राहुल गांधी पर बायोपिक बनाने गए 'My name is RaGa', बन गई 'बेचारा RaGa'
फिल्म 'My name is RaGa' के जरिए राहुल गांधी के जीवन के कमजोर हिस्से भी लोगों के सामने आएंगे. ऐसा समय जब देश नेता चुनने की तैयारी कर रहा हो, उस समय राहुल गांधी की एक 'कमजोर' फिल्म का रिलीज़ होना कहीं राहुल पर ही भारी न पड़ जाए.
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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक के बाद एक आ रहीं राजनीतिक फिल्में लोगों को हैरान कर रही हैं. लेकिन इन्हें गंभीरता से लेने के बजाए अगर चुनाव प्रचार का ही हिस्सा समझा जाए तो बेहतर है.
चुनावी संग्राम में आज NaMo और RaGa आमने सामने हैं. लेकिन चुनाव से पहले हो रहे इस फिल्मी प्रचार में भी नमो और रागा मैदान में आ गए हैं. नरेंद्र मोदी की बायोपिक आ रही है जिसमें विवेक ओबराय नरेंद्र मोदी का किरदार निभा रहे हैं. ऐसे में राहुल गांधी की बायोपिक न आती तो मजा अधूरा रह जाता. यूं लगता जैसे क्रिकेट की एक टीम ने तो बैटिंग कर ली और बारिश की वजह से दूसरी टीम को बैटिंग का मौका ही नहीं मिला. लेकिन इस सियासी मैच का असल मजा तो अब आएगा.
राहुल गांधी की बायोपिक का नाम है 'My name is RaGa'. फिल्म का ट्रेलरनुमा टीजर आ गया है. और अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि इस फिल्म में कोई भी ऐसा किरदार नहीं है जिसे लोग जानते हों. सिवाए एक के जो हैं अनुपम खेर के भाई- राजू खेर. भाई-भाई की ही राह पर चल रहे हैं. यानी 'द एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर' में मनमोहन सिंह का किरदार अनुपम खेर ने निभाया तो 'माय नेम इज़़ रागा' में मनमोहन सिंह का किरदार राजू खेर निभा रहे हैं. और इसलिए वो डुप्लीकेट मनमोहन के भी डुप्लीकेट नजर आते हैं.
चुनाव से पहले राहुल गांधी की बायोपिक 'My name is raga' भी रिलीज़ हो जाएगी
टीजर और 80 प्रतिशत हिस्सा राहुल के प्रति सहानुभूति दिखाता है
खैर फोकस राहुल पर करना चाहिए क्योंकि बायोपिक राहुल की है. इस टीजर में आप राहुल गांधी के जीवन से जुड़ी वही चीजें देखेंगे जो असल में देश जानता है. यानी राहुल का अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी के साथ लगाव. और किस तरह दोनों ही उनसे जुदा हो गए. राहुल को बचपन से ही बहुत तनाव में दिखाया गया है. दादी के बाद पिता की हत्या होना एक बच्चे पर किस तरह असर करता होगा वो आप फिल्म में देख पाएंगे. राहुल गांधी को देखकर लगता है कि उन्होंने बचपन से ही जीवन के गहरे घाव सहे हैं. कैसे इन सभी बातों ने उनके मनोबल पर असर किया होगा वो भी देखा जा सकता है. हम देखेंगे कि कैसे राहुल को राजनीति से दूर रखा गया. और फिर किस तरह उन्हें कांग्रेस की कमान सौंपी गई. उनका शुरुआती डर, उनकी झिझक और आत्मविश्वास की कमी को आप इस टीजर में देख सकते हैं. वहीं समय के साथ परिपक्व होते, अपनी कमियों को दूर करते और आत्मविश्वास से भरे राहुल को भी यहां देखा जा सकता है. कुल मिलाकर कहें तो टीजर और 80 प्रतिशत हिस्सा राहुल के प्रति सहानुभूति दिखाता है.
फिल्म के निर्देशक हैं रूपेश पॉल. फिल्म की खास बात ये है कि इस फिल्म के लिए रूपेश किसी नेता वगैरह से नहीं मिले, जो जानकारियां सार्वजनिक हैं उन्हीं के आधार पर स्क्रिप्ट लिखी गई है. जानकारी के लिए केवल राहुल गांधी के संपर्क में रहने वाले लोगों से बातचीत की गई है. रूपेश का कहना है कि 'ये एक ऐसे इंसान की कहानी है जिसने कई असफलताओं के बाद सफलता का स्वाद चखा है. मैं उस शख्स के संघर्षों से बेहद प्रभावित था जिसे मैंने एक पत्रकार के नाते बेहद करीब से देखा है.' यानी दर्शक फिल्म में भी वही देखेंगे जो वो राहुल के बारे में पहले से जानते हैं.
