Raj Kapoor Death Anniversary: अदाकार से शोमैन बनने तक राज कपूर ने बॉलीवुड का फिल्म सिलेबस लिख दिया
आज भारतीय सिनेमा में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्गीय राजकपूर का नाम जिस आदर के साथ लिया जाता है वह अपने आप में मिसाल ही है.' देश और दर्शकों ने भी इस अनूठे और बेमिसाल अभिनेता और निर्देशक को दादा साहब फाल्के समेत तमाम पुरस्कारों से नवाज़ने के साथ बेइंतिहा मोहब्बत भी दिया. आज दो जून को उनकी पुण्य तिथि है.
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पहले विविध भारती पर अक्सर अभिनेता स्वर्गीय राजकपूर के साक्षात्कार का एक अंश सुनाया जाता था जिसमें वह कहते है कि...'मेरे कैरियर में मेरे पिताजी (अभिनेता स्व पृथ्वीराज कपूर) का नाम कहां तक सहायक सिद्ध हुआ यह मैं नहीं जानता लेकिन मेरे पिताजी ने मुझे जब फिल्मों में भेजा तो वह भी चौथे असिस्टेंट की हैसियत से... पिताजी कहते थे राजू निचले दर्जे से शुरुवात करोगे तो एक दिन ज़रूर अव्वल दर्जे पर पहुंचोगे.' उनके पिताजी का यह कहना सही ही रहा. आज भारतीय सिनेमा में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्गीय राजकपूर का नाम जिस आदर के साथ लिया जाता है वह अपने आप में मिसाल ही है.' देश और दर्शकों ने भी इस अनूठे और बेमिसाल अभिनेता और निर्देशक को दादा साहब फाल्के समेत तमाम पुरस्कारों से नवाज़ने के साथ बेइंतिहा मोहब्बत भी दिया. आज दो जून को उनकी पुण्य तिथि है. हम सब की जब सन् 80 के दशक में पैदा वाली पीढ़ी अपने बचपन में अमिताभ बच्चन की दीवानी थी. हम बच्चों के लिए राजकपूर सिर्फ ऐसे नाम थे जो कि ऋषि कपूर और रणधीर कपूर के पापा थे. बाद के दिनों में जब कम्प्यूटर क्रांति हुई और घर घर पहले डेस्कटॉप फिर लैपटॉप का आगमन हुआ तब पुरानी फिल्मों को देखने का उन्हें जीने का शौक परवान चढ़ा. जिसके पीछे कुछ तो नोस्टाल्जिया जिम्मेदार था और कुछ उम्र के हिसाब से परिपक्व और परिष्कृत होती रुचि जिम्मेदार थी.
विश्व पटल पर आज अगर बॉलीवुड किसी मुकाम पर है तो इसमें राजकपूर की एक बड़ी भूमिका है
नीलकमल, अनाड़ी, आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, बॉबी,संगम, कल आज और कल, सत्यम शिवम सुंदरम और राम तेरी गंगा मैली जैसी फिल्में अब हिंदी सिनेमा में एक आइकॉनिक छवि बना चुकी है. आरके स्टूडियो बहुत दिन गुणवत्ता युक्त सिनेमा का पर्याय बना रहा. वर्तमान में राजकपूर की पौत्री करिश्मा और करीना और पौत्र रणबीर कपूर भी लोगों के चहेते कलाकार हैं.
उनके निजी जीवन पर आप सब तमाम किस्से कई बार सुन चुके होंगे. अभिनेत्री नरगिस और फिल्मों में उनकी जोड़ी की केमेस्ट्री और निजी जीवन में उनके प्रति आकर्षण के कई किस्से लोगों के ज़ेहन में हमेशा के लिए रचे बसे हैं. रूस और चीन में फिल्म आवारा और उसके गाने 'आवारा हूं' की लोकप्रियता ने उन्हें न सिर्फ विश्व सिनेमा में स्थापित किया बल्कि भारतीय सिनेमा की परिपक्व छवि भी निर्मित की.
राजकपूर को हिंदी सिनेमा का शो मैन कहा जाता है. उनकी हर फिल्में मानवीय मूल्यों और जीवन के प्रति दार्शनिक उद्देश्यों से प्रेरित होती थी. अपने एक इन्टरव्यू में राजकपूर ने यह स्वीकार किया की मेरा नाम जोकर उनकी सबसे पसंदीदा फिल्म थी. लेकिन उस समय दर्शकों ने उसे उतनी पसंद नही की. लिहाज़ा वे काफ़ी कर्जे में आ गए. किशोर वय के प्रेम पर आधारित बॉबी फिल्म को उन्होंने इस घाटे को पूरा करने के लिए बनाई.
फिल्म बॉबी रिकार्डतोड़ सफल हुई. बाद में एक स्थान पर राजकपूर ने यह कहा कि मेरा नाम जोकर मेरी पसंद की थी जबकि बॉबी दर्शकों के पसंद की.सच कहूं तो राजकपूर की फिल्मों को देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वे फिल्मों को किसी साहित्यिक कृति के रूप में लेते थे और उस पर उतनी शिद्दत से मेहनत भी करते थे. फिल्म मेरा नाम जोकर के उस गीत को याद करिए जिसके बोल है जीना यहां मरना यहां... इसके सिवा जाना कहां!
या उस दृश्य को जिसमें उनकी मां के मरने के बाद भी वे जोकर बनते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं. यह दृश्य मानव जीवन के विडंबना और त्रासदी का अभूतपूर्व प्रतीक बन जाता है. यूं ही नहीं कोई शो मैन बन जाता है. इसी फिल्म का वह दृश्य भी नहीं भूलता जहां पर अपने अंतिम शो में राजकपूर जोकर के लिबास में अपने जीवन की सभी प्रेमिकाओं एक एक कर पूछते है क्या उनका दिल उसके पास है?
सभी के नकारने का वह दृश्य दुनियावी प्यार की सीमाओं को और सामाजिक बाध्यताओं को कितनी बारीकी से उधेड़ देता है. निःसंदेह हिंदी सिनेमा को नाटकीयता से मुक्त करने और उसे अधिक यथार्थ बनाने में उनकी आवारा फ़िल्म का बड़ा योगदान रहा.
आवारा फिल्म में जिसमें एक जज का बेटा जिसे बचपन में डाकू अगवा कर ले जाते है बाद में वही पुत्र न्यायालय में अपने जज पिता के समक्ष जब अपराधी बनकर आता है और उनके सम्मुख अपराध के आर्थिक और सामाजिक कारकों का तर्क रखता है तो यह उदाहरण रक्तशुद्धता और अभिजात्यवाद के मुंह पर तमाचा जड़ने जैसा था.
बिना किसी उपदेश के एक दृश्य पूरी फिल्म निचोड़ देती है. निश्चित रूप से उनकी फिल्मों से मैं अनेक उदाहरण ऐसे दे सकता हूं जो उनकी कलात्मक किंतु प्रखर बौद्धिक दृष्टि का परिचायक है. देह और आत्मिक प्रेम के लिए सत्यम शिवम सुंदरम फिल्म तो जैसे एक उपन्यास सरीखी लगती है.
फ़िलहाल ऐसे किस्से और उदाहरण तमाम है जो उनके शोमैन छवि को पूर्णता परिभाषित करती है. निश्चित रूप से भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में उनका योगदान सदैव नए अभिनेताओं और फिल्मकारों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा. उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें पुनः प्रणाम करता हूं.
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