सलमान की रिहाई सवाल नहीं, द्वंद्व पैदा करती है...
मुंबई की सड़कों, कश्मीर की वादियों, वाराणसी की गलियों, लखनऊ के बगीचों और पटना के मुहल्लों में सिर्फ एक ही चर्चा रही- सलमान को सजा.
-
Total Shares
सड़क दुर्घटना, गैर इरादतन हत्या, शोहरत, सालों का इंतजार, सजा और इन सब के बीच सलमान. 6 मई 2015 से लेकर 8 मई 2015 तक मुंबई की सड़कों, कश्मीर की वादियों, वाराणसी की गलियों, लखनऊ के बगीचों और पटना के मुहल्लों में सिर्फ एक ही चर्चा रही- सलमान को सजा. यह दिलचस्प है कि जिस फैसले का इंतजार पीड़ित से लेकर समूचे देश को 13 साल से था, उसके आने पर खुशी से ज्यादा दोषी के लिए दुवाओं के हाथ उठें. आप चाहें तो नैतिकता, समानता, कानून व्यवस्था और ऐसे ही आदर्शवादी शब्दों के इर्द-गिर्द सवालों पर चर्चा और बहस कर सकते हैं, लेकिन इनमें एक द्वंद्व भी पल रहा है.
दरअसल, मंगलवार से शुक्रवार के बीच मुंबई की सेशन अदालत और उससे 2 मिनट की दूरी पर स्थित बॉम्बे हाई कोर्ट में जो कुछ हुआ, वह 13 साल पहले सड़क से उठे सवालों को तो खंगालती है. लेकिन मौजूदा समय में उसी सड़क पर स्वरूप लेते उन सवालों को किनारा कर देती है, जिन पर चर्चा जरूरी है.
सवाल ये कि क्या दोषी को सिर्फ सजा देना ही सही और उचित है? सवाल ये कि क्या फैसला सिर्फ सबूतों और दलीलों के मद्देनजर सुनाई जानी चाहिए या सुध उनकी भी ली जानी चाहिए जो उस फैसले को भोगते और भुगतते हैं? सवाल ये भी है कि आत्मनियमन और सुधरने जैसी कवायद पर गौर होना चाहिए, क्योंकि कानून का असल मकसद सुधार है सजा नहीं? और सवाल ये कि क्या ऐसे में किसी भी अपराधी को समय के साथ सुधरने पर सजा होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि वह अब समाजसेवी हो गया और उसने बहुतों का कल्याण किया है?
...क्योंकि 'बनाम' अब रह नहीं गया
साल 2002 के जिस हिट एंड रन मामले में सलमान खान को 5 साल कैद की सजा सुनाई गई है, उसमें पीड़ितों की संख्या भी 5 है. मामले को 13 साल बीत गए हैं. एक दशक से भी अधिक समय में इस दरम्यान काफी कुछ बदल गया है. सलमान की हैसियत बदली है. फैंस का प्यार पागलपन में तब्दील हो गया है और पीड़ितों का गुस्सा, दर्द से आगे बढ़कर जिंदगी की उलझन को सुलझाने में लगा हुआ है.
शुक्रवार को जब सलमान को हाई कोर्ट से राहत मिली तो पीड़ित अब्दुल्लाह और कलीम ने जो कहा, उसे सुनकर यूं ही आगे नहीं बढ़ा जा सकता. अब्दुल्लाह ने कहा, 'सलमान को जमानत मिली है और ये अच्छा ही है.' इसे आप दरियादिली का नाम भी दे सकते हैं, लेकिन इस 'अच्छा है' में जिंदगी की बोझ से पीठ पर पड़े वो निशान भी साफ झलकते हैं, जो दोषी को सजा की बजाय खुद के लिए मुआवजे के मरहम की मांग करते हैं.
...तो किया क्या जाना चाहिए
बाकी अन्य पीड़ित परिवार भी कोर्ट से सलमान को राहत मिलने पर बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं. सजा की बजाय मुआवजा प्राथिमकता बन गई है. पीड़ित मोहम्मद कलीम तो यहां तक कहते हैं कि दोषी को सजा से उनका क्या भला होगा. मुआवजा मिलता तो जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ जाती. वह खुद को सलमान का प्रशंसक भी बताते हैं. यह दिलचस्प भी है और दुखद भी. दिलचस्प इसलिए कि पीड़ित खुद दोषी को सजा से छूट की बात कर रहा है, वहीं दुखद इसलिए कि हमारे कानून के लिए 'दोषी को सजा' प्राथमिकता है.