हिमंत कपाड़िया ने मोदी, डेनियल पिटाइट ने सोनिया गांधी, अश्विनी कुमार ने राहुल गांधी और राजू खेर ने मनमोहन सिंह का किरदार निभाया है
टीजर में कमियां ढूंढने चलेंगे तो बहुत मिलेंगी. और इसीलिए ये उतना प्रभावित नहीं करता. किरदारों के चयन से लेकर फिल्मांकन तक सब कुछ ढ़ीला लगता है. पूरे देश को अपनी शख्सियत से प्रभावित करने वाली प्रियंका गांधी का किरदार इस फिल्म में जरा भी प्रभावी नहीं लगता. थोड़ा समय लेकर लोगों का चयन किया जाता तो शायद परिणाम अच्छे होते. यूं लगता है जैसे चुनाव से पहले फिल्म रिलाज़ करनी थी तो फटाफट बना ली गई. जबकि बाकी पॉलिटिकल फिल्मों का स्तर इस फिल्म से बेहतर नजर आता है.
देखिए टीज़र
सीज़न पॉलिटिकल फिल्मों का है. फिल्म 'उरी' में सर्जिकल स्ट्राइक के फिल्मांकन का सीधा फायदा प्रधानमंत्री मोदी को मिल रहा है. उनके निर्णय और योजनाएं किस तरह सही थीं ये फिल्म बता रही है. फिर फिल्म 'द एक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर' में मनमोहन सिंह को कांग्रेस के हाथों की कठपुतली दिखाना, यानी कांग्रेस पर उंगली उठाना. इसका फायदा भी बीजेपी को मिल रहा है. और इसके बाद नरेन्द्र मोदी की बायोपिक का ऐलान होना, यानी जो थोड़ा बहुत बचा होगा वो इस फिल्म से पूरा हो जाएगा. ये मानिए कि ऐसा माहौल बना दिया गया है कि लोग बीजेपी के मोह से बाहर ही न आ पाएं. अगर ये सब इमेज मेकिंग का हिस्सा है तो कांग्रेस भी कैसे पीछे रहती.
लेकिन सहानुभूति से जंग नहीं जीती जाती
बायोपिक पर तो सभी का हक है लेकिन 'माय नेम इज़ रागा' कई संशय पैदा करती है. राहुल गांधी की नासमझी, उनके ऊटपटांग बयानों को भूलने में लोगों को समय लगा था. और इसके लिए राहुल ने काफी मेहनत भी की है. लेकिन इस फिल्म के जरिए राहुल गांधी के जीवन के ये कमजोर हिस्से भी लोगों के सामने आएंगे. भले ही फिल्म में राहुल के संघर्षों को दिखाया गया हो, कि कैसे कमजोरियों से लड़ते हुए वो आज एक परिपक्व नेता बनकर खड़े हैं, लेकिन इसी फिल्म में उनकी स्थिति बेचारगी वाली भी दिखाई देती है.
ऐसा समय जब देश नेता चुनने की तैयारी कर रहा हो, उस समय राहुल गांधी की एक 'कमजोर' फिल्म का रिलीज़ होना कहीं राहुल पर ही भारी न पड़ जाए. क्योंकि सहानुभूति से फिल्म तो हिट हो सकती हैं, लेकिन जंग नहीं जीती जाती. फिल्म कितनी 'कमजोर' है आपने टीज़र से ही महसूस कर ही लिया होगा. ऐसे में लोगों के सामने फिर से संशय की स्थिति आ जाएगी.
इस टीजर में सिर्फ एक ही बात अनोखी है जो लोगों को फिल्म देखने के लिए मजबूर कर सकती है. वो है वो लड़की जिसे अंत में राहुल के साथ दिखाया गया है. लोगों में ये जानने की जिज्ञासा हो सकती है कि राहुल की जिंदगी में आने वाली वो लड़की आखिर थी कौन? क्योंकि राहुल की जिंदगी का यही एक हिस्सा ऐसा है जो लोगों के सामने नहीं आया है. इसके अलावा राहुल गांधी का ढोल बजाना और डांस करना भी अपने आप में नाय है.
हालांकि टीजर से तो NaMo ही RaGa पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. फिल्म भी ऐसी ही रही तो 'My name is RaGa' कहीं 'बेचारा RaGa' साबित न हो जाए.
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