Shikara Review: दर्शक कन्फ्यूज होकर सिनेमा हॉल से बाहर निकले!
Shikara movie review: विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) की फिल्म 'शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित' (Shikara: The Untold Story) हमारे सामने हैं. फिल्म देखकर पता चल रहा है कि दो अलग अलग विषयों का सम्मिश्रण करने में विधु नाकाम रहे हैं.
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विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) की चर्चित फिल्म 'शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित' (Shikara) रिलीज (Film release) हो गई है. फिल्म के जरिये आदिल खान और सादिया पहली बार पर्दे पर आए हैं. एक संवेदनशील विषय पर जैसी एक्टिंग दोनों ने की है, वो उनकी परिपक्वता तो दिख ही रही है. साथ ही उसमें निर्देशक के अनुभव की झलक भी दिखती है. विधु की फिल्म शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित' (Kashmiri Pandit) एक वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है तो हमें बॉलीवुड के उस दौर को भी समझना पड़ेगा जब सत्यजीत राय और राज कपूर जैसे निर्देशक हुआ करते थे. ये लोग अगर किसी विषय को फ़िल्म के लिए उठाते तो प्रयास यही रहता कि फ़िल्म के 'कोर' या ये कहें कि जिस विषय पर फ़िल्म बन रही है उससे छेड़छाड़ न की जाए. इंडस्ट्री ने एक दौर वो भी देखा जब लव स्टोरीज़ को आधार बनाकर फिल्मों का निर्माण हुआ. संजीदा विषय को लव स्टोरी में समाहित नहीं किया जा सकता. ये हमने सुना था लेकिन जब हम विधु विनोद चोपड़ा की शिकारा देखें तो मिलता है कि ये तर्क यूं ही नहीं दिया गया. विधु अपनी फिल्म 'शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित' के जरिये 90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं (kashmiri Hindu) विशेषकर कश्मीरी पंडितों (Exodus of kashmiri Hindus) पर हुए अत्याचार को पर्दे पर उकेरना चाह रहे थे. मगर कहानी को लव स्टोरी (Love Story) के सांचे में पिरोने के कारण विषय से खिलवाड़ कर बैठे. शिकारा न तो एक ऐसी फिल्म बन पाई जिसमें सही से लव स्टोरी डाली गई और न ही उस विषय के साथ इंसाफ हुआ जिसे ध्यान में रखकर फ़िल्म के निर्माण या ये कहें कि 90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं का विस्थापन दिखाने को लेकर इंसाफ हुआ.
फिल्म शिकारा के जरिये ये दिखाया गया है कि 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों को किन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा
फिल्म 'शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित' की कहानी शिव कुमार धर (आदिल खान ) और उनकी पत्नी शांति धर (सादिया खान) के इर्द गिर्द घूमती है. दोनों ही लोगों को कश्मीर में खुशहाल शादीशुदा जिंदगी जीते हुए दिखाया गया है. जोड़ा बड़े ही अरमानों से अपना घर बनाता है और उसका नाम शिकारा रखता है. क्योंकि फिल्म में 89-90 का दौर दिखाया गया है इसलिए पर्दे पर बढ़ती हुई सांप्रदायिक हिंसा के बीच कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर जाने के लिए धमकाते हुए दिखाया जा रहा है.
फिल्म में उन परिस्थितियों को दिखाया गया है, जिनका सामना 90 के दशक में घाटी के कश्मीरी पंडितों को करना पड़ा और वो अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए. फिल्म में शिव और शांति भी अपना घर छोड़ते हैं और रिफ्यूजी की तरह जीवन जीने पर मजबूर होते हैं. फिल्म में जहां मुश्किल हालात और जान का खतरा है तो वहीं ये भी दिखाया गया है कि कैसे इन मुश्किल हालातों में शिव और शांति का प्यार नई ऊंचाइयों को हासिल करता है.
अपनी एक्टिंग के जरिये आदिल और सादिया दोनों ही निर्देशक की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं. लेकिन फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा एक प्रतिभावान निर्देशक होने के बावजूद शायद फिल्म के साथ पूरा इन्साफ नहीं कर पाए हैं. फिल्म का पहला हाफ हमें तेजी से भागता हुआ दिखाई देता है. मगर जब हम फिल्म के सेकंड हाफ पर गौर करें तो यहां स्थिति कुछ संभालती हुई दिखाई देती है. फिल्म का सेकंड हाफ अहम इसलिए भी है क्योंकि इसमें हम कई ऐसे सीन देखेंगे जो हमें नायक और नायिका की बेचैनी, उनका प्यार, उनकी मासूमियत और डर दिखाएगा.