कानून अपनी जगह सही है, क्योंकि इससे व्यवस्था बनी रहती है और आपराधिक मानसिकता वालों में भय भी बना रहता है. लेकिन यही से वह द्वंद्व भी उत्पन्न होता है कि कानून किसके लिए और क्या कानून से जीवन के स्तर में सुधार की उम्मीद नहीं होनी चाहिए जो पीड़ितों का परिवार कर रहा है.
'सलमान' का करना क्या चाहिए
सलमान दोषी करार दिए गए तो उनके परिवार समेत करोड़ों फैंस पर जैसे सितम हो गया. जमानत मिली तो जुम्मा जश्न में बदल गया. पटाखे चले, मिठाइयां बंटी. सलमान के घर के बाहर, कोर्ट परिसर और सड़कों पर भीड़ ऐसे जमा हुई, जैसे अभिनेता न हो भगवान हो. एक महाशय ने तो कोर्ट के आदेश के इंतजार में जहर तक खा लिया, जबकि उसके खुद के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. चाहने वालों का तर्क है कि सलमान दरियादिल हैं, लोगों की मदद करते हैं, सबके लिए अच्छे हैं इसलिए उन्हें माफी मिलनी चाहिए.
इसका अर्थ यह हुआ कि कल को अगर कोई और अपराधी समाजसेवा करने लगे. अपनी सीरत बदल ले, संजीदा हो जाए तो क्या उसे भी सजा की बजाय माफी मिलनी चाहिए. असल में यह ऐसा सवाल है, जिसका शायद ही कोई सलमान फैन जवाब देना चाहेगा. लेकिन यह लोकतंत्र है और यहां भीड़ को दरकिनार किया नहीं जा सकता. खासकर तब जब भीड़ फैंस से ज्यादा भक्त हो क्योंकि इस देश की कसौटी धर्म के इर्द-गिर्द की कसी गई है.
कानून का क्या
देश की व्यवस्था में न्यायपालिका को सबसे ऊपर रखा गया है. कानून की किताबों में सभी के लिए 'समान' अधिकारों की बात की गई है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर ऐसा है नहीं और इसे साबित करने के लिए बहस की जरूरत भी नहीं है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, खुद जस्टिस थिप्से, जिनकी अदालत ने शुक्रवार को सलमान के केस की सुनवाई की वह अपनी बेंच पर अभी 1993 के मामलों का ही निपटारा कर रहे हैं जबकि सलमान के केस पर फौरन सुनवाई हो गई.
कानून बनाया गया ताकि अपराधियों को सजा मिल सके और पीड़ित को न्याय मिले. लेकिन उसी कानून में लूप होल्स भी छोड़े गए, जिसका लाभ उठाकर कानून के बड़े-बड़े ठेकेदार (वकील) लखपति और करोड़पति बन रहे हैं. एक ओर मुकेश अंबानी हैं जो गैस विवाद जैसे केस में सिर्फ वकील के लिए 15 करोड़ खर्च कर देते हैं, वहीं दूसरी ओर कई ऐसे किसान भी हैं जो जमीन के मामूली विवाद में एक वकील तक नहीं कर पाते.
कुल मिलकार
तमाम तर्कों, समस्याओं, परिस्थितियों और इस ओर व्यवस्था पर गौर करें तो जवाब से ज्यादा सवाल सामने आते हैं. और जब सवालों का गुच्छा बादल बनने लगता है तो गैलेक्सी अपार्टमेंट की बालकोनी में सलमान का चेहरा नजर आता है. वह चेहरा जो फैंस के प्यार के बोझ को शुक्रिया, मेहरबानी और धन्यवाद तो करता है. लेकिन हाथ जोड़कर मन के अंदर किसी कोने में समाए मायूसी और सदमे को ढकने की कोशिश भी करता है. सामने दीवानों की टोली है. पटाखे की लड़ी है और बैकग्राउंड से कोई चीख रहा है- justice delayed is justice denied
(नोट- लेखक खुद सलमान के AC हैं, लेकिन यह लेख सुबह के चार बजे सलमानिया भूत के तत्काल शांत होने के बाद लिखा गया है.)
आपकी राय