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Updated: 29 मार्च, 2018 04:53 PM
मनीष जैसल
मनीष जैसल
  @jaisal123
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चेन्नई में जन्मीं हिन्दी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री भानुरेखा गणेशन को हम सभी प्यार से रेखा बुलाते आयें हैं. उनके फिल्मी कैरियर का हर वो शख्स दीवाना होगा जिसे क्लासिकल फिल्में पसंद रही होंगी. फ़िल्मकार मुजफ्फर अली की सिग्नेचर फिल्म उमराव जान में निभाए उनके किरदार उमराव जान को देख कई बार ऐसा महसूस हुआ कि इस उपन्यास के लेखक मिर्ज़ा हादी रुसवा की इमेजिनेशन कहीं रेखा ही तो नहीं थीं. ये रेखा की लोकप्रियता ही थी जिसके बल पर यूपीए सरकार ने उन्हें 2012 में राज्यसभा के लिए नामित किया था.

संविधान निर्माताओं ने संसद के उच्च सदन में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले समाज के विभिन्न वर्गो के व्यक्तियों को सांसदों की भांति नामित करने का नियम बनाया था. कई हस्तियों ने इस जिम्‍मेदारी को बखूबी निभाया. लेकिन सचिन तेंडुलकर और रेखा को इस मामले में आलोचना का शिकार होना पड़ा है. राज्‍यसभा में उन्‍होंने न के बराबर उपस्थिति दी. इसके अलावा अहम मामलों में उनकी सक्रियता तो और भी खराब रही. रेखा जो लगभग हर फिल्‍मी समारोह और पार्टियों में मौजूद रहती हैं, वे राज्‍यसभा में अपने आखिरी दिन आखिर क्‍यों नहीं आईं ? कोई तो वजह रही होगी ?

रेखा, संसद, सांसद, अभिनेत्री    ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने आखिरी दिन भी संसद से गैरहाजिर थीं रेखा

हाल ही में रेखा ने अपने 6 वर्ष पूर्ण किए हैं. आंकड़े बताते है कि संसद में अगस्त 2017 तक हुए संसद के कुल 373 सिटिंग्स में वह सिर्फ 18 सिटिंग्स में ही शामिल हुई. उनकी उपस्थिती मात्र 5 फीसदी ही रही. और तो और उन्होंने अपने कार्यकाल में एक भी प्रश्न या चर्चा सत्रों में भाग भी नहीं लिया. संसद के प्रति रेखा का रवैया कैसा था इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो अपने अंतिम दिन भी संसद से गैरहाजिर थीं. भला हो संविधान निर्माताओं का जिन्होंने इन नामित सदस्यों की उपस्थिती के लिए मिनिमम 60 दिनों की उपस्थिती पूरी करने की बाध्यता बना दी थी. रेखा उसे ही पूरा करने में सफल रही या फिर ये कहें कि रेखा ये सिर्फ अपने सांसद बने रहनेके फर्ज की अदायगी की है.

गौरतलब है कि 2012 में अपने नामांकन के बाद से रेखा किसी भी संसद सत्र में एक दिन से ज्यादा उपस्थित नहीं रहीं हैं, लेकिन उन पर भारत सरकार द्वारा किया गया व्यय सबसे अधिक है. ऐसे में हमें यह भी देखना होगा कि इस सदन से जुड़े होने पर इन सांसदों पर देश का कितना आर्थिक धन खर्च होता है. राज्यसभा के आंकड़ों के मुताबिक रेखा पर वेतन और अन्य खर्च की राशि 65 लाख रुपए है.

देश की जनता का इतना पैसा जब इन नामित सदस्यों की झोली में यूं ही व्यर्थ डाला जा रहा हो तो प्रश्नों का उठाना स्वाभाविक है. रेखा सिनेमा जगत से आती हैं लेकिन उन्होंने सिनेमा जगत की मुख्य जरूरतों से संबन्धित प्रश्नों को संसद में रख लिया होता तो स्थिति सम्मानजनक होती. इनके कार्यकाल में सिनेमा और सेंसरशिप का मुद्दा काफी गंभीर रहा है, फ़िल्मकार भी सेंसरशिप की नीति से काफी परेशान रहें हैं.

