अर्थ है तो वो उसकी कमी खुद उनमें ही है. इसके तुरंत बाद वो कुख्यात आईफा अवार्ड वाली "नेपोटिज़्म रॉक्स" घटना हुई. इस घटना ने इतना तूल पकड़ा कि करण जौहर जैसे ढीठ, बदमिजाज इंसान को भी माफी मांगनी पड़ गई.
हालांकि उनकी माफी खोखली ही थी. अपनी सामंती मानसिकता को बदलने का उन्होंने कोई संकेत नहीं दिखाया. स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 में टाइगर श्रॉफ दिखाई देंगे. इसके अलावा करण जोहर 'ब्रह्मस्त्र' फिल्म का भी निर्माण कर रहे हैं, जिसमें रणबीर कपूर और आलिया भट्ट दिखेंगे और इसका निर्देशन अयान मुखर्जी द्वारा किया जा रहा है. इसका मतलब ये है कि करण जौहर जितना संभव हो सके उतना ही नियोपोटिज्म को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. वो भी हर जगह, कैमरे के सामने भी और उसके पीछे भी.
बिना किसी एक्टिंग अनुभव के फिल्म में लीड रोल 'टैलेंट' वालों को ही मिलता है
अभी हाल ही में, उन्होंने दावा किया था कि जल्द ही रीलिज होने वाली फिल्म 'धड़क' में बोनी कपूर और श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर और शाहिद कपूर के भाई ईशांत खट्टर को कास्ट करने के पीछे का कारण सिर्फ और सिर्फ उनका टैलेंट है. और बिना किसी एक्टिंग अनुभव वाले इन दोनों स्टार किड्स को फिल्म के लीड रोल के लिए लॉन्च करने में नेपोटिज्म का कोई लेना देना नहीं है.
लेकिन ये नेपोटिज्म ही है. अपनी किताब के लॉन्च के समय, जौहर ने दावा किया था कि अपनी फिल्म 'कल हो न हो' में वो करीना को कास्ट करना चाहते थे. लेकिन उन्हें इस बात का बहुत दुख हुआ कि करीना, फिल्म के लीड एक्टर शाहरुख खान के बराबर की फीस मांग रही थी. हालांकि करण जौहर बहुत उदार दिखने की कोशिश कर रहे हैं. वो खुद को ऐसे व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करते रहे हैं जो इस देश के कुछ प्रतिकूल कानूनों का शिकार है. लेकिन सच्चाई ये है कि स्त्रियों के प्रति द्वेष के भाव, जातिवाद (जो नेपोटिज्म की जड़ है), और स्टार लोगों के नखरों के केंद्र में वो ही हैं. उनके अप्रत्याशित रूप से प्रतिकूल और अनैतिक बयान, इस बात को दर्शाते हैं और साबित करते हैं कि उन्होंने इसका भरपूर दुरुपयोग किया है.
#MeToo कैंपेन के बाद से लोग सेलिब्रिटी लोगों के गैरसंवेदनशील बयानों और कामों की भर्त्सना करने में पीछे नहीं हैं. यहां तक की अतुल कोचर को उनकी एक अमर्यादित टिप्पणी के लिए बाहर निकाल दिया गया.
फिर ये बॉलीवुड सेलिब्रिटी पर क्यों नहीं अप्लाई होता?
स्टार किड्स को प्रोमोट करके ये लोग जनता के उपर बात डाल देते हैं
करण जौहर सिर्फ एक उदाहरण हैं. सलमान खान और संजय दत्त जैसे उदाहरण फिल्म इंडस्ट्री में भरे पड़े हैं जिनका अपराधों से पुराना नाता रहा है. जो अपने आपराधिक चरित्र, महिलाओं के प्रति अभद्र टिप्पणी और कामों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहे हैं. यहां तक की भाई भतीजावाद के मुद्दे पर खुद सैफ अली खान ने करण जौहर के साथ मिलकर कंगना का मजाक बनाया था. लेकिन उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया.
ये सच्चाई कि ऐसे लोग न सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में लगातार काम करते रहते हैं, और इतना ही नहीं वो ही फिल्म इंडस्ट्री को नियंत्रित भी करते हैं. ये बॉलीवुड के उस दावे के ठीक उल्टा है जिसमें वो कहते रहते हैं कि दर्शकों के जरिए ही सब तय होता है.
बॉलीवुड के आदर्श वाक्य है- अंततः जनता ही सबकुछ तय करती है. ये एक साफ झूठ है. जिसे अपनी कमियों को छुपाने के लिए गढ़ा गया है. या तो हमारे विचारों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, या फिर बॉलीवुड ने यह सुनिश्चित किया है कि हम इन हस्तियों से इतने प्रभावित होकर रहें कि हमें उनकी कोई भी गलती दिखे ही नहीं.
बॉलीवुड में करण जौहर एक नामी निर्माता निर्देशक बने रहेंगे. इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वो क्या कहते हैं. क्या करते हैं. सलमान खान सबसे बिकाऊ स्टार बने रहेंगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या करता है. जैसे आजादी के पहले आम लोगों के पास इस बात को तय करने की कोई आजादी बात नहीं थी कि उनका शासक कौन होगा. उसी तरह बॉलीवुड के दर्शकों के पास वास्तव में कोई अधिकार नहीं है कि इस इंडस्ट्री को कौन कंट्रोल करेगा.
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