कन्नड़ एक्ट्रेस प्रणीता सुभाष का हिंदुत्व बॉलीवुड के कई लिबरल एक्टर्स को आईना दिखा देगा!
प्रणीता सुभाष अनपढ़ महिला नहीं हैं, ना ही उन्हें कोई पति की पूजा करने के लिए मजबूर कर रहा है. तो फिर अब रत्ना पाठक शाह की कहीं बातों का क्या होगा?
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कन्नड़ अभिनेत्री प्रणिता सुभाष (Pranitha subhash) के इस रूप को देखकर, उन तमाम लिबरल एक्टर्स का दिमाग ठनक गया होगा जो हिंदू धर्म का मजाक बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. चाहें फिल्में हों या निजी जिंदगी, कई बार बॉलीवुड वालों ने खुद को माडर्न दिखाने के चक्कर में हिंदू देवी देवताओं और त्योहार का अपमान किया है.
असल में कुछ दिनों पहले प्रणीता सुभाष ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की थी. जिसमें वे भीमा अमावस्या के दिन पारंपरिक अंदाज में पति के चरणों की पूजा करती दिख रही हैं. साउथ इंडिया में भीमा अमावस्या का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. मान्यता है कि भीमा अमावस्या के दिन ही भगवान शिव मां पार्वती की भक्ति को समझ सके थे. इस तस्वीर को देखकर लोगों ने अभिनेत्री की तारीफ की हैं, वहीं कुछ लोगों को मिर्ची भी लग सकती है.
शायद यह संयोग है कि प्रणीता सुभाष की तस्वीर वायरल होने के कुछ दिन बाद ही बॉलीवुड एक्ट्रेस रत्ना पाठक शाह ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि "मैं पागल हूं क्या जो करवाचौथ का व्रत करूंगी? यह हैरानी की बात है कि आज के समय में मॉडर्न और पढ़ी-लिखी महिलाएं ऐसी चीजें कर रही हैं."
प्रणीता सुभाष अनपढ़ महिला नहीं है, तो फिर अब रत्ना पाठक शाह की कहीं बातों का क्या होगा?
रत्ना पाठक के हिसाब से पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना गंवार महिलाओं का काम है. माने पढ़ी-लिखी महिलाओं को अपना त्योहार मनाना ही छोड़ देना चाहिए. हिंदू एक ऐसा धर्म है जिसमें नई चीजों को स्वीकार कर लेने की क्षमता है. तभी तो नए जमाने में अब कई पुरुष भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखने लगे हैं. दोनों साथ में इस उत्सव को मनाते हैं और इसी बहाने दोनों प्रेम संबंध को नई उर्जा दे पाते हैं. अब त्योहार तो सबका होता है, इसमें क्या गंवार और क्या शिक्षित...वैसे भी महिला के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि उसे व्रत रखना है या नहीं रखना है. चाहें वह पढ़ी-लिखी हो या घरेलू...
प्रणीता सुभाष का हिंदुत्व बॉलीवुड लिबरल एक्टर्स पर भारी
उदयपुर में जब कन्हैया लाल की बेरहमी से हत्या कर दी गई तो कई बॉलीवुड के लिबरल लोगों ने चुप्पी साध ली थी. उस वक्त प्रणीता सुभाष ने बड़ी शांति पूर्वक अपनी बात रखी थी. जी हां, उदयपुर हत्याकांड पर साउथ एक्ट्रेस प्रणीता ने सोशल मीडिया पर 'हिंदू लाइव्स मैटर' की तख्ती थामे एक तस्वीर शेयर की थी और लिखा था कि "क्या कोई सुन रहा है?" प्रणीता ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा था कि "काश मैंने उदयपुर का वीडियो नहीं देखा होता. सच में यह आतंक है. पीछे से सुनाई देने वाली ये चीखें हमारे दिमाग में गूंजेंगी और लंबे समय तक हमें परेशान करेंगी."
प्रणीता सुभाष की तख्ती थामी हुई तस्वीर उस समय वायरल हुई जब लोग खौफ में खामोश थे. उसी समय इंडिया टुडे से बातचीत में प्रणीता सुभाष ने कहा था कि "कश्मीर में होने वाली हिंदुओं की हत्या को हमने आतंकवाद और अल्पसंख्यक हिंदू जैसी बातें मानकर तसल्ली कर ली कि, लेकिन राजस्थान जैसे राज्य में जहां हिदू बहुसंख्यक हैं वहां अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए कन्हैया लाल की गर्दन रेत दी जाती है, यह जानकर बड़ी हैरानी होती है".
देखिए कब-कब हिंदू धर्म का फिल्मों में अपमान हुआ?
-हाल ही में लीना मणिमेकलई की डाक्यूमेंट्री फिल्म के पोस्टर में मां "काली" को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया था.
-आमिर खान की फिल्म "पीके" में भगवान शिव का रूप धारण करने वाले किरदार को एलियन से डरकर टॉयलेट में भागते हुए दिखाया गया था.
-फिल्म 'अतरंगी रे' में एक्ट्रेस सारा अली खान एक डायलॉग बोलती हैं जिसमें वे भगवान शिव और हनुमान जी के प्रसाद को लेकर अपशब्द कहती दिखती हैं.
-मोहम्मद जुबैर ने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'किसी से न कहना' की एक क्लिप शेयर की थी. जिसमें एक होटल के बोर्ड पर 'हनुमान होटल' लिखा दिखा रहा है. मगर पोस्ट को ध्यान से देखेंगे समझ आएगा कि पहले इस पोस्टर पर 'हनीमून होटल' लिखा हुआ था. जुबैर ने इसे 2014 से पहले औऱ बाद की तस्वीर बताकर खिल्ली उड़ाई थी.
-तांडव वेब सीरीज में जीशान अयूब भगवान शिव के रूप में नजर आते हैं. वे स्टेज पर नाटक करने के हाथ में त्रिशूल और डमरू लेकर मंच पर पहुंचते हैं. जिन्हें देखकर दर्शक आजादी-आजादी के नारे लगाते हैं. इस रूप में जीशान को एक आपत्तिजनक शब्द बोलते हुए दिखाया गया है.
ऐसा ही होली पर उन लोगों को पानी बचाने की याद आ जाती है, जो साल भार पानी बर्बाद करते हैं. फिल्लों में अक्सर मंदिर का पुजारी चोर होता है लेकिन मौलवी को पाक-साफ दिखाया जाता है.
सोचिए जरा कि प्रणीता सुभाष अनपढ़ महिला नहीं हैं, ना ही उन्हें कोई पति की पूजा करने के लिए मजबूर कर रहा है. तो फिर अब रत्ना पाठक शाह की कहीं बातों का क्या होगा? आधुनिक होना अच्छी बात है. किसी परंपरा में अगर बुराई है तो उसे बदल देनी चाहिए, तभी तो आज हिंदू महिलाएं हवन-पूजन कर रही हैं, माता-पिता को मुखाग्नि दे रही हैं. यहां किसी को भी गुलाम बनकर रहने की जरूरत नहीं है, लेकिन बराबरी की बात करने में और अपनी संस्कृति का अपमान करने में अंतर तो है.
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