ऐसे में रेखा को अपने उद्योग के प्रति समर्पित होना चाहिए था. पर वे अपनी ही धुन में जीती रहीं. उन्हें कम से कम 2016 में नामांकित हुए मलयालम अभिनेता सुरेश गोपी और मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम से ही सीखना चाहिए था, जिन्होंने कुछ बहसों में हिस्सा लेकर अपने उद्योग के प्रति समर्पण का भाव पेश किया था.'

रेखा, संसद, सांसद, अभिनेत्री    ऐसे चुनिन्दा ही मौके दिखे जब संसद में रेखा दिखी थीं

तो क्या कुछ काहे बिना रेखा ने किया है संसद का बहिष्कार

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. कई ऐसे मौके आए हैं जब या तो कभी सांसदों के कारण या फिर मीडिया के कारण रेखा असहज हुई हैं. कह सकते हैं कि संसद में भी अन्य सांसदों द्वारा रेखा की काबिलीयत को नहीं बल्कि उनके स्टारडम को ही तरजीह दी गयी. इस बात को समझने के लिए हमें रेखा के शपथग्रहण को देखना होगा. रेखा जब शपथ ले रही थीं तो बार-बार कैमरे का रुख जया बच्चन की तरफ किया जाता रहा और उनका चेहरा दिखाया गया. क्या ये सब खुद रेखा ने नहीं देखा होगा? इसके अलावा यदि आप संसद में रेखा की उपस्थिति के लिए गूगल की मदद लेंगे तो वहां भी रेखा की तस्वीरों के अलावा जया बच्चन की तस्वीरें हैं.

बहरहाल, रेखा के संसद आने पर सांसदों का भौचक्का होकर उनको देखना. मीडिया का बारत-बार ये दोहराना की "आज फिर नहीं आईं रेखा" जैसी चीजें किसी को भी आहत करने के लिए काफी हैं. यदि रेखा की संसद में अनुपस्थिति का अवलोकन करें तो मिल रहा है कि संसद में न आने के लिए जितना रेखा जिम्मेदार हैं उतनी ही जिम्मेदारी हमारी, आपकी और मीडिया की है.

खैर अगर हम नामित सदस्यों के इतिहास में पर गौर करें तो यहाँ डॉक्टर जाकिर हुसैन (शिक्षाविद), प्रोफेसर सतेन बोस(वैज्ञानिक), रुक्मिणी देवी अरुंदले (कलाकार) काका साहब कलेलकर (शोधार्थी), मैथिलीशरण गुप्त (कवि), राधा कुमुद मुखर्जी (इतिहासकार), डॉ काली दास नाग (इतिहासकार), पृथ्वीराज कपूर (कलाकार), डॉ गोपाल सिंह (लेखक), श्री मति शकुंतला परांजपए (सोशल वर्कर), जैसे आदि समाज से जुड़े व्यक्तित्व राज्यसभा के लिए नामित हो चुके हैं.

इन नामों से यह तो स्पष्ट है कि इनकी नियुक्ति विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर तथा विभिन्न क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्व के उपायों को देने, अपने क्षेत्र विशेष के विकास-विस्तार, के लिए जरूरी सवालों को उठाने के उद्देश्य से की गई थी. चूंकि यह नियम भारत के संविधान का अहम हिस्सा भी है जिससे गैर राजनीतिक व्यक्तिव का देश की प्रगति में हिस्सा बन सके. रेखा की संसद में भागीदारी को लेकर बस इतन कहा जा सकता है कि रेखा जैसे व्यक्तित्व ने यहां इस प्रतिनिधित्व को और कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

एक प्रगतिशील नागरिक होने के नाते वर्तमान में, अन्य नामित सदस्यों पर भी हमें नज़र रखने की जरूरत है. इसका कारण बस इतना है कि हमें ये भी जान लेना चाहिए कि ऐसे लोग अपने अपने क्षेत्रों के किन मुद्दों को संसद में उठा रहे हैं. वर्तमान में अनु आगा(व्यवसायी), के.प्रसन्ना(वकील), केटीएस तुलसी (वकील), संभाजी छत्रपति (समाज सेवी), रूपा गांगुली (कलाकार), नरेंद्र जाधव(अर्थशास्त्री), मैरी कॉम(खिलाड़ी) आदि राज्यसभा के नामित सदस्य हैं.

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लेखक

मनीष जैसल मनीष जैसल @jaisal123

लेखक सिनेमा और फिल्म मेकिंग में पीएचडी कर रहे हैं, और समसामयिक मुद्दों के अलावा सिनेमा पर लिखते हैं.

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