Tandav web series राजनीति पर कटाक्ष है या मुस्लिम तुष्टिकरण का एक और नमूना?
Amazon Prime की वेब सीरीज Tandav एक मसाला वेब सीरीज़ है जिसमें आज की राजनीति में से कुछ, बीती राजनीति में से काफ़ी कुछ और ज़रा बहुत काल्पनिकता का तड़का मारकर पेश किया गया है. शुरुआत से ही कहानी एक प्रोपेगैंडा परोसती नज़र आ सकती है. पर प्रोपेगैंडा या किसी ख़ास धर्म को ख़ुश करती है या नहीं, ये देखने वाले की निगाह बेहतर जज कर सकती है.
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Tandav Amazon Prime वीडियो पर रिलीज़ हुई हालिया web series है. इसमें मुख्य किरदार Saif Ali Khan,Dimple Kapadia, ज़ीशान आयूब और सुनील ग्रोवर निभा रहे हैं. इसकी कहानी शुरु होती है ग्रेटर नॉएडा के मालकपुर नामक गांव से जहां सरकार ज़बरदस्ती किसानों की ज़मीन को सस्ते दामों में ख़रीदकर उसे स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन में डाल रही है और इसके ख़िलाफ़ किसान प्रोटेस्ट कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर नॉएडा में दिखाई गई पुलिस के एसआई (sub inspector) ठाकुर (श्रीकांत वर्मा) इस आंदोलन का मज़ाक बना रहे हैं और उसका साथी सब इंस्पेक्टर कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर दे रहा है. इसी बीच प्रधानमंत्री का पीए गुरपाल (सुनील ग्रोवर) आकर सब इंस्पेक्टर को तीन मुस्लिम लड़कों पर गोलियां चलाने के लिए कहता है.
दूसरी ओर इलेक्शन के रिजल्ट में बस दो दिन रह गए हैं और दो बार की चुनी गयी देवकीनंदन (तिग्मांशु धूलिया) की सरकार एग्जिट पोल में बहुमत ले चुकी है. देवकी के बेटे समर प्रताप (सैफ अली ख़ान) बाप को साइड कर ख़ुद प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं. वहीं बाप की पुरानी दोस्त अनुराधा (डिंपल कपाड़िया) अपने नशेड़ी बेटे को डिफेंस मिनिस्टर बनवा रही हैं.
तीसरी ओर VNU नामक एक काल्पनिक विश्विद्यालय दिखाया है जो पहली ही झलक में JNU होने की चुगली करता है. यहां के एक छात्र इमरान को पुलिस आतंकी कहकर उठा ले जाती है. ठीक उसी वक़्त छात्र नेता शंकर (मुहम्मद ज़ीशान आयूब) एक प्ले कर रहा है जिसमें वो कोट पेंट पहने और मुंह पर प्लस के साइन से बना हुआ नीला पेंट लगाए हुए भगवान शिव का किरदार प्ले कर रहा है जिसे एक लड़का नारद बन बता रहा है कि अब आपके (शिव के) फॉलोवर्स कम हो गए हैं और राम के बढ़ गए हैं. यहां कई फूहड़ जोक्स भगवान शिव के नाम पर मारे जाते हैं.
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अब छात्रों का एक जत्था इमरान को छुड़ाने के लिए थाने-थाने चक्कर लगाने लगता है और पुलिस बल उन्हें घेरकर पीटने का प्लान बना लेती है. वहीं समर प्रताप अपने बाप को हटाने का सारा प्लान बना चुका है लेकिन आगे क्या होगा ये आपको इस सीरीज़ के 9 एपिसोड देखकर ही पता चलेगा.
डायरेक्टर अली अब्बास ज़फ़र ने अपनी ओर से मिक्स अप करके ट्विस्ट एंड टर्न करने की कोशिश की है, शुरुआती कुछ एपिसोड्स में पलक झपकने का मौका भी कम ही मिलता है। लेकिन गौरव सोलंकी की लिखी कहानी असल और काल्पनिक राजनीति का मिक्सचर बांटती, मौका भुनाती नज़र आती है. कुछ नयापन इसमें नहीं नज़र आता. ज़बरदस्ती खिंचती भी नज़र आती है. जगह-जगह अल्पसंख्यको पर होते अत्याचारों को ग्लोरीफाई किया गया भी प्रतीत होता है.
एक्टिंग सबकी बढ़िया है. सैफ अली खान शुरुआत में बहुत तेज़ तर्रार नज़र आए हैं लेकिन बाद में उनका करैक्टर थोड़ा डल हुआ है. तिग्मांशु धूलिया छोटे से रोल में भी अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. कुमुद मिश्रा बहुत बेहतरीन लगे हैं.
डिंपल कपाड़िया ने अवॉर्ड विनिंग एक्टिंग की है. सुनील ग्रोवर का आपको एक नया रूप देखने को मिलेगा जो यकीनन आपको पसंद आयेगा। ज़ीशान आयूब ने भी अपने करैक्टर के साथ न्याय किया है, हालांकि कुछ एक जगह वो ज़रा ओवर हुए हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. थ्रिल पैदा करता है पर कहीं-कहीं बहुत लाउड हो जाता है.
सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है. क्योंकि मोबाइल को ध्यान में रखकर शूट की गई है इसलिए क्लोज़अप शॉट्स अधिक हैं.
कुलमिलाकर तांडव एक मसाला वेब सीरीज़ है जिसमें आज की राजनीति में से कुछ, बीती राजनीति में से काफ़ी कुछ और ज़रा बहुत काल्पनिकता का तड़का मारकर पेश किया गया है. शुरुआत से ही कहानी एक प्रोपेगैंडा परोसती नज़र आ सकती है. पर प्रोपेगैंडा या किसी ख़ास धर्म को ख़ुश करती है या नहीं, ये देखने वाले की निगाह बेहतर जज कर सकती है.
कहानी ज़रा बहुत झलक प्रकाश झा की राजनीति की भी देती है लेकिन राजनीति इससे कई गुना बेहतर फिल्म थी. हां इतना ज़रूर है कि सिर्फ टाइमपास के लिए अली अब्बास का टाइगर फेम डायरेक्शन झेला जा सकता है.
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