फिल्म का विषय क्योंकि बहुत गंभीर है. इसलिए जिन सहायक कलाकारों का प्रयोग विधु ने अपनी इस फिल्म के लिए किया है, उन्होंने भी अपने रोल के साथ पूरा इंसाफ किया. किसी फिल्म की कहानी तभी दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींच सकती है जब उसपर निर्देशक ने मेहनत की हो. इस पैमाने पर अगर हम फिल्म शिकारा को रखें तो मिलता है कि इस फिल्म को बनाना विधु के लिए बिलकुल भी आसान नहीं रहा होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म में जहां एक तरफ लव स्टोरी थी तो वहीं सांप्रदायिक हिंसा को भी इसमें रखा गया. दोनों ही विषय एक दूसरे से अलग थे जिसका खामियाजा विधु को भी भुगतना पड़ा और नतीजा ये निकला कि फिल्म शायद वैसी नहीं बन पाई जैसी उम्मीद इससे की जा रही थी.
फिल्म में कई मौके ऐसे भी आए हैं जिनमें शिव और शांति के बीच की केमिस्ट्री दर्शकों को जरूरबोर करेगी. फिल्म का संगीत और सिनेमेटोग्राफी इस पूरी कहानी का सबसे मजबूत पक्ष है. फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं जो दर्शकों को प्यार की गहराई समझाएंगे तो वहीं हिंसा के कुछ ऐसे भी दृश्य हैं जिन्हें देखकर दर्शकों की रूह कांप जाएगी. चूंकि फिल्म 90 के दशक को ध्यान में रखकर बनी है इसलिए संगीत का भी ख़ास ख्याल रखा गया है. फिल्म का संगीत कान में चुभने वाला बिलकुल नहीं है.
कश्मीरी पंडितों का विश्थापन और लवस्टोरी फिल्म में दो अलग अलग विषयों का सम्मिश्रण दर्शकों को प्रभावित करने में कुछ ख़ास कारगर नहीं हुआ है और सोशल मीडिया पर भी फिल्म को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. दर्शकों का एक वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि विधु फिल्म की थीम के साथ न्याय नहीं कर पाए.
Ihave just finished watching #Shikara a fictional film based on Exodus of KashmiriHindus. Trustme they have shown 'PoliticalCorrectness' in the film. Did not show the actualfact, feeling and pain. They empathize terrorists.The filmmaker puts his own narrative. 0 stars
— Shiv Mavle (@MahendraGosav13) February 7, 2020
वहीं ऐसे भी तमाम दर्शक हैं जिन्हें फिल्म पसंद आई है और जो फिल्म के निर्देशक और लेखक राहुल पंडिता की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. ऐसे दर्शकों का मानना है कि विधु ने एक जबरदस्त फिल्म बनाई है.
Stooges of Separatists tried to get #Shikara banned. Yet did not succeed. These are same people who deny the Kashmiri Pandit exodus and justify Hurriyat, JKLF and other Pakistan sponsored groups. People should watch #Shikara tomorrow across India and send a very strong message. pic.twitter.com/yoWiqVKsSm
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) February 6, 2020
दर्शकों का मानना है कि ये एक इमोशनल कर देने वाली फिल्म है जिसे दर्शको को जरूर देखना चाहिए.
A Kashmiri Pandit friend took me for a 9 AM show of #Shikara - what an emotional and searing watch on the plight & struggle of a community that has endured so much for 3 decades
Hope states make the movie tax-free
Great job @VVCFilms @rahulpandita
— Aman Sharma (@AmanKayamHai_ET) February 7, 2020
फिल्म को सिनेमाघरों में स्क्रीन कम मिली हैं. इसलिए ये फिल्म कितनी बड़ी हिट साबित होती है. इसका फैसला वक़्त और बॉक्स ऑफिस करेगा. लेकिन ये फिल्म एक ऐसे वक़्त में आई है जब नागरिकता की बातों को लेकर एक बहुत बड़ा वर्ग सड़कों पर है. ऐसे लोगों से सवाल हो रहे हैं कि इनका ये विरोध प्रदर्शन तब कहां था जब कश्मीर में अपने ही घर से कश्मीरी पंडित निकाले जा रहे थे. उनकी हत्या हो रही थी.